ससुराल में सर्वश्रेष्ठ आचरण, सबका दिल जीतने की घुट्टी कुछ इस तरह से पिलाई जाती है कि सुशिक्षित लड़कियां तक इस चक्रव्यूह से बाहर नहीं निकल पातीं.
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वह कमाल की चित्रकार हैं. ग्लास पेंटिंग पर उनके राधा-कृष्ण ऐसे दिखते हैं, मानों गोकुल की गलियों से बांसुरी वाले कन्हैया प्रकट होने को हैं. ऐसा होने के बाद भी उनकी पिछली पेंटिंग को पंद्रह बरस से अधिक हो चले हैं. कुछ दिन पहले एक पारखी कला विशेषज्ञ ने जब उनका काम देखा, तो उन्होंने इतने आयाम खोज निकाले कि उनको खुद पर भरोसा नहीं हो रहा था. उन्हें लगा मानो अपने ‘पर’ उन्होंने खुद ही कतर लिए.
मध्यमवर्गीय समाज में हम लड़कियों को जिस तरह तैयार करते हैं. उसमें उनके भीतर शादी के बाद कुछ विशेष बचे रहने का सवाल लगभग बेइमानी जैसा है. उनसे ससुराल में जिस तरह ‘परफेक्ट’ रहने की अपेक्षा होती है. उसमें उनके भीतर के विशेष गुण के निखरने की जगह उसके दम घुटने के आसार अधिक रहते हैं.
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‘डियर जिंदगी’ को यह कहानी मप्र के रीवा से मिली है. जिसमें एक ग्लास पेंटिंग में दक्ष युवा चित्रकार की बात उनके मित्र ने भेजी है. इसमें उन्होंने बताया कि मप्र में लड़कियों को ससुराल में सर्वश्रेष्ठ आचरण, सबका दिल जीतने की घुट्टी कुछ इस तरह से पिलाई जाती है कि सुशिक्षित लड़कियां तक इस चक्रव्यूह से बाहर नहीं निकल पातीं.
वह ‘परफेक्ट चाय’ से लेकर रसोई में लजीज व्यंजन तक में इस कदर घुली रहती हैं कि अपने सपनों को पंख लगना तो दूर कई बार अनजाने में अपने ही पंख कतर लेती हैं!
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मैं यहां स्पष्ट करना चाहता हूं कि मैं लड़कियों के ससुराल में सामंजस्यपूर्ण व्यवहार, आदरपूर्वक आचरण का विरोध नहीं कर रहा हूं. मेरा तो सारा जोर केवल इस बात पर है कि कैसे हम सबकुछ लड़कियों पर थोप देते हैं. उन्हें सबका ख्याल रखना होता है, लेकिन उनका ख्याल कौन रखेगा, इसकी चिंता शायद ही कभी चिंतित करती हो. उन्हें जो मिल रहा है, उसे उनके भाग्य पर छोड़ने का चलन अब तक हमारे दिमाग से बाहर नहीं निकल पाया है.
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यह परिवर्तन आसान नहीं. इसलिए हम रातों-रात किसी परिवर्तन की उम्मीद नहीं कर सकते. लेकिन परिवर्तन की गति बहुत अधिक धीमी है! सबसे अधिक चिंतित करने वाली बात यह है कि युवा मन अब तक सामंती व्यवहार से आगे नहीं निकल सके हैं. जहां स्त्रियां हमारे लिए केवल मर्यादा, शोभा, हमारे आचरण की आज्ञापालक हैं!
ऐसे में उनके भीतर वह घुटता ही रहता है, जो उन्हें खास बनाता है. दमित इच्छा की कड़ियों से ही मन के भीतर डिप्रेशन के बीज पड़ते हैं. सबकी खुशी का ख्याल करते हुए अपने भीतर के गुण की अनदेखी जीवन पर भारी पड़ती है. इसलिए ‘सबके’ बीच भी अपने को तराशने के लिए वक्त निकालना कभी मत भूलिए.
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और अंत में एक बात और! हमारे घर, परिवार के लिए परेशान, चिंतित करने वाली खबर यह है कि अब महिलाओं में डिप्रेशन, तनाव बढ़ने की दर पहले की अपेक्षा कहीं तेजी से देखी जा रही है. इसके प्रमुख कारकों में से एक चीज जिसे हम कुछ हद तक नियंत्रित कर सकते हैं, वह है; उनके उन गुणों, विशेषता के प्रति आदर, सम्मान और उनके लिए ‘प्लेटफाॅर्म’ की तलाश जो उन्हें आगे बढ़ने में मदद कर सकते हैं.
जब तक हम बेटे और बहू के लिए एक जैसी सोच, समझ, रास्ते नहीं बनाएंगे. हम डिप्रेशन, निराशा, उदासी को अपनी तन, मन, जीवन से दूर नहीं कर पाएंगे.
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