डियर जिंदगी: आत्‍महत्‍या से कुछ नहीं बदलता!
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डियर जिंदगी: आत्‍महत्‍या से कुछ नहीं बदलता!

घुटन के बुलबुले जो पहले आसानी से पकड़ में आ जाते थे, अब तभी नजर में आते हैं, जब उसकी 'खराश' दिल को छलनी कर देती है.

डियर जिंदगी: आत्‍महत्‍या से कुछ नहीं बदलता!

यह ‘डियर जिंदगी’ जहां से लिखी जा रही है, वहां से समंदर बहुत सुंदर, मीठा, अपनापन लिए दीखता है. उतना जितना नजदीक से कभी न लगा! नजारे की असल खूबसूरती पास आने पर ही उजागर होती है. दूर से उनका ‘खारा’पन नहीं दिखता. जिंदगी का स्‍वाद भी कुछ ऐसा ही है.

एक दूजे के साथ के लिए हम कितनी मिन्‍नतें करते हैं. किसी के इंतजार में आंखें बिछाए हुए, ख्‍वाब बुनता मन न जाने किस-किस से उलझता रहता है! और यह क्‍या कि साथ मिला नहीं, अगले ही पल ऊब होने लगी. एक-दूसरे के लिए बिछी आंखों में अंगारे आ जाते हैं. उम्‍मीद से खिले हुए मन में न जाने किस डगर से कांटे उग जाते हैं.

घुटन के बुलबुले जो पहले बहुत आसानी से पकड़ में आ जाते थे, अब तभी नजर में आते हैं, जब उनकी 'खराश' दिल को छलनी कर देती है. जिंदगी के डिप्रेशन की ओर जाने के रास्‍ते पर ही चेकपोस्‍ट बनाने होंगे!

डियर जिंदगी: बड़े ‘होते’ हुए…

तनाव, गहरी उदासी हमारी आत्‍मा पर एक दिन में भारी पड़ने वाली चीजें नहीं हैं. वह आहिस्‍ता-आहिस्‍ता हम पर हावी हुई हैं. हम अपनों के दुख, परेशानी को पढ़ने में इतने असफल होते जा रहे हैं कि हमें 'बाढ़ का पानी' घर में घुसने के बाद ही उसकी खबर मिलती है. हमें तब पता चलता है, जब केवल एक ही शब्‍द बचता है, काश! इस काश को समय से पहले पकड़ना मनुष्‍य, मनुष्‍यता दोनों को बचाने के लिए बहुत जरूरी है.

मुंबई से प्रकाशित प्रमुख अखबार में कहीं न कहीं एक ऐसी ही खबर को जगह मिली है. कल्‍याण की प्रसिद्ध ‘महावीर हाइट्स’ में पति, दो बच्‍चों के साथ रहने वाली डॉ. प्राजक्‍ता कुलकर्णी ने सुबह अपनी छत से छलांग लगाकर आत्‍महत्‍या कर ली. यह घटना सीसीटीवी में रिकाॅर्ड हो गई.

डियर जिंदगी: आपको रोकने वाली 'रस्‍सी' !

इस घटना की चर्चा बड़े पैमाने पर होने के दो कारण हैं. पहला यह मुंबई की घनी बस्तियों में शुमार इलाका है. मीडिया को पॉश इलाके की आत्‍महत्‍या ही लुभाती है! दूसरा प्राजक्‍ता डॉक्‍टर थीं. उनकी आर्थिक, सामाजिक स्थिति में कोई तनाव नहीं था. पड़ोसियों के अनुसार कुलकर्णी दंपति शांत, प्रेम से रहने वाले थे.

आत्‍महत्‍या के बारे में अभी भी मिथक यही है कि इसका मूल कारण गरीबी, साधन की कमी है. इस खतरे से धन, प्रतिष्‍ठा, रसूख आपको बचा सकता है. जबकि यह पूरी तरह झूठ, असत्‍य धारणा है.

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आत्‍महत्‍या से केवल एक ही चीज आपको बचा सकती है, वह है, आपकी आत्‍मशक्ति! खराब से खराब स्थिति में खुद पर अटूट भरोसा. आत्‍महत्‍या व्‍यक्‍ति करता ही इसलिए है, क्‍योंकि उसका भरोसा किसी न किसी से टूटा होता है. किसी दूसरे पर भरोसा तो ठीक है, लेकिन अपने से ज्‍यादा, इतना ज्‍यादा कि उसकी टूटन जिंदगी पर भारी पड़ जाए, कभी नहीं!

एक बात और! डिप्रेशन और आत्‍महत्‍या के बहुत से मामलों को नजदीक से देखने, उनके अध्‍ययन के बाद मैं यह कहने की स्थिति में हूं कि इसके पीछे कहीं न कहीं ‘सबक’ सिखाने का निर्णय भी होता है. मेरे बिना जीकर बताओ. तब पता चलेगा, जिंदगी कितनी मुश्किल है! मैं नहीं रहूंगी/रहूंगा तब जिंदगी का स्‍वाद समझ आएगा!

डियर जिंदगी: टूटे रिश्‍ते की ‘कैद’!

अरे! यह कैसा पागलपन है. जो आपके समझाने से नहीं समझा. आपके मनाने से नहीं माना. वह आपके मरने से कैसे मान जाएगा. बदल जाएगा. हिंदी फिल्‍मों के आत्‍महत्‍या के अधकचरे विचारों से बाहर निकलिए.

देखिए, जिंदगी रास्‍तों से लदी पड़ी है. उससे चला नहीं जा रहा. वह हमसफर की तलाश में है, और आप हैं कि उससे दामन छुड़ाए जा रहे हैं. आपके मरने से कुछ नहीं बदलेगा! जब दुनिया आपके जीने से नहीं बदलती तो मरने से कैसे, क्‍यों बदलने लगी. इसलिए जीने की तरकीब सोचिए. जीने के सौ तरीके हैं, जबकि मरने का केवल एक. इसलिए, बिल्‍कुल मुश्किल नहीं है, जीना!

मराठी में पढ़ने के लिए क्लिक करें: डिअर जिंदगी : आत्‍महत्येने काहीच बदलत नाही!

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