हम बच्चे के भविष्य (जिसका कोई ठौर ठिकाना नहीं है) को संवारने के नाम पर उसके आज को डरावना, दुखी करने पर तुले हुए हैं.
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मां का बच्चे पर सबसे अधिक अधिकार है. किसी से भी ज्यादा. व्यवहार और खबर दोनों में आमतौर पर मां बच्चों से 'अलग' नहीं दिखती. वह उनके साथ ही नजर आती है. लेकिन स्कूल में स्मार्ट, सबसे आगे दिखने की चाहत ने लगता है कि इस रिश्ते पर भी असर दिखाना शुरू कर दिया है. इसके लिए कोई बहाना, कारण समझ से परे है.
हम बच्चे के भविष्य (जिसका कोई ठौर ठिकाना नहीं है) को संवारने के नाम पर उसके आज को डरावना, दुखी करने पर तुले हुए हैं. मां बच्चे के लिए वह सबकुछ करती है, जो कर सकती है. लेकिन इससे उसे बच्चे के प्रति हिंसक, अनुदार, रूखेपन के अधिकार नहीं मिल जाते. मां बच्चे को कुछ रटा देनेभर के लिए उसके मन पर सारा गुस्सा कैसे उड़ेल सकती है. कैसे वह स्नेह, प्रेम की तान छोड़कर हिंसा का राग अपना रही है.
इन दिनों सोशल मीडिया पर एक छोटी बच्ची का वीडियो मां के रूखे, हिंसक व्यवहार के कारण चर्चा में है. यह इतना भावुक, दिल तोड़ने वाला है कि विराट कोहली और शिखर धवन जैसे खिलाड़ी इस पर पोस्ट लिख रहे हैं. इसमें मां बेटी को पढ़ाते हुए इस कदर तनाव, गुस्से में आ गई कि छोटी बच्ची पर हिंसक हो उठी है. वैसे इन दिनों माता-पिता का यह गुस्सा बहुत आम हो गया है. इसके वीडियो भले ही कम सामने आ रहे हैं, लेकिन यह 'बीमारी' बढ़ती जा रही है.
लगता है, हम जमाने भर का गुस्सा बच्चों पर उतारने की कसम लिए बैठे हैं. आखिर इस छोटी बच्ची से उसकी मां की कौन-सी अपेक्षाएं आहत हो रही हैं कि वह बच्ची पर टूट पड़ी है. इस पूरे वीडियो में बच्ची मां के रूखे व्यवहार से एकदम टूटी नजर आ रही है, तो अगले ही पल अपने नन्हे गाल पर मिला चांटा उसे गुस्से से भर देता है.
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इस बच्ची की उम्र 2-3 साल के बीच लग रही है. इसे 1 से 5 तक की गिनती याद करवाई जा रही है. इस दौरान बच्ची रो-रोकर सुना रही है. इसी दौरान वह एक जगह गिनती भूल जाती है तो उसे थप्पड़ जड़ दिया जाता है. बच्ची रो-रोकर, हाथ जोड़कर प्यार से पढ़ाने की गुजारिश भी कर रही है.
हमें इस बात के लिए विराट और शिखर को धन्यवाद भी देना चाहिए कि उन्होंने इसे शेयर करते हुए सोशलमीडिया पर उसे मुद्दा बनाया. उनके ऐसा न करने पर हो सकता है, यह खबर खबरों की सुनामी में कहीं गुम हो गई होती.
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जितनी चर्चा इस वीडियो पर हो रही है, उससे अधिक विमर्श इस पर होना चाहिए कि ऐसी घटना इस समयलगभग हर तीसरे भारतीय घर में हो रही है. स्कूल को हर बच्चा सौ प्रतिशत वाला चाहिए. क्योंकि इससे हीस्कूल का नाम रोशन होता है. इस नाम रोशन करने की 'रोशनी' में बच्चे के दुश्मन उसके अभिभावक ही बनतेजा रहे हैं. बच्चे हर दिन अकेले और अकेले होते जा रहे हैं.
इस वीडियो के बीच इस बात पर भी ध्यान दीजिए कि दिल्ली समेत लगभग सभी महानगरों में बुजुर्ग अब अकेले पड़ते जा रहे हैं. उनकी देखभाल के लिए कोई नहीं है. बच्चों ने उनको अकेला, नौकरों के भरोसे छोड़ दिया है.
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क्या बुजुर्गों के अकेलेपन के लिए बच्चों के प्रति उनका रवैया जिम्मेदार नहीं है! बहुत नहीं, पर कुछ जिम्मेदारी तो उनकी भी बनती है, शायद. उन्होंने अपने बच्चों को स्नेह, प्रेम से इसलिए वंचित रखा ताकि बच्चों का भविष्य बन सके. और बच्चे भविष्य बनाते-बनाते उन्हें भूल रहे हैं... इस तरह छोटे बच्चों के प्रति हमारा रूखा,हिंसक व्यवहार और बुजुर्गों के प्रति बच्चों का रूखापन क्या दो एक जैसी खबरें नहीं हैं.
थोड़ा ठहरकर इस बारे में सोचना चाहिए. क्योंकि यह हमारी जीवनशैली वर्तमान और भविष्य दोनों को तबाह कर रही है.
(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)
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