Tulsi Plant at Home: धार्मिक अनुष्ठानों में तुलसी का काफी महत्व है. इसकी रोजाना पूजा करने से घर में बरकत आती है. हालांकि, पूजा-पाठ में तुलसी की पत्तियों का हर दिन इस्तेमाल होता है. इसके बावजूद हफ्ते में इस दिन तुलसी के पत्तों को तोड़ने से बचना चाहिए.
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Benefits of Tulsi: भारतीय संस्कृति में कोई भी कार्य करने से पहले उस कार्य को कब और कैसे करना चाहिए, इस पर अवश्य ही विचार किया जाता है, जिसे लोग मुहूर्त भी कहते हैं. मुहूर्त के रूप काल यानी समय के रूप में तिथि, वार, नक्षत्र, योग एवं करण को महत्व दिया जाता है. इनमें वार सर्वाधिक सुगम एवं सरल अवयय हैं, इसलिए इसे हर व्यक्ति अपनी तरह से उपयोग में लाता है और फिर उसी के अनुसार कार्य करने लगता है. सामान्यतः सात दिनों या वार में रविवार और मंगलवार को क्रूर एवं शनिवार को अशुभ माना जाता है. स्थापना एवं निर्माणादि वास्तु के कार्यों में शनि को अशुभ माना जाता है.
विष्णुजी को सर्वाधिक प्रिय है तुलसी
भारतीय परंपरा में किसी वृक्ष एवं पौधे को अपने उपयोग के लिए लगाना, काटना या उसके पत्ते लेने का कार्य सब मुहूर्त में ही किया जाता है. यह लोक परंपरा आदिकाल से चली आ रही है और आज भी धार्मिक लोग इसे मानते हैं. वैद्य भी शुभ मुहूर्त में औषधीय वनस्पति को निकालते हैं. मुहूर्त की जटिलता और सबके लिए इसे सुलभ या सुगम न होने के कारण सामान्य लोग वार का ही उपयोग करते हैं. मुहूर्त के प्रधान अव्यय तिथि, वार सभी विष्णुजी के स्वरूप माने गए हैं. रविवार का दिन भगवान विष्णु को सर्वाधिक प्रिय है इसलिए रविवार को विष्णु प्रिया तुलसी को न तोड़ने का विधान बना. माना जाता है कि विष्णु जी के रूप शालिग्राम के साथ रविवार के दिन ही तुलसी जी का विवाह हुआ था और वह अपने पति के लिए इसी दिन व्रत रखती हैं. कई स्थानों पर क्रूर वार होने के कारण ही मंगलवार को भी तुलसी को नहीं तोड़ा जाता है.
मुहूर्त से ऊपर है लोक प्रचलन
लोक व्यवहार मुहूर्त से भी अधिक आधारित और प्रचलित होते हैं, इसलिए तुलसी की पत्ती को तोड़ने में मुहूर्त से अधिक लोक व्यवहार की प्रधानता प्रचलित हुई. रविवार को तुलसी नहीं तोड़ने की धारणा सभी जगहों पर नहीं प्रचलित है. जैसे श्री बद्रीनाथ और जगन्नाथ पुरी में भगवान के पूजन एवं श्रृंगार में प्रतिदिन तुलसी का प्रयोग किया जाता है. यहां पर प्रतिदिन तुलसी तोड़ी जाती है और भगवान का श्रृंगार तथा पूजन होता है. हमारे शास्त्रों ने भी लोक के आधार पर आचरण करने की व्यवस्था बनाई है और शास्त्र से अधिक लोक प्रचलन को मान्यता दी गई है.