ब्रज की गलियों में भक्ति-प्रेम के साथ व्यंग्य और हास्य की फुहार 'गली तमाशे वाली'
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ब्रज की गलियों में भक्ति-प्रेम के साथ व्यंग्य और हास्य की फुहार 'गली तमाशे वाली'

व्यंग्यकार ने लिखा है तो व्यंग्य की उम्मीद तो रहती है. अर्चना ने हास्य मिश्रित व्यंग्य का इस्तेमाल तो किया है पर व्यंग्य कम रहा, कई जगहों पर आते आते रह गया ..कहानी की कसावट भी थोड़ी कम रही. 

ब्रज की गलियों में भक्ति-प्रेम के साथ व्यंग्य और हास्य की फुहार 'गली तमाशे वाली'

यूं तो पूरा ही ब्रज देश ही नहीं दुनिया में एक धार्मिक स्थल के तौर पर जाना जाता है. हर महीने लाखों श्रद्धालु ब्रज की गलियों में अपने इष्ट को खोजते, उनकी पूजा-अर्चना करते मिल जाएंगे. कृष्ण की जन्मस्थली के साथ-साथ ब्रज की बोली भी लोगों को बहुत प्रिय है और ब्रज साहित्य का तो हिंदी साहित्य जगत में अलग ही स्थान है. महान कवि रसखान ने ब्रज की गलियों का वर्णन कुछ इस तरह किया है, 'मानुस हौं तो वही रसखान, बसौं मिलि गोकुल गांव के ग्वारन.' 


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