कहा जाता है कि अपाहिज होना दुनिया का सबसे बड़ा दुख है, जिसे कोई दूर नहीं कर सकता. हालांकि 29 साल की उम्र में करोड़ों की कंपनी खड़ी करने वाले ब्लाइंड उद्यमी (Srikanth Bolla) ने इस कहावत को उलटकर रख दिया है.
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नई दिल्ली: कहा जाता है कि अपाहिज होना दुनिया का सबसे बड़ा दुख है, जिसे कोई दूर नहीं कर सकता. अपाहिजपन में भी अगर कोई ब्लाइंड हो तो उसके दुख की कोई सीमा नहीं होती. लेकिन आंध्र प्रदेश के श्रीकांत बोल्ला (Srikanth Bolla) ने अपनी ब्लाइंडनेस को कमजोरी बनाने के बजाय कुछ करने की ठानी और आज वे 100 करोड़ रुपये के टर्नओवर वाली बड़ी कंपनी के मालिक हैं.
सहयोगी वेबसाइट DNA के मुताबिक श्रीकांत का जन्म 1992 में आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम के सीतारामपुरम गांव में हुआ था. वे जन्म से ब्लाइंड थे. उनके जन्म के बाद जब मां-बाप ने देखा कि उनका बेटा पूरी तरह नेत्रहीन है तो उनके दुखों का कोई ठिकाना न रहा. कुछ लोगों ने मां-बाप को सलाह दी कि वे उसे अनाथ आश्रम में छोड़ आएं. वहीं कुछ ने कहा कि अंधे बच्चे को पालने से अच्छा है कि उसके वीराने में मरने के लिए छोड़ आएं. लेकिन मां-बाप ने उनकी बात नहीं सुनी और बच्चे को पालने का फैसला किया.
स्कूल पहुंचने पर श्रीकांत (Srikanth Bolla) के साथ भेदभाव किया गया और उसके क्लास में सबसे पीछे बिठाया गया. इस पर उनके पिता दामोदर राव और मां वेंकटम्मा ने स्कूल प्रशासन से विरोध किया. जिसके बाद उन्हें आगे बिठाया गया. व्यवस्था के खिलाफ लड़ने की मां-बाप की भावना से श्रीकांत में भी हौंसला पैदा हुआ और वह भी जीवन में कुछ कर गुजरने के लिए कृतसंकल्पित होते चले गए.
श्रीकांत बताते हैं कि वे साइंस पढ़ना चाहते थे. लेकिन लैब में कैमिकल के इस्तेमाल की वजह से उन्हें इसकी अनुमति नहीं मिली. जिसके चलते उन्हें 6 महीने तक सरकार के साथ लड़ना पड़ा. उसके बाद सरकार ने उनके अपने जोखिम में उन्हें साइंस लेने की अनुमति दी. जो लोग उनकी क्षमता पर शक कर रहे थे, उन्हें श्रीकांत ने 12वीं की बोर्ड परीक्षा में 98 फीसदी अंक लाकर चुप कर दिया. उसके बाद कई लोगों ने इसे तुक्केमारी कहा और उनकी प्रतिभा को कबूल करने से इनकार कर दिया.
प्री-यूनिवर्सिटी परीक्षा पूरी करने के बाद, श्रीकांत (Srikanth Bolla) ने IIT के सपने को पूरा करने की कोशिश की. इसके लिए उन्होंने कोचिंग लेनी चाही लेकिन कोचिंग संस्थानों ने उनकी ब्लाइंडनेस को देखते हुए पढ़ाने से इनकार कर दिया. इसके बाद श्रीकांत ने अमेरिका के प्रतिष्ठित तकनीकी संस्थान एमआईटी में एडमिशन के लिए अप्लाई किया और वहां दाखिला पाने वाले पहले भारत और संस्थान के पहले नेत्रहीन छात्र बन गए.
अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, श्रीकांत के पास अमेरिका में रहकर एक आरामदायक जीवन जीने का मौका था. लेकिन उनका दिल भारत में आकर काम करने और अपने देशवासियों के लिए कुछ करने के लिए था. इसके बाद वे भारत वापस लौटे और 2012 में अपनी कंपनी, बोलेंट इंडस्ट्रीज (Bollant Industries) की स्थापना की. उनकी प्रतिभा और उद्यमिता के प्रति जुनून को रतन टाटा ने देखा. उन्होंने श्रीकांत को अपनी एक यूनिट का मेंटर बनाया और साथ ही उनकी कंपनी में निवेश भी किया.
श्रीकांत (Srikanth Bolla) की बोलेंट इंडस्ट्रीज (Bollant Industries) पैकेजिंग सॉल्युशन का काम करती है. श्रीकांत की मेहनत से वह धीरे-धीरे आगे बढ़ती चली गई. कंपनी ने 20 20% मासिक औसत वृद्धि के साथ 2018 तक 150 करोड़ रुपये का कारोबार किया. अब श्रीकांत की 5 मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स हैं, जिनमें 650 से ज्यादा लोग काम करते हैं.
श्रीकांत को वर्ष 2017 में, फोर्ब्स 30 अंडर में नामित किया किया था. एशिया से चयनित होने वाले 3 भारतीयों में से वे एक थे. उन्हें सीआईआई इमर्जिंग एंटरप्रेन्योर ऑफ द ईयर 2016, ईसीएलआईएफ मलेशिया इमर्जिंग लीडरशिप अवार्ड जैसे कई अवार्ड मिल चुके हैं.
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एक बार की बात है. वर्ष 2006 में देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे. उस कार्यक्रम में श्रीकांत भी मौजूद थे. मिसाइल मैन ने उनसे पूछा, 'आप जीवन में क्या बनना चाहते हैं?' इस सवाल पर श्रीकांत ने जवाब दिया था, 'मैं भारत का पहला नेत्रहीन राष्ट्रपति बनना चाहता हूं.'
श्रीकांत (Srikanth Bolla) ने एमआईटी पत्रिका को दिए एक इंटरव्यू में कहा था, 'मैं अपना जीवन समुदाय और समाज सेवा के लिए समर्पित करना चाहता हूं. मैं समाज में एक ऐसी जगह चाहता हूं जहां लोग मुझे एक आदर्श और महान नेता के रूप में देखें.'
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