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नई दिल्ली: Budget 2021: जैसे जैसे बजट की तारीख नजदीक आ रही है, इंडिविजुअल टैक्सपेयर्स चाहता है कि उसकी कुछ मांगों को वित्त मंत्री पूरा करें. टैक्स और इनवेस्टमेंट एक्सपर्ट बलवंत जैन बता रहे हैं कि आम आदमी को इस बजट से क्या उम्मीदें हैं.
अभी 80CCE के मुताबिक 80C, 80CCC और 80 CCD(1) के तहत मिलने वाली कुल डिडक्शन 1.50 लाख रुपये सालाना है. पहले ये लिमिट 1 लाख रुपये थी, जिसे 2014 में बढ़ाकर 1.5 लाख रुपये किया गया था. इसके पहले 1 लाख की लिमिट को 2003 में तय किया गया था. करीब 18 साल हो गए हैं जब 1 लाख रुपये की लिमिट को तय किया गया था. 2014 में इसे सिर्फ 50 परसेंट बढ़ाया गया था, जो सालाना 3 परसेंट से भी कम बैठता है. ये सालाना औसत बढ़ोतरी इस अवधि के दौरान महंगाई की औसत दर के बराबर भी नहीं है. इसलिए मेरी राय है कि इसे सीधा बढ़ाकर कम से कम 2.5 लाख रुपये कर दिया जाना चाहिए.
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अभी जब आप NPS अकाउंट को बंद करवाते हैं तो मौजूदा टैक्स नियमों के तहत सिर्फ 60 परसेंट पैसा ही निकाल सकते हैं और उस पर भी टैक्स नहीं देना होता है. बची हुई रकम को NPS सब्सक्राइबर्स को एन्यूटी में डालना होता है. मैं यहां ध्यान दिलाना चाहता हूं कि जब भी एन्यूटी मिलती है वो टैक्सेबल होती है. सरल शब्दों में कहें तो 60 परसेंट पैसा टैक्स फ्री होता है, जबकि बची हुई रकम पर अभी नहीं तो भविष्य में टैक्स चुकाना होता है.
NPS निकासी के ठीक उलट, कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) का पैसा रिटायरमेंट पर पूरी तरह से टैक्स फ्री होता है. अगर सरकार EPF के रिटायरमेंट पर मिलने वाले पैसे को NPS के 40 परसेंट फंड की तरह टैक्सेबल नहीं कर सकती है, जिसकी कोशिश सरकार ने कुछ साल पहले की थी, तो सरकार को कम से एक समानता लाने की कोशिश करनी चाहिए और NPS के निकासी के पैसे को पूरी तरह से टैक्स फ्री कर देना चाहिए. सरकार को NPS के 40 परसेंट फंड से एन्यूटी खरीदने की जरूरत को खत्म कर देना चाहिए, और ये फैसला सब्सक्राइबर पर छोड़ देना चाहिए कि वो अपना पैसा कहां निवेश करे.
घर खरीदने, निर्माण कराने, मरम्मत या रेनोवेशन की खातिर लिए गए लोन के ब्याज पर इनकम टैक्स नियमों के तहत छूट मिलती है. ये छूट हालांकि दो self occupied घरों के लिए ये क्लेम अधिकतम 2 लाख रुपये ही होता है. जबकि किराए पर उठाए गए घर के लिए ऐसी कोई लिमिट नहीं है. हालांकि ‘संपत्ति से आय’ के तहत नुकसान के लिए 2 लाख रुपए की सालाना सीमा तय की गई है, जिन्हें आपकी अन्य आय स्रोतों के साथ सेट ऑफ या एडजस्ट कर सकते हैं.
इस हाउस प्रॉपर्टी से घाटे को सेट ऑफ करने के लिए आप इसे 8 सालों तक कैरी फॉरवर्ड कर सकते हैं. तार्किक तो ये होगा कि फुल इंटरेस्ट पेमेंट पर टैक्स छूट का फायदा उन वास्तविक घर खरीदारों को मिलना चाहिए जिन्हें घर खुद रहने के लिए चाहिए, न कि उन लोगों को जो इसे निवेश के तौर पर इस्तेमाल करते हैं और टैक्स बचाते हैं.
कोई अंडर कंस्ट्रक्शन प्रॉपर्टी जिसके पूरा होने में 5 साल से ज्यादा का वक्त लगा हो, तो उसके लोन इंटरेस्ट पर मिलने वाला डिडक्शन घटकर 30,000 रुपये हो जाता है, जबकि इसमें टैक्सपेयर्स की कोई गलती नहीं होती है. इस नियम को तुरंत खत्म किया जाना चाहिए और उन टैक्सपेयर्स को राहत देनी चाहिए जो अपना घर समय पर नहीं मिलने से पहले से ही परेशान हैं.
इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 80C के मौजूदा नियमों के तहत रेजिडेंशियल प्रॉपर्टी होम लोन रीपेमेंट के प्रिंसिपल अमाउंट पर आप 1.5 लाख रुपये तक की टैक्स छूट क्लेम कर सकते हैं. इस छूट में दूसरे खर्चे जैसे लाइफ इंश्योरेंस प्रीमियम, ट्यूशन फीस, प्रॉविडेंट फंड, PPF, EPF, ELSS में निवेश, नेशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट (NSC), टैक्स सेविंग बैंक FD वगैरह शामिल हैं. इसमें 80 CCC के तहत एन्यूटी खरीदने के लिए चुकाई गई रकम भी शामिल है और सेक्शन 80 CCD(1) के तहत नेशनल पेंशन स्कीम में किया गया योगदान भी शामिल है.
बीते कुछ वर्षों में रेजिडेंशियल घरों की कीमतें बढ़ने से प्रॉपर्टी खरीदने के लिए हाउसिंग लोन की राशि में काफी बढ़ोतरी हुई है. बाकी आइटम्स के बावजूद सेक्शन 80CCE के तहत अकेले हाउसिंग लोन का प्रिंसिपल रीपेमेंट ही 1.5 लाख रुपये की लिमिट को पार कर जाता है. बड़े होम लोन और 80C, 80CCC और 80CCD (1) में भीड़ को देखते हुए वित्त मंत्री को बजट में होम लोन रीपेमेंट पर अलग से डिडक्शन मिलना चाहिए.
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