नेपाल के हाइड्रोपावर सेक्टर में लगने वाली थी सेंध, भारत ने यूं फेल कर दिया ड्रैगन का प्‍लान
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नेपाल के हाइड्रोपावर सेक्टर में लगने वाली थी सेंध, भारत ने यूं फेल कर दिया ड्रैगन का प्‍लान


India Nepal Hydropower Deal: नेपाल ने चीन को दरकिनार करते हुए भारत को बिजली बेची. भारत ने चीन के दखल के बावजूद नेपाल के हाइड्रोपावर सेक्टर से चीन को बाहर कर 10000 मेगावाट की डील को ड्रैगन से छीन लिया. 

 

 India Nepal Hydropower Deal

India Nepal Hydropower Deal: भारत और नेपाल के बीच रोटी-बेटी का संबंध है. सालों के दोनों देशों में बीच धार्मिक, सामाजिक, व्यापारिक संबंध हैं , लेकिन चीन के दखल की वजह से बीते कुछ दशकों से इस रिश्ते में दरार आ गई. चीन नेपाल को अपने कर्ज के जाल में फंसाने की कोशिशों में लगा है, लेकिन ड्रैगन के खौफ से बेखौफ होकर भारत के साथ बड़ी डील की है. नेपाल की जिस दौलत पर चीन की पैनी नजर थी, उसकी डील भारत के साथ हो गई.  नेपाल ने हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट को लेकर भारत के साथ करार किया. 4 जनवरी को भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर नेपाल पहुंचे थे. वहां दोनों देशों के बीच 10000 मेगावाट के हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट के लिए लेकर समझौता हुआ. नेपाल ने चीन को दरकिनार करते हुए भारत के साथ यह समझौता किया.  

हाइड्रोपावर पर चीन की नजर  
नेपाल ने चीन से किनारा कर भारत को बिजली निर्यात करने के लिए 10000 मेगावाट हाइड्रोपावर का समझौता किया. भारत-नेपाल के बीच यह समझौता 25 साल के लिए हुआ है, जो दोनों देशो में बिजली व्यापार का रास्ता खोलेगा. इस समझौते के साथ ही दोनों देशों के बीच संबंधों में मजबूती आई है. सबसे खास बात है कि जिस हाइड्रोपावर डील को नेपाल ने भारत के साथ किया है, उसपर लंबे वक्त से चीन की नजर थी. चीन का नेपाल में काफी दखल है. चीन ने बीते कुछ सालों में नेपाल में भारी निवेश भी इसी मकसद से किया है. बेल्ड एंड रोड नाम से चीन की पहल के जरिए नेपाल में सड़के बनी, वहां के इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश किया. अब उसकी नजर नेपाल के हाइड्रोपावर पर थी, लेकिन भारत ने चीन के हाथों से ये मौका छीन लिया.  

चीन की नजर नेपाल की इस दौलत पर  

फॉरेन पॉलिसी इंस्टीट्यूट के मुताबिक नेपाल एशिया के दो सुपरपावर चीन और भारत के बीच फंसा है. चीन-भारत नेपाल पर अपने भूराजनीतिक दांव लगा रहे हैं. चीन नेपाल को अपने कर्ज में जाल में फंसाकर उसकी वहीं हाल करना चाहता है जो श्रीलंका और पाकिस्तान का हुआ. 6000 नदियों वाले नेपाल में 42000 मेगावाट बिजली पैदा करने की ताकत है.  हालांकि फिलहाल वो केवल 3000 मेगावाट ही बिजली पैदा कर पाता है. तकनीकी कमियों के कारण नेपाल की बिजली पैदा करने की क्षमता बढ़ नहीं पा रही है. 

चीन को छोड़ कैसे भारत के साथ आया नेपाल  

नेपाल में दो विशाल पड़ोसी देश, भारत और चीन नेपाल भूराजनीतिक दांव लगा रहे हैं. नेपाल और भारत के संबंध सदियों के सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक संबंधों पर आधारित हैं. दोनों देशों के बीच रोटी-बेटी का संबंध है, लेकिन बीते कुछ सालों से चीन की दखल बढ़ रही है. नेपाल पर दबदबा बढ़ाने के लिए चीन लगातार उसकी राजनीति में भी दखल दे रहा है. नेपाल के बुनियादी ढांचे और सहायता के बावजूद, बीजिंग काठमांडू की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर सका. नेपाल में चीन की मौजूदगी इतने सालों से है, लेकिन अभी भी बॉर्डर इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित नहीं है. वहीं चीन के साथ देश का व्यापार घाटा बहुत ज्‍यादा बढ़ गया है. बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) प्रोजेक्ट पर चीन का ढुलमुल रवैया नेपाल को पसंद नहीं आ रहा है. बीआरआई की नौ परियोजनाओं में से कोई भी आज तक लागू नहीं की गई हैं. इतना ही नहीं चीन ने अपने राजनीतिक दबदबे को बढ़ाने के लिए नेपाल की राजनीति में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया.  

भारत नेपाल का पुराना दोस्त 

साल 2012  में नेपाल ने चीन के साथ 750-MW डेवलप करने के लिए थ्री गोरजेस कॉर्पोरेशन  MoU साइन किया. साल 2017 में  दोनों देशों ने नेपाल के जलविद्युत क्षेत्र में एक अरब डॉलर की ज्वाइंट वेंचर शुरू करने के लिए समझौता किया, लेकिन बाद में कम रिटर्न और भौगोलिक चुनौतियों के चलते इससे पीछे हट गया. जहां चीन पीछे हटा तो वहीं साल 2014 से भारत सक्रिय तौर पर नेपाल के हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट से जुड़ा है. साल 2018 में भारत ने अपनी नीतियों में बदलाव किया और उन देशों के निवेश के माध्यम से उत्पादित बिजली की खरीद को रोकने का फैसला किया, जिनके साथ 'बिजली क्षेत्र सहयोग पर द्विपक्षीय समझौता' नहीं था.  इतनी ही नहीं भारत ने अपनी नीतियों को संसोधित करते हुए भारत के उन फर्म पर भी नेपाल से बिजली खरीदने पर रोक लगा दिया, जो किसी भी तरह से चीनी निवेश से जुड़े हैं. जानकारों की माने तो इसके साथ ही काठमांडू के पास अपने हाइडोपावर के निर्यात के लिए बहुत कम विक्लप बचे और आखिरकार उसे भारत के साथ 10000 मेगावाट के लिए भारत के साथ डील करनी पड़ी. काठमांडू के लिए एक व्यवहार्य विकल्प होने में चीन की असफलताओं के चलते नेपाल को लाभकारी भारतीय परियोजनाओं और साझेदारियों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए मजबूर किया है.  

भारत से बढ़ती नजदीकी 

रॉयटर्स के मुताबिक नेपाल ने हाइड्रोपावर के क्षेत्र में चीन की दखल को कम करते हुए छह हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट को चीनी डेवलपर्स के हाथों से लेते हुए उसमें से चार भारतीय कंपनियों को सौंप दिया. साल 2022 में नेपाल के तत्कालीन प्रधान मंत्री शेर बहादुर देउबा ने कहा कि हम बिजली बेचकर भारत के साथ व्यापार घाटे को कम करने में सक्षम होंगे. इससे दोनों देशों के बीच बेहतर सहयोग और जल संसाधनों के आपसी बंटवारे को बढ़ावा मिलेगा. द काठमांडू पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, नेपाल ने साल 2022 में भारत को लगभग 1,200 करोड़ रुपये की बिजली बेची. साल 2023 में, अक्टूबर के मध्य तक इसने 1,200 करोड़ रुपये का आंकड़ा छू लिया.  

 

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