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नई दिल्ली: Motor Accident Claim: देश में एक घातक मोटर दुर्घटना मुआवजे का दावा सिर्फ 10 दिनों में निपटाया गया है. सुनने में यह आपको अजीब जरूर लग रहा होगा लेकिन वास्तव में इस साल मई में दिल्ली में ऐसा हुआ है. दिल्ली पुलिस के एक कांस्टेबल के परिवार को सड़क दुर्घटना में मारे जाने के बाद 10 दिनों में मुआवजे के रूप में 32 लाख रुपये की राशि मिली है.
दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (Delhi State Legal Services Authority) की देख-रेख में जनरल इंश्योरेंस काउंसिल ऑफ इंडिया (General Insurance Council of India) और बजाज आलियांज जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (Bajaj Allianz General Insurance Company Limited) द्वारा आयोजित एक वेबिनार में बताया गया कि दिल्ली पुलिस के एक कांस्टेबल के परिवार को सड़क दुर्घटना में मारे जाने के बाद महज 10 दिनों में मुआवजे के रूप में 32 लाख रुपये की राशि मिली. पुणे स्थित बजाज आलियांज जनरल इंश्योरेंस ने इस मामले में दावे का निपटारा किया था.
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साधारणतः सड़क दुर्घटना में मृत व्यक्ति के परिवार को बीमा कंपनियों से मुआवजा मिलने में पांच साल या उससे ज्यादा का समय लग जाता है. जब तक दावे की राशि बहुत कम हो चुकी होती है और पीड़ित परिवार पर आर्थिक संकट का पहाड़ टूट जाता है. बजाज आलियांज जनरल के प्रबंध निदेशक और सीईओ तपन सिंघल (Tapan Singhel) ने कहा कि गैर-जीवन बीमा उद्योग सड़क दुर्घटना पीड़ितों / परिवारों को मुआवजे के रूप में प्रति वर्ष लगभग 24,000 करोड़ रुपये का भुगतान करता है. उन्होंने कहा कि आम तौर पर एक दावे को निपटाने में लगभग 10 साल लगते हैं और मौजूदा मामले में सिर्फ 10 दिन लगे हैं.
आईआरडीएआई के सदस्य टी.एल. अलामेलु ने कहा कि पिछले वित्त वर्ष में 2.60 लाख मोटर थर्ड पार्टी दावों का निपटारा किया गया. उन्होंने कहा कि तीसरे पक्ष के दावों को निपटाने में देरी के मामले में बीमाकर्ताओं को भी बहुत नुकसान होता है क्योंकि उन्हें आर्थिक रूप से बोझ उठाना पड़ता है और चक्कर भी कटाने पड़ते हैं. बीमा कंपनियों से अपने दावों के निपटारे में तेजी लाने का आग्रह करते हुए अलामेलु ने कहा कि सरल डीएआर प्रक्रिया का अन्य सभी दावों पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा.
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वहीं, दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जेआर मिधा ने कहा कि सड़क दुर्घटनाओं में घायल लोगों के लिए योजना का विस्तार करने का प्रयास किया गया है. वर्षों से मोटर दुर्घटना मुआवजे के दावों पर काम कर रहे सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश आर.वी. रवींद्रन ने यह भी कहा कि 10 दिनों में एक मामले का निपटारा करना प्रशंसनीय है लेकिन यह पर्याप्त नहीं है क्योंकि पांच लाख मामले दर्ज हैं.
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