भारत में सोने की कीमत तय करती है कि बेटियां कितनी लाडली हैं!
Advertisement

भारत में सोने की कीमत तय करती है कि बेटियां कितनी लाडली हैं!

रिपोर्ट के मुताबिक, 1972 से 1985 के बीच के डाटा का अध्ययन करने के दौरान ये बात सामने आई है कि इस दौरान सोने के भाव में 6.3 फीसदी बढ़ें हैं, इस दौरान नवजात बच्चियों की मृत्यु दर में 6.4 फीसदी का इजाफा हुआ है. 

सांकेतिक चित्र

नई दिल्ली : किसी भी देश के शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव से ही उस देश की अर्थव्यवस्था तय होती है, लेकिन आपको ये बात जानकार हैरानी होगी कि भारत में सोने के भाव से बेटियों के जन्म लेने या जन्म के बाद बचने की दर का आंकलन पता चलता है. हालही में हुई एक रिसर्च में यह बात सामने आई है कि सोने के भाव का सीधा असर भारतीय शादी में दिए जाने वाले दहेज पर पड़ता है. 

सोने के भाव बढ़ने पर बेटियां होती हैं नजरअंदाज
यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेस की रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया है कि जब-जब भारत में सोने की कीमतों में इजाफा होता है, तब-तब परिवार बेटियों को नजरअंदाज करता है. इतना ही नहीं बेटियों को पैदा होने से पहले ही मार दिया जाता है. इतना ही नहीं सोना महंगा होने पर कुछ परिवार के लोग बेटियों के खान-पान, बीमारी और शिक्षा पर कम खर्च करना शुरू कर देती हैं.

fallback
अध्ययन से पता चला है कि जब-जब सोने के भाव बढ़े हैं तब-तब कन्या भ्रूण और नवजात बेटियों के जीवित बचने की दर लड़कों से कम रही. 

33 साल के डेटा का एनालिसिस
रिसर्च में दुनिया के बाजार में सोने के भाव और दहेज पर खर्च को लेकर 33 साल के डेटा का अध्ययन किया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 90 फीसदी सोना आयातित होता है. 1972 से 2005 के बीच अंतरराष्ट्रीय सोने की कीमतों पर अध्ययन से पता चला है कि जब-जब सोने के भाव बढ़े हैं तब-तब कन्या भ्रूण और नवजात बेटियों के जीवित बचने की दर लड़कों से कम रही. यही नहीं, सोने के भाव बढ़ने पर लड़कों के सर्वाइकल रेट में भी इजाफा हुआ है. 

इन चीजों पर भी पड़ता असर

पहला- सोने के भाव बढ़ने पर बच्चियों को आवश्यकता अनुसार पोषण नहीं दिया जाता है. 

दूसरा- भारत में सोने की कीमतें बढने पर दहेज में कटौती नहीं की जाती है, बल्कि उसकी देखभाल और शिक्षा में कटौती की जाती है.

fallback
भारत में सोने की कीमतें बढने पर दहेज में कटौती नहीं की जाती है, बल्कि उसकी देखभाल और शिक्षा में कटौती की जाती है.

क्या कहता है हर वर्ष का आंकड़ा

- रिपोर्ट के मुताबिक, 1972 से 1985 के बीच के डाटा का अध्ययन करने के दौरान ये बात सामने आई है कि इस दौरान सोने के भाव में 6.3 फीसदी बढ़ें हैं, इस दौरान नवजात बच्चियों की मृत्यु दर में 6.4 फीसदी का इजाफा हुआ है. 

- वहीं, 1986 से 2005 के बीच भारत में अल्ट्रासाउंड का इस्तेमाल होने के बाद जबतक लिंग परीक्षण पर पाबंदी नहीं थी, लोगों ने बेटियों को गर्भ में ही मारने का शुरू कर दिया था. 

-1986 में सोने के भाव 2.6 फीसदी बढ़ने पर भारत में लड़कियों के जन्म लेने की दर 0.3 फीसदी कम हो गई. 

- वहीं 2013 से 2015 के बीच लड़कियों के प्रति जागरूकता आने के बावजूद देश में 1000 लड़कों पर महज 900 लड़कियों ने ही जन्म लिया है. 

भारत में अभी भी घर बनाए हुए है कुप्रथा
यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेस की रिसर्च में इस बात भी खुलासा हुआ है कि दहेज जैसी कुप्रथा पर दुनियाभर में रोक लगने के बाद भी यह भारत में खत्म नहीं हुई है. 1961 में कानून में बदलाव होने के बाद भी भारत में यह मौजूद है. सिर्फ भारत ही नहीं बांग्लादेश, पाकिस्तान और श्रीलंका में भी यह कुप्रथा कई सदियों से चली आ रही है. रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा किया गया है कि इन देशों में बच्चियों के जन्म लेने के बाद उनकी शिक्षा और पोषण व्यवस्था से पहले दहेज जुटाने की तैयारी की जाती है.

2015 में 7434 महिलाओं की मौत 
रिपोर्ट में एनसीआरबी की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा गया है कि 2015 में भारत में 7434 महिलाओं की मौत हुई है. यानि की 2015 में भारत में प्रति दिन 20 महिलाओं की मौतें हुईं है. इन मौतों में दहेज के कारण हत्या और आत्महत्या दोनों को ही शामिल किया गया है. 

Trending news