मौत से न डरने वाली इंडियन आर्मी की खतरनाक रेजीमेंट, दुश्मनों पर नहीं करते जरा रहम, खुखरी से काट देते हैं गर्दन
Advertisement
trendingNow12471561

मौत से न डरने वाली इंडियन आर्मी की खतरनाक रेजीमेंट, दुश्मनों पर नहीं करते जरा रहम, खुखरी से काट देते हैं गर्दन

Gorkha Regiment: नेपाल के मूल निवासी और भारत दोनों देशों के सैनिकों से मिलकर बनी इंडियन आर्मी की गोरखा रेजीमेंट दुश्मनों के लिए काल समान है. गोरखा सिपाही देश के दुश्मनों को बड़ी निर्ममता से मौत के घाट उतारते हैं, तभी तो इनके सामने आने से दुश्मन भी घबराता है. 

मौत से न डरने वाली इंडियन आर्मी की खतरनाक रेजीमेंट, दुश्मनों पर नहीं करते जरा रहम, खुखरी से काट देते हैं गर्दन

Gorkha Battalion Interesting Facts: गोरखा सिपाहियों की बहादुरी की गाथाएं जग जाहिर हैं. यहां तक कि हमारे दोनों पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान और चीन भी इन्हें अपनी सेना में शामिल करना चाहते हैं. भारत को गुलामी की बेड़ियां पहनाने वाले गोरे भी गोरखा सैनिकों की वीरता के आगे ऐसे नतमस्तक हुए कि इनके नाम पर अलग से एक रेजीमेंट ही बना डाली. आज भी ये ब्रिटिश और इंडियन आर्मी में उसी तरह से अपनी सेवाएं दे रहे हैं. 

बेमिसाल बहादुरी के लिए हैं मशहूर
इंडियन आर्मी की गिनती दुनिया की उन बेहतरीन फौजों में होती है, जिसके सामने दुश्मन टिक नहीं पाना. कई रेजिमेंट और टुकड़ियों से मिलकर बनीं भारतीय सेना के तारीफ करने से तो दुश्मन भी पीछे नहीं रहते. इन्हीं में से एक है 'गोरखा रेजीमेंट', जो सबसे विध्वंसक और आक्रामक रेजिमेंट है. जो अपनी बहादुरी, अनुशासन और युद्ध कौशल के लिए विश्व प्रसिद्ध है. 

भारत के पहले फील्ड मार्शल SHF जे मानेकशॉ ने भी गोरखा सिपाहियों के लिए कहा था, "कोई व्यक्ति अगर कहता है कि मौत से उसे डर नहीं लगता तो या वह झूठ बोल रहा है या फिर गोरखा है." उनकी कही यह बात आज भी उतनी ही सच है.

गोरखा रेजीमेंट का इतिहास 
'गोरखा रेजीमेंट'की स्थापना हिमाचल प्रदेश के सुबाथू में ब्रिटिश सरकार ने 24 अप्रैल 1815 को गोरखा राइफल्स बटालियन के साथ की थी. इस बटालियन को अब गोरखा राइफल्स के नाम से जाना जाता है. यह एक गोरखा इन्फेंट्री रेजिमेंट है, जिसमें मुख्य रूप से 70 फीसदी नेपाली मूल के गोरखा फौजी शामिल हैं. 1857 में पहले भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दौरान गोरखा सैनिक ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन थे, तब ये क्रांतिकारियों के विरुद्ध लड़े थे. वहीं, अंग्रेजों की ओर से दोनों विश्वयुद्ध भी लड़े. इनकी वीरता देखकर अंग्रेजों ने इन्हें नया नाम दिया मार्शल रेस.

विभाजन के बाद बंटी रेजीमेंट
साल 1947 तक भारत में 10 गोरखा रेजीमेंट तैयार हो चुकी थीं. जब भारत आजाद हो रहा था तब भारत, नेपाल और ब्रिटेन के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता हुआ, तब गोरखा सोल्जर पैक्ट 1947 के अनुसार यह फैसला गोरखाओं पर ही छोड़ गया था कि वे किसके साथ रहेंगे. तब 6 रेजीमेंट ने भारतीय सेना को चुना, जबकि 4 रेजीमेंट अंग्रेजों के साथ गईं, अब भी गोरखा रेजिमेंट ब्रिटिश सेना का अहम हिस्सा है. इस समझौते में यह भी तय हुआ था कि भारत और ब्रिटिश आर्मी में गोरखा सैनिकों की नियुक्ति नेपाली नागरिक के तौर पर ही होगी और आज भी होता है. इंडियन आर्मी ने बाद में एक और रेजीमेंट बनाई और अब ये सातों गोरखा रेजिमेंट भारतीय सेना में अपना झंडा गाड़े हुए हैं.

दुश्मनों का काल खुखरी का वार
भारतीय गोरखा बटालियन का देश के दुश्मन में ऐसा कहर हैं कि वो कभी इसने सामने नहीं आना चाहते. यह इंडियन आर्मी की सबसे खतरनाक रेजिमेंट कहलाती है, क्योंकि ये किसी भी दुश्मन पर रहम नहीं करते हैं और उन्हें निर्ममता से मौत के घाट उतार देते हैं. 

इस रेजिमेंट को पर्वतीय इलाकों में लड़ाई का विशेषज्ञ माना जाता है. गोरखा सिपाहियों की पहचान खुखरी है. यह एक तरह का धारदार खंजर होता है, जिसका इस्तेमाल गोरखा अपने दुश्मनों की गर्दन काटने के लिए करते हैं. गोरखा रेजिमेंट के लिए कहा जाता है कि वे अपने जवानों को मुसीबत में फंसा छोड़कर आगे नहीं बढ़ते हैं.

गोरखा सैनिकों की भर्ती
भारत में यूपी के वाराणसी, लखनऊ, हिमाचल प्रदेश में सुबातु, शिलांग के ट्रेनिंग सेंटर हैं. गोरखपुर में गोरखा रेजिमेंट भर्ती का बड़ा केंद्र है. नेपाली गोरखाओं की भर्ती के लिए भारत, यूनाइटेड किंगडम और नेपाल संयुक्त रूप से भर्ती रैली की तारीख तय करते हैं. इसके बाद लिखित और शारीरिक परीक्षा पास करने वाले गोरखा तीनों देशों की सेना में भर्ती किए जाते हैं.

Trending news