अच्छी खासी सैलरी वाली नौकरी छोड़कर, उन्होंने दो साल सेल्फ स्टडी की और अपने दम पर यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा में AIR 23 हासिल किया. लेकिन इस सफलता के बावजूद वो IAS अधिकारी नहीं बन पाईं. जानिए ऐसा क्या हुआ:
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IFS Sadaf Chaudhary Success Story: सेल्फ मेड सक्सेस स्टोरीज को सुनकर ये यकीन हो जाता है कि अगर आपमें आत्म-विश्वास और अटूट प्रतिबद्धता है तो आप जरूर सफल होंगे. ऐसी ही एक प्रेरक कहानी है उत्तराखंड के रुड़की की आईएफएस सदाफ चौधरी की है, जिन्होंने ओवरऑल 23वीं रैंक हासिल की. वो भी सेल्फ स्टडी के दम पर. 27 साल की सदाफ रुड़की के इसरार अहमद और शाहबाज बानो की सबसे बड़ी बेटी हैं. उनके पिता इसरार अहमद ग्रामीण बैंक की देवबंद शाखा में मैनेजर थे. सदाफ ने ऑल इंडिया रैंक 23 हासिल किया और मुस्लिम उम्मीदवारों में सबसे पहला स्थान पाया.
सदाफ ने एक इंटरव्यू में बताया कि वह आईएफएस स्नेहा दुबे की तरह भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) अधिकारी बनना चाहती थीं. उन्होंने कहा कि मैं जिस एमएनसी में काम करती थी, वहां मुझे अच्छा वेतन मिल रहा था. मैंने वह नौकरी छोड़ दी और यूपीएससी पास करने के लिए दो साल तक कड़ी मेहनत की.
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सदाफ ने कहा कि देश की एक बेटी आईएफएस स्नेहा दुबे की पूरे देश में तारीफ हो रही है, मैं स्नेहा दुबे के नक्शेकदम पर चलना चाहती हूं. बता दें कि सदाफ ने यूपीएससी परीक्षा की तैयारी के लिए कोई कोचिंग नहीं ली. उन्होंने कहा कि मैं पिछले दो सालों से तैयारी कर रही थी.
यूपीएससी पास करने के अपने मकसद के बारे में बात करते हुए सदाफ ने कहा कि वास्तव में मेरे पास कोई मकसद नहीं था. मैं सप्ताह में एक बार अपनी तैयारी की समीक्षा और आकलन करती थी. उन्होंने कहा कि वह हमेशा टॉपर्स की रणनीति और वे क्या पढ़ते हैं, यह समझने की कोशिश करती थीं. क्योंकि उन्हें पढ़ने का शौक है. हर कोई सोचता है कि मुझे पढ़ना अच्छा लगता है, यह ठीक है, मुझे किताबें अच्छी लगती हैं, मुझे वे बहुत पसंद हैं. किताबें मेरे लिए दोस्त की तरह हैं. पढ़ना मेरा शौक है और इसी ने मुझे बिना कोचिंग के सफल बनाया है.
यूपीएससी परीक्षा पास करने के बाद सदाफ को जो रैंक मिली थी, उसमें उन्हें IAS का पद आसानी से मिल रहा था. लेकिन सदाफ ने आईएफएस सेवा का चुनाव किया. दरअसल, उनकी दादी ऐसा चाहती थीं.