Current Affairs: सबसे पहले विशेष दर्जे का विरोध हुआ और नारा दिया गया- एक देश में दो विधान, दो प्रधान, दो निशान नहीं चलेगा, नहीं चलेगा.
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नई दिल्ली: Current Affairs: देश में एक बार फिर आर्टिकल 370 की चर्चा होने लगी है. दरअसल, कुछ दिनों पहले कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह का इस पर बयान आया था. इसके बाद अब पीएम नरेंद्र मोदी ने जम्मू-कश्मीर के अलग-अलग पार्टियों के नेताओं से मुलाकात की. बताया जा रहा है कि आर्टिकल 370 को खत्म करने के बाद अब सरकार राजनीतिक प्रक्रिया को पटरी पर लाने की कोशिश कर रही है. आर्टिकल 370 एक ऐसा विषय है, जो अलग-अलग समय पर परीक्षाओं में पूछा जाता रहा है. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि इसकी लड़ाई कैसे शुरू हुई और कब इसे हटाया गया.
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कश्मीर का विलय
दरअसल, आजादी के बाद कई ऐसे छोटे राज्य थे, जो भारत संघ में शामिल होने से इनकार कर रहे थे. इनमें तीन जम्मू- कश्मीर, हैदराबाद और जूनागढ़ की रियासत प्रमुख थी. जम्मू कश्मीर के राजा हरि सिंह खुद को आजाद रखना चाहते थे. लेकिन उस वक्त उनके प्रांत में शेख अब्दुल्ला के नेत्तृव में विरोध प्रदर्शन हो रहे थे. शेख को जेल में डाल दिया गया. लेकिन जब पाकिस्तान की ओर से हमला हुआ, तो राजा हरि सिंह संधि पर हस्ताक्षर को राजी हो गए. संधि की एक शर्त शेख अब्दुल्ला की रिहाई भी थी. वे 1948 में जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री बने, जो आर्टिकल 370 के प्रबल समर्थक थे.
कब लागू हुआ आर्टिकल 370?
27 मई 1949 को भारतीय संविधान सभा में संविधान की आर्टिकल 306A पारित की गई थी. जिसमें जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था. 17 अक्टूबर 1949 को आर्टिकल 370 को पूरी तरह संविधान में अंगीकृत कर लिया गया. तब यह अस्थाई प्रावधान था. साल 1952 में शेख अब्दुल्ला और पीएम नेहरू के बीच दिल्ली में एक समझौता हुआ, जिसे दिल्ली समझौता कहा गया. यहीं जम्मू-कश्मीर का अलग झंडा, संविधान और विशेष प्रवाधान पर रजामंदी हुई.
पहला विरोध किसने किया
जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय हुआ, उस समय कश्मीर में मुस्लिम ज्यादा थे, तो जम्मू में डोगरा हिंदू. गौरतलब है कि कुछ समय पहले तक डोगरा राजा ही जम्मू-कश्मीर पर शासन चला रहे थे. ऐसे में शेख के शासन में आने के बाद साल 1949 में प्रेमनाथ डोगरा नाम के नेता ने प्रजा परिषद का गठन किया. यह पार्टी पूर्ण रूप से भारत में विलय की समर्थक थी. ऐसे में प्रजा परिषद के नेत्तृव में सबसे पहले विशेष दर्जे का विरोध हुआ और नारा दिया गया- एक देश में दो विधान, दो प्रधान, दो निशान नहीं चलेगा, नहीं चलेगा. वहीं, इस मुद्दे को भारतीय संसद में जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने प्रमुखता से उठाया. प्रजा परिषद के आंदोलन के समर्थन के लिए वह जम्मू-कश्मीर भी पहुंचे और गिरफ्तार कर लिए गए. यहीं, जेल में उनकी मृत्यु हो गई, जिसके बाद जम्मू- कश्मीर में हिंसक आंदोलन हुए.
कब खत्म हुआ आर्टिकल 370
जनसंघ से लेकर भारतीय जनता पार्टी बनने तक ये दल लगातार इसका विरोध करता रहा. साल 2019 में जब भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी, तो 5 अगस्त को आर्टिकल 370 को खत्म करने का फैसला लिया गया. इसके साथ जम्मू-कश्मीर को दो भागों में बांट दिया गया. एक अलग केंद्र शासित राज्य लद्दाख बनाया गया. वहीं, स्थिति सामान्य होने पर जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की बात कही गई. गौरतलब है कि इस बिल को सदन में वर्तमान गृहमंत्री अमित शाह ने पेश किया था.