B'day: जब अपने एक सीन को फाइनल करने के लिए गुरु दत्त ने लिए थे 104 रीटेक
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B'day: जब अपने एक सीन को फाइनल करने के लिए गुरु दत्त ने लिए थे 104 रीटेक

गुरु दत्त (Guru Dutt) भारतीय सिनेमा का वो शख्स जिसकी सिनेमा और निर्देशन की समझ का भारतीय सिनेमा पूरी तरह से कायल था. उन्हें भारतीय सिनेमा का जीनियस माना जाता है.

फाइल फोटो

नई दिल्ली: गुरु दत्त (Guru Dutt) को भारतीय सिनेमा का जीनियस माना जाता है. गुरुदत्त की प्रतिभा का अंदाजा लगाने के लिए यह तथ्य अपने आप में पर्याप्त है कि टाइम पत्रिका ने गुरुदत्त की फिल्मों 'प्यासा' और 'कागज के फूल' को दुनिया की सौ बेहतरीन फिल्मों में जगह दी थी. गुरु दत्त का जन्म 9 जुलाई, 1925 को हुआ था. उनका असली नाम वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण था. पर्सनल लाइफ की बात करें तो गुरुदत्त के पिता का नाम शिवशंकर राव पादुकोण था. मां वसंती पादुकोण की नजर में गुरुदत्त बचपन से ही बहुत नटखट और जिद्दी थे. सवाल पूछते रहना उसका स्वभाव था. कभी-कभी उनके सवालों का जवाब देते-देते मां परेशान हो जाती थीं.

बॉलीवुड में गुरुदत्त वर्ष 1944 से 1964 तक सक्रिय रहे. इस दौरान उन्होंने कई बेहतरीन फिल्में दीं. कुछ फिल्मों में खुद अभिनय भी किया, जबकि कुछ का केवल निर्देशन किया. उन्होंने बॉलीवुड में बतौर डायरेक्टर फिल्म 'बाजी' से 1951 में डेब्यू किया था. इस फिल्म में देव आनंद और गीता दत्त मुख्य भूमिका में थे. गुरु दत्त की पहली ही फिल्म की काफी तारीफ की गई. इसके बाद गुरु दत्त ने सीआईडी में वहीदा रहमान को पहली बार कास्ट किया. इसके बाद तो गुरु दत्त ने अपनी क्लासिकल फिल्मों की लाइन लगा दी. इन फिल्मों में प्यासा, साहिब बीवी और गुलाम, चौदवीं का चांद, कागज के फूल और आर-पार जैसी फिल्में शामिल हैं. आइए उनके जन्मदिन पर जानते हैं उनके जीवन की कुछ अनसुनी बातें

टेलीफोन ऑपरेटर के तौर पर काम किया
कोलकाता में गुरु दत्त ने बतौर टेलीफोन ऑपरेटर काम किया था और फिर साल 1944 में मुंबई आ गए. उस जमाने में मुंबई के नजदीकी शहर पुणे में ज्यादा फिल्में बनाई जाती थी. वहीं की प्रभात फिल्म कम्पनी में गुरु दत्त को नौकरी मिल गई. यहां पर गुरु दत्त बतौर डांस डायरेक्टर काम कर रहे थे और असिस्टेंट डायरेक्टर भी. प्रभात फिल्म कम्पनी में गुरु दत्त का कॉन्ट्रैक्ट खत्म हुआ और ये फिर बेरोजगार हो गए. ये वक्त इतना कठिन था कि ऐसा माना जाता है कि इसी दौर में गुरु दत्त ने अपनी आपबीती लिखी जिसका नाम रखा गया ‘कशमकश’ जो बाद में फिल्म ‘प्यासा’ के रूप में नजर आई.

104 रीटेक दिए
गुरु दत्त ने अपने एक सीन को फाइनल करने के लिए 104 रिटेक लिए.  प्यासा फिल्म के सिनेमैटोग्रफर वी.के. मूर्ती ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि जूनियर आर्टिस्ट के साथ कुछ सीन्स शूट हो रहे थे, लेकिन वो सही नहीं लग रहे थे. इससे गुरु दत्त बहुत चिढ़े हुए थे. इसके बाद उनका खुद का एक सीन आया. शाम के पांच बजे इस सीन का शूट शुरू हुआ. मूर्ति ने तकरीबन साढ़े पांच घंटे बाद गुरु दत्त को याद दिलाया कि अब रात के साढ़े 10 बज चुके हैं. ये सीन सुबह शूट करेंगे. गुरु दत्त नहीं माने. शूटिंग एक घंटे और चली. लेकिन गुरु दत्त मानने को तैयार नहीं थे. मूर्ति के बहुत मनाने के बाद जाकर जब वो माने, तब तक 104 रीटेक्स हो चुके थे. इसके बाद अगले दिन फिर से इसी सीन से शूट शुरू हुआ और गुरु दत्त ने पहले ही टेक में वो सीन ओके कर दिया.

बेहद अच्छे नर्तक भी थे गुरु दत्त
गुरुदत्त के बारे में यह बात कम ही लोग जानते हैं कि वह अच्छे नर्तक भी थे. उन्होंने प्रभात फिल्म्स में एक कोरियोग्राफर की हैसियत से अपने फिल्मी जीवन का आगाज किया था. वह लेखक भी थे. उन्होंने कई कहानियां लिखी थीं, जो अंग्रेजी पत्रिका 'इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया' में छपीं.

ऐसे बना 'सर जो तेरा चकराए' गाना
गुरु दत्त को कोलकाता से खास प्यार था. उनका बचपन वहीं गुजरा था. जब वो कोलकाता जाते थे तो गोलगप्पे और विक्टोरिया मेमोरियल के लॉन में बैठकर झाल मुड़ी जरूर खाते थे. एक बार उन्होंने देखा कि चारखाने की लुंगी और एक अजीब सी टोपी पहने, हाथ में तेल की बोतल लिए हुए एक मालिश वाला आवाज लगा रहा है. वहीं से एक रोल ने आकार लिया. खास तौर से एक गाना लिखवाया गया- 'सर जो तेरा चकराए'. इस गाने को जॉनी वॉकर पर फिल्माया गया जो बाद में बड़ा हिट साबित हुआ.

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