Top Ki Flop: 40 साल की झांसी की रानी को देखने नहीं गए लोग, प्रोड्यूसर को गिरवी रखना पड़ा स्टूडियो
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Top Ki Flop: 40 साल की झांसी की रानी को देखने नहीं गए लोग, प्रोड्यूसर को गिरवी रखना पड़ा स्टूडियो

Legend Sohrab Modi: वह ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों का दौर था. कोई रंगीन फिल्मों के बारे में सोचता तक नहीं था क्योंकि उसकी तकनीक ही भारत में नहीं थी. मगर तब निर्माता-निर्देशक सोहराब मोदी ने देश की सबसे महंगी और पहली टेक्नीकलर फिल्म बनाई लेकिन जनता ने फिल्म को नकार दिया.

 

 

Top Ki Flop: 40 साल की झांसी की रानी को देखने नहीं गए लोग, प्रोड्यूसर को गिरवी रखना पड़ा स्टूडियो

Film Jhansi Ki Rani: हिंदी सिनेमा के इतिहास में जिन फिल्मों की नाकामी ने लोगों को हैरान किया, उनमें 1953 में आई झांसी की रानी शामिल है. निर्माता-निर्देशक सोहराब मोदी की यह महत्वाकांक्षी फिल्म, उस दौर के बेहद बड़े बजट में बनाई गई थी. सोहराब मोदी इस फिल्म को लेकर कितने जुनूनी थे, इस बात से समझा सकता है कि उन्होंने इसे उस समय की रंगीन फिल्मों की आधुनिक टेक्नीकलर तकनीक में बनाया था. हॉलीवुड में विश्व प्रसिद्ध गॉन विद द विंड जैसी फिल्म से ऑस्कर जीत चुके कैमरामैन अर्नेस्ट हेलर झांसी की रानी के डीओपी थे. कई और तकनीशियन तथा मशीनें-उपकरण अमेरिका और ब्रिटेन से आए थे. मुंबई से बाहर करीब साढ़े पांच एकड़ में फिल्म का सैट लगाया गया था, जिसमें झांसी नगर तथा किले समेत अलग-अलग 22 इलाके बनाए गए थे.

एक कैमरा, तीन रील
इस फिल्म को हिंदी के साथ अंग्रेजी में द टाइगर एंड द फ्लेम नाम से भी रिलीज किया गया था. सोहराब मोदी की फिल्म का बजट तब 60 लाख रुपये था और इसके 55 टेक्नीकलर प्रिंट तैयार कराए गए थे. इस तकनीक में एक कैमरे से तीन अलग-अलग रील में तस्वीरें कैद होती थीं और उन्हें लैब में प्रोसेस करके एक रंगीन तस्वीर निकाली जाती थी. भारत में तब इसका काम नहीं होता था और यह फिल्म ब्रिटेन में तैयार कराई गई थी. झांसी की रानी के बजट से ज्यादा उस वक्त सिर्फ एक ही हिंदी फिल्म ने कमाई की थी. वह थी 1949 में आई चंद्रलेखा. झांसी की रानी जब रिलीज हुई तो समीक्षकों ने इसकी खूब प्रशंसा की. इसकी कहानी, संवाद और रंगों से लेकर तकनीक तक, हर चीज की. लेकिन दर्शकों को फिल्म की हीरोइन मेहताब पसंद नहीं आई और झांसी की रानी अपने समय की सबसे बड़ी फ्लॉप फिल्म बनी. दर्शकों का तर्क था कि झांसी की रानी तो मात्र 29 साल की उम्र में अंग्रेजों से लड़ती हुई शहीद हो गई थी. जबकि पर्दे पर रानी बनी दिख रहीं मेहताब लगभग 40 बरस की थीं.

चढ़ गया कर्ज
सोहराब मोदी 1947 से यह फिल्म बनाने की तैयारी कर रहे थे और उन्होंने पहले इसे ब्लैक एंड व्हाइट में बनाना शुरू किया था. लेकिन करीब 5000 मीटर फिल्म शूट करने के बाद उनका मन बदल गया और उन्होंने तय किया कि इसे रंगीन में बनाएंगे. झांसी की कहानी हिंदी की पहली फिल्म थी, जिसे टेक्नीकलर तकनीक में शूट किया गया था. फिल्म के बुरी तरह नाकाम होने पर सोहराब मोदी पर इतना कर्ज चढ़ चुका था कि उन्हें कर्ज चुकाने के लिए अपना स्टूडियो मिनर्वा मूव्हीटोन गिरवी रखना पड़ा. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और झांसी की रानी के अगले बरस फिल्म बनाई मिर्जा गालिब. मिर्जा ने पूरे देश में धूम मचाई और करीब 90 लाख रुपये का बिजनेस किया. फिल्म को उस साल का प्रेसिडेंट गोल्ड मैडल अवार्ड मिला और राष्ट्रपति भवन में इसकी स्पेशल स्क्रीनिंग हुई. पिछली फिल्म के घाटे से उबर कर सोहराब मोदी फिर सिनेमा के बिजनेस में लौट आए. 1980 में उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. 1984 में मुंबई में उनका निधन हुआ.

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