आज एक ऐसे कलाकार का जन्मदिन हैं जिन्होंने हिंदी सिनेमा में खूब नाम कमाया. कई अन्य भाषाओं में भी काम किया. उनके द्वारा निभाया एक एक रोल आज भी मुंह से बोलता है. चलिए मिलवाते हैं आपको ऐसे कलाकार से.
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बनारसी होना एक शब्द नहीं, संस्कार है. ये बात आपको कोई भी बनारसी दोस्त बता देगा. बनारस की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म 'रांझणा' फिल्म कोई भूल सकता है. इसे जीतनी बार भी देख लो लेकिन जी नहीं भरता है. इसी प्यारे से शहर से निकल कर आता है एक ऐसा सितारा, जिनकी द्वारा निभाया हर किरदार जीवंत लगता है. कॉमिक रोल हो या गुस्सैल अवतार, हर रोल में वह फिट बैठते हैं. ये कोई और नहीं बल्कि संजय मिश्रा हैं.
साधारण कद-काठी और चेहरा, कैमरे के सामने असाधारण अदाकारी संजय मिश्रा को अपने दौर के कलाकारों से बेहद अलग बनाती है. बनारस में रचे-बसे संजय मिश्रा ने करियर में बुलंदियों को छुआ तो छोटे पर्दे पर भी काम करने में संकोच महसूस नहीं किया.
बिहार में जन्मे और बनारस में बस गए
संजय मिश्रा का जन्म बनारस में हीं हुआ. वह 6 अक्टूबर 1963 को बिहार के दरभंगा में पैदा हुए. मगर नौ साल की उम्र में बनारस शिफ्ट हो गए. इस शहर ने संजय मिश्रा के ना सिर्फ करियर को गढ़ा, एक इंसान के उन गुणों से भी मिलवाया, जिसे आज भी संजय मिश्रा 'सपनों की नगरी' मुंबई में ढूंढते मिल जाते हैं.
संजय मिश्रा का करियर
संजय मिश्रा ने एक लंबा दौर देखा. 1991 में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से एक्टिंग का कोर्स किया और 'सपनों की नगरी' मुंबई में एक बड़ा नाम बनने का सफर शुरू किया. छोटा पर्दा करियर की शुरुआत में मददगार बना. फिर, 'दिल से', 'बंटी और बबली', 'अपना सपना मनी मनी', 'आंखों देखी', 'मिस टनकपुर हाजिर हो', 'प्रेम रतन धन पायो', 'मेरठिया गैंगस्टर्स' जैसी फिल्मों में दिखे.
जब एक्टिंग से मुंह मोड़ लिया था
उन्हें 'आंखों देखी' के लिए खूब वाहवाही मिली. 'फिल्म फेयर बेस्ट एक्टर क्रिटिक्स' का अवार्ड भी मिला. लेकिन, खुद को खोजने की यात्रा जारी रही. पिता के निधन से टूट चुके संजय मिश्रा ने एक्टिंग से मुंह मोड़ लिया, ढाबे पर काम करने लग गए थे. किस्मत की करामात कहिए या बॉलीवुड में उनकी फाइन-एक्टिंग की दीवानगी, एक बार फिर वापसी की और रुपहले पर्दे के ध्रुव तारा बन गए.
मायानगरी से दूर बसाया आशियाना
कुछ दिनों पहले खबर आई कि संजय मिश्रा ने मुंबई से करीब 140 किलोमीटर दूर लोनावला में नया ठिकाना बनाया है. कुटिया जैसा छोटा घर है तो साग-सब्जी उगाने की व्यवस्था भी. शूटिंग नहीं कर रहे होते हैं, तो, वह अपनी इसी दुनिया से लिपट जाते हैं.
इनपुट: एजेंसी
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