Sheikh Hasina: शेख हसीना के खिलाफ बांग्लादेश ट्रिब्यनल का अरेस्ट वारंट, भारत से उनका प्रत्यर्पण होगा या नहीं; क्या है नियम?
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Sheikh Hasina: शेख हसीना के खिलाफ बांग्लादेश ट्रिब्यनल का अरेस्ट वारंट, भारत से उनका प्रत्यर्पण होगा या नहीं; क्या है नियम?

India-Bangladesh Extradition Treaty: भारत और बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण संधि है. इसके प्रावधानों के तहत बांग्लादेश अरेस्ट वारंट जारी होने पर अपने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग कर सकता है. हालांकि, इसका यह मतलब नहीं है कि उन्हें बांग्लादेश में प्रत्यर्पित किया जाएगा.

Sheikh Hasina: शेख हसीना के खिलाफ बांग्लादेश ट्रिब्यनल का अरेस्ट वारंट, भारत से उनका प्रत्यर्पण होगा या नहीं; क्या है नियम?

Sheikh Hasina Arrest Warrant: बांग्लादेश के एक ट्रिब्यूनल ने अपने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के खिलाफ अरेस्ट वारंट जारी किया है. इसके बाद यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या उन्हें भारत से प्रत्यर्पित किया जा सकता है? दरअसल, बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (आईसीटी) ने गुरुवार (17 अक्टूबर) को पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी किया है.

'मानवता के खिलाफ अपराधों' में शेख हसीना की संलिप्तता के आरोप

बांग्लादेश में हाल ही में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों के दौरान हुए 'मानवता के खिलाफ अपराधों' में शेख हसीना की कथित संलिप्तता के लिए गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया है. इन आंदोलनों के कारण ही उन्हें सत्ता और बांग्लादेश दोनों से बाहर होना पड़ा. कुल मिलाकर, आईसीटी ने 46 लोगों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किए. इनमें 'जुलाई से अगस्त, 2024 में नरसंहार, हत्याएं और मानवता के खिलाफ अपराध करने' के आरोप में देश छोड़कर भाग गए शीर्ष अवामी नेता का नाम भी शामिल है.

भारत में हिंडन एयरबेस था शेख हसीना का अंतिम आधिकारिक ठिकाना

बांग्लादेश के अंतरिम स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, इस गर्मी के मौसम में फैली हिंसा में 1,000 से अधिक लोग मारे गए थे. 77 वर्षीय शेख हसीना का अंतिम आधिकारिक ठिकाना नई दिल्ली के पास हिंडन एयरबेस था. शुरू में उनके भारत में कुछ समय तक ही रहने की उम्मीद थी, लेकिन अब तक कहीं और शरण पाने के उनके तमाम प्रयास विफल रहे हैं. अब बांग्लादेश में जब उनकी गिरफ्तारी का वारंट जारी हो गया है, तो क्या ढाका शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग कर सकता है? आइए, इन नियमों के बारे में विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं.

क्या भारत और बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण संधि है?

हां. भारत और बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण संधि है. भारत और बांग्लादेश ने साल 2013 में एक प्रत्यर्पण संधि पर हस्ताक्षर किए थे. इसे 2016 में संशोधित भी किया गया था ताकि दोनों देशों के बीच भगोड़ों के आदान-प्रदान को आसान और तेज बनाया जा सके. यह संधि कई भारतीय भगोड़ों, विशेष रूप से उत्तर पूर्व में विद्रोही समूहों से संबंधित लोगों के संदर्भ में अस्तित्व में आई थी, जो बांग्लादेश में छिपे हुए थे और वहां से काम कर रहे थे. 

उसी समय, बांग्लादेश को जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (JMB) जैसे संगठनों से परेशानी का सामना करना पड़ रहा था, जिसके गुर्गों को भारत के पश्चिम बंगाल और असम जैसे राज्यों में छिपा हुआ पाया गया था. इस प्रत्यर्पण संधि ने भारत को 2015 में यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ़ असम (ULFA) के एक टॉप लीडर अनूप चेतिया को बांग्लादेश से भारत में सफलतापूर्वक प्रत्यर्पित करने की इजाजत दी थी. 

तब से, प्रत्यर्पण मार्ग के माध्यम से बांग्लादेश द्वारा एक और भगोड़े को भारत को सौंप दिया गया है. सूत्रों के अनुसार, भारत ने भी इस संधि के माध्यम से बांग्लादेश के कुछ भगोड़ों को उन्हें वापस सौंप दिया है.

भारत और बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण संधि क्या कहती है?

भारत और बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण संधि के मुताबिक, भारत और बांग्लादेश को ऐसे व्यक्तियों को प्रत्यर्पित करना चाहिए “जिनके खिलाफ कार्यवाही की गई है… या जिन पर आरोप लगाया गया है या जो प्रत्यर्पण योग्य अपराध करने के लिए अनुरोध करने वाले देश की अदालत द्वारा दोषी पाए गए हैं, या वांछित हैं.” इस संधि के अनुसार, प्रत्यर्पण योग्य अपराध वह है जिसके लिए न्यूनतम एक वर्ष की कारावास की सजा है. इसमें वित्तीय अपराध भी शामिल हैं. 

इसमें महत्वपूर्ण बात यह है कि किसी अपराध को प्रत्यर्पण योग्य बनाने के लिए, दोहरी आपराधिकता का सिद्धांत लागू होना चाहिए. इसका अर्थ है कि अपराध दोनों देशों में दंडनीय होना चाहिए. संधि कहती है कि प्रत्यर्पण तब भी दिया जाएगा जब “प्रत्यर्पण योग्य अपराध करने या उसमें सहायता करने, उकसाने या सहयोगी के रूप में भाग लेने का प्रयास” हो.

क्या इस अहम संधि के नियमों के कुछ अपवाद भी हैं?

हां. भारत और बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण संधि कहती है कि अगर अपराध 'राजनीतिक प्रकृति' का है तो प्रत्यर्पण से इनकार किया जा सकता है. लेकिन यह अपराध की प्रकृति तक सीमित है. और ऐसे अपराधों की सूची, जिन्हें "राजनीतिक" नहीं माना जा सकता, काफी लंबी है. इनमें हत्या, सामूहिक हत्या या गैर इरादतन हत्या, हमला, विस्फोट करना, जीवन को खतरे में डालने के इरादे से किसी व्यक्ति द्वारा विस्फोटक पदार्थ या हथियार बनाना या रखना, गिरफ्तारी का विरोध करने या उसे रोकने के इरादे से हथियारों का इस्तेमाल करना, जीवन को खतरे में डालने के इरादे से संपत्ति को नुकसान पहुंचाना, अपहरण करना या बंधक बनाना, हत्या के लिए उकसाना और आतंकवाद से संबंधित कई अन्य अपराध शामिल हैं.

क्या शेख हसीना को बांग्लादेश द्वारा प्रत्यर्पित किया जा सकता है?

शेख हसीना एक बड़ी राजनीतिक हस्ती हैं. वह चाहें तो भारत में राजनीतिक शरण लेने का दावा कर सकती हैं. हालांकि, जिन अपराधों के लिए उन पर मामला दर्ज किया गया है, उनमें से कुछ को संधि में राजनीतिक अपराधों की परिभाषा से बाहर रखा गया है. इसमें हत्या, जबरन गायब करवाना और यातना के मामले शामिल हैं.

13 अगस्त को, शेख हसीना पर एक किराना स्टोर के मालिक की हत्या के लिए मामला दर्ज किया गया था, जिसकी पिछले महीने पुलिस की गोलीबारी में मौत हो गई थी. अगले ही दिन, 2015 में एक वकील के अपहरण के आरोप में उनके खिलाफ जबरन गायब करने का मामला दर्ज किया गया. 15 अगस्त को, हसीना पर तीसरे मामले में हत्या, यातना और नरसंहार के आरोप लगाए गए.

इस तथ्य से मामला और भी जटिल हो जाता है कि संधि के अनुच्छेद 10 (3) में 2016 के संशोधन ने अनुरोध करने वाले देश के लिए किए गए अपराध का सबूत देने की जरूरत को समाप्त कर दिया. अब, प्रत्यर्पण की प्रक्रिया के लिए अनुरोध करने वाले देश की सक्षम अदालत द्वारा केवल गिरफ्तारी वारंट की आवश्यकता है.

अनुरोध मिलने पर क्या भारत को हसीना को वापस भेजना होगा?

यह जरूरी नहीं है. संधि में प्रत्यर्पण अनुरोधों को अस्वीकार करने के लिए आधार बताए गए हैं. संधि के अनुच्छेद 7 में कहा गया है कि "प्रत्यर्पण के अनुरोध को अनुरोध पाने वाले राज्य द्वारा अस्वीकार किया जा सकता है, अगर जिस व्यक्ति का प्रत्यर्पण मांगा गया है, उस पर उस राज्य की अदालतों में प्रत्यर्पण अपराध के लिए मुकदमा चलाया जा सकता है." हसीना के मामले में यह लागू नहीं होता.

प्रत्यर्पण संधि के अनुच्छेद 8 में इनकार के लिए कई आधार सूचीबद्ध

फिर भी, संधि के अनुच्छेद 8 में इनकार के लिए कई आधार सूचीबद्ध हैं. इनमें ऐसे मामले शामिल हैं जिनमें आरोप "न्याय के हित में सद्भावनापूर्वक नहीं लगाया गया है" या सैन्य अपराधों के मामले में जो "सामान्य आपराधिक कानून के तहत अपराध नहीं हैं." भारत के पास इस आधार पर हसीना के प्रत्यर्पण को अस्वीकार करने का विकल्प है कि उनके खिलाफ लगाए गए आरोप "न्याय के हित में सद्भावनापूर्वक नहीं हैं."लेकिन इससे ढाका की नई सत्तारूढ़ व्यवस्था के साथ नई दिल्ली के संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका है.

हसीना के प्रत्यर्पण का अनुरोध आने पर भारत को क्या करना चाहिए? 

अंतरराष्ट्रीय संबंधों के जानकारों के मुताहबिक, भारत को ढाका में सत्ता में आने वाले किसी भी व्यक्ति के साथ संबंध बनाने और बांग्लादेश में अपने दीर्घकालिक रणनीतिक और आर्थिक हितों को सुरक्षित करने पर ध्यान देना चाहिए. साथ ही, उसे नई दिल्ली की पुरानी मित्र और सहयोगी शेख हसीना के साथ भी खड़ा दिखना चाहिए. इसका मतलब है कि मुद्दे को राजनयिक स्तर पर ही सावधानी से सुलझाया जाना चाहिए.

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रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के एक पूर्व अधिकारी ने क्या बताया ?

इंडियन एक्सप्रेस अखबार में इस मामले में बांग्लादेश के साथ करीबी से काम करने वाले रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के एक पूर्व अधिकारी के हवाले से कहा है, "क्या हसीना को बांग्लादेश को सौंपने में हमारे महत्वपूर्ण हित निहित हैं? नहीं. फिर प्रत्यर्पण संधि की कानूनी बातें मायने नहीं रखतीं. दोनों पक्षों में वकील हैं." पूर्व सीनियर जासूस ने तर्क दिया कि इस मामले में "संतुलन बनाने की कार्रवाई" की भी जरूरत नहीं है.

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बांग्लादेश में कई समूह भारत के साथ अच्छे संबंध रखना चाहते हैं

रॉ के पूर्व अधिकारी ने कहा, "बांग्लादेश में ऐसे कई समूह हैं जो भारत के साथ अच्छे संबंध रखना चाहते हैं. अवामी लीग खत्म नहीं हुई है. इसकी जड़ें बहुत गहरी हैं. यह फिर से उभरेगी. एक प्रशासन और एक सेना है जो भारत के साथ बांग्लादेश के संबंधों को महत्व देती है. इसलिए, हमारे पास एक महत्वपूर्ण समूह है जो अच्छे संबंधों का पक्षधर है... फिर भौगोलिक वास्तविकताएं हैं. बांग्लादेश भारत से घिरा हुआ है. दोनों देशों के बीच पर्याप्त संरचनात्मक संबंध हैं."

उन्होंने कहा कि इन संबंधों की दिशा पर अभी अंतिम शब्द नहीं लिखा गया है. साथ ही सुरक्षा प्रतिष्ठानों के कुछ अन्य सूत्रों ने इस बात का जिक्र किया कि कोई भी देश अपने राष्ट्रीय हितों के खिलाफ भगोड़ों का व्यापार नहीं करता है, चाहे वह संधि के साथ हो या उसके बिना, और आखिरकार जो भी होगा वह एक राजनीतिक निर्णय होगा.

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