Bihar NDA: जिसका अंदेशा था बिहार की राजनीति उसी तरफ बढ़ रही है. बिहार के सीएम नीतीश कुमार को लेकर फिर से कड़ाके की सर्दी के बीच राजनीति के चौराहों पर गर्म चाय की प्यालियां परोसी जा रही हैं. लेकिन आखिर होगा क्या इस निष्कर्ष की ओर कोई नहीं जा रहा. इसका मुख्य कारण खुद नीतीश हैं.
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Nitish Kumar health: बिहार में बहार है...नीतीशे कुमार है यहां से लेकर नीतीश सबके हैं. यहां तक. बिहार की सीएम की राजनीतिक व्याख्या ऐसे की जा सकती है कि नीतीश कब क्या कर दें किसी को नहीं पता. असल में बिहार की राजनीति में एक बार फिर उथल-पुथल के संकेत मिल रहे हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की चुप्पी और अचानक अस्वस्थ होने की खबरें चर्चा का विषय बन गई हैं. इन सबके बीच बीजेपी और जेडीयू के बीच संबंधों में तनाव की खबरें भी सियासी गलियारों में जोर पकड़ रही हैं. पिछले हफ्ते केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व संबंधी बयान, जेडीयू नेताओं का बदलता रुख और एनडीए की बैठकों ने इस चर्चा को और हवा दी है कि नीतीश कुमार क्या फिर से पाला बदलने की तैयारी में हैं? लेकिन अगर ऐसा नहीं है तो आखिर क्या है.
दरअसल, पिछले सप्ताह अमित शाह ने विधानसभा चुनावों में नेतृत्व को लेकर टिप्पणी की थी, जिसे लेकर सियासी अटकलें तेज हो गईं. उन्होंने यह कह दिया था कि अभी इस पर निर्णय लेना बाकी है कि चुनाव किसके नेतृत्व में लड़ा जाएगा. जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा और केंद्रीय मंत्री ललन सिंह के बयान भले ही बीजेपी के पक्ष में नजर आए हों, लेकिन नीतीश की चुप्पी ने सबको हैरान कर दिया है. बीजेपी कोर कमेटी की दिल्ली में अचानक बैठक और 8 जनवरी को अमित शाह के बिहार दौरे की घोषणा ने इस तनाव को और स्पष्ट कर दिया है.
सीएम नीतीश कुमार की चुप्पी और अस्वस्थता को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. कुछ एक्सपर्ट्स तो इसे उनकी पुरानी रणनीति मान रहे हैं, जहां वे अपनी चुप्पी को अपने अगले कदम के संकेत के रूप में इस्तेमाल करते हैं. बिहार की राजनीति में पहले भी देखा गया है कि जब-जब नीतीश कुमार खामोश होते हैं, कुछ बड़ा बदलाव होता है. लोग मान रहे हैं कि अगर वे एनडीए से अलग होते हैं, तो उनका अगला ठिकाना 'इंडिया' गठबंधन ही होगा.
हालांकि नीतीश कुमार के लिए एनडीए से अलग होना इतना आसान नहीं होगा. बीजेपी ने उन्हें बिना शर्त समर्थन दिया, यहां तक कि जेडीयू के कमजोर प्रदर्शन के बावजूद मुख्यमंत्री पद पर बने रहने का मौका दिया. इसके अलावा, 'इंडिया' में तेजस्वी यादव जैसे नेता पहले से मुख्यमंत्री पद के बड़े दावेदार हैं. ऐसे में नीतीश के लिए 'इंडिया' में जगह बनाना मुश्किल होगा.
नीतीश कुमार के पास अभी भी बिहार में मजबूत राजनीतिक पकड़ है. अगर वे एनडीए से अलग होते हैं तो बीजेपी के लिए नई सरकार बनाना चुनौतीपूर्ण होगा. वहीं आरजेडी के साथ गठबंधन की संभावना भी कम ही नजर आती है. एक्सपर्ट्स का मानना है कि इन परिस्थितियों में, नीतीश का एनडीए में बने रहना ही उनके लिए बेहतर विकल्प हो सकता है. पटना से दिल्ली तक फैली इस हलचल के बीच बिहार की राजनीति में संभावनाएं लगातार बनी हुई हैं, ऐसा भी हो सकता है कि नीतीश स्वास्थ्य लाभ ले रहे हों. क्या होगा इस पर से भी पर्दा जल्द ही उठ जाएगा.