Ramlila Maidan Rally: जब 77 में अटल जी को सुनने दिल्ली की जनता रामलीला मैदान में उतर पड़ी
Advertisement
trendingNow12182395

Ramlila Maidan Rally: जब 77 में अटल जी को सुनने दिल्ली की जनता रामलीला मैदान में उतर पड़ी

Ramlila Maidan Rally News: दिल्ली (Delhi) का एतिहासिक रामलीला मैदान कई ऐतिहासिक रैलियों का गवाह रहा है. आज इंडिया अलायंस की रैली (India block Rally) से इतर बात 1977 में इसी मैदान पर आयोजित उस रैली की जिसे सुनने के लिए अनगिनत लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था. 

Ramlila Maidan Rally: जब 77 में अटल जी को सुनने दिल्ली की जनता रामलीला मैदान में उतर पड़ी

Janta Party victory rally: लोकसभा चुनावों से पहले रामलीला मैदान में होने वाली रैलियों का अपना अलग इतिहास है. 2024 के लोकसभा चुनावों (Lok Sabha Chunav 2024) के लिए होने वाली वोटिंग से पहले 31 मार्च को रामलीला मैदान में इंडिया ब्लॉक की रैली (India block rally) हुई. जिसमें 28 दलों के नेताओं का भाषण हुआ. यहां जुटी भीड़ के लेकर तमाम दावे किए जा रहे हैं. ऐसे में अब बात रामलीला मैदान में साल 1977 के लोकसभा चुनाव के बाद हुई एक रैली की. इस रैली में अटल बिहारी वाजपेयी ने दिल्ली के रामलीला मैदान में जुटे लोगों की भीड़ को जोश से भर दिया था. 

'1975 में कांग्रेस ने विपक्षी दलों के नेताओं को जेल भेजा था, 1977 में जनता ने लिया बदला'

1975 की बात है. जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने भारत में आपातकाल (Emergency in 1975) की घोषणा की थी. जिसके बाद तत्कालीन विपक्षी नेताओं ने कहा था कि इमरजेंसी लगाने से कांग्रेस सरकार की मुखिया इंदिरा गांधी को तानाशाही चलाने की शक्तियां मिल गई थीं. 25 जून 1975 को इमरजेंसी का ऐलान हुआ. 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक भारत में आपातकाल रहा. आपातकाल की घोषणा के बाद विपक्ष के सारे नेता गिरफ्तार करके सलाखों के पीछे यानी जेल में धकेल दिए गए थे. 

रामलीला मैदान में हुआ था महाजुटान

मार्च 1977 में आपातकाल यानी इमरजेंसी हटाए जाने से पहले, इंदिरा गांधी ने जनवरी 1977 में नए सिरे से चुनाव कराने का फैसला किया तो जेल में डाले गए सभी विपक्षी नेताओं को जेल से रिहा करने का आदेश दिया था. इसकी पृष्ठभूमि में जनवरी 1977 में दिल्ली में जनता पार्टी की स्थापना हुई जिसके अध्यक्ष मोरारजी देसाई और उपाध्यक्ष चौधरी चरण सिंह थे. उस दौर में सरकार की तानाशाही के खिलाफ भारतीय जनसंघ (BJP), ​​भारतीय लोक दल, कांग्रेस (O), और सोशलिस्ट पार्टी उन समूहों में से थे जो पार्टी की स्थापना के लिए गठबंधन करते एक साथ आए थे. 1977 के लोकसभा चुनावों में जनता पार्टी ने कांग्रेस का विजय रथ रोक दिया था. तब विपक्षी दलों की मेहनत रंग लाई और कांग्रेस पहली बार सत्ता से बाहर हो गई थी. उसके बड़े-बड़े दिग्गज लोकसभा चुनाव हार गए थे. कई कांग्रेसी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी.

2024 में विपक्षी दल एक साथ क्यों आए?

31 मार्च 2024 को पूरा विपक्ष एक साथ रामलीला मैदान में आया. उन्होंने कहा कि ये रैली लोकतंत्र बचाने के लिए बुलाई गई है. जबकि 28 दलों के नेताओं ने अपने भाषण में कहीं न कहीं चुनाव और अरविंद केजरीवाल की ईडी में हिरासत और हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी का जिक्र किया. यानी कुल मिलाकर इंडिया ब्लॉक की रैली में केजरीवाल की हिरासत और हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी का मुद्धा छाया रहा. सुनीता केजरीवाल, कल्पना सोरेन, तेजस्वी यादव जैसे नेताओं ने बार-बार एक ही बात दोहराई. कुल मिलाकर विपक्ष के नेताओं के जेल में जाने का मुद्दा फोकस में रहा. रैली शुरू होने से पहले मंच पर एक पोस्टर लगा था जिसमें केजरीवाल सलाखों के पीछे दिख रहे थे. उसे हटा दिया गया. केजरीवाल का जेल में बंद वाला पोस्टर उसे ऐन मौके पर हटाया गया. जबकि 1977 में रामलीला मैदान में हुई रैली कई मायनों में आज से कहीं अलग और भारत की तस्वीर बदलने वाली थी

1977 में विपक्षी दल एक साथ क्यों आए? 

लोकतंत्र को बचाए रखने की लड़ाई 1977 के चुनावों का मुख्य एजेंडा था. जनता पार्टी ने इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को गिराने के मकसद से चुनाव लड़ा. उनका अभियान कांग्रेस शासन के गैर-लोकतांत्रिक चरित्र और कांग्रेस सरकार की ज्यादतियों पर केंद्रित था. उस दौरान कई मुद्दे उठाए गए थे जिसमें भारत की घरेलू मोर्चे पर स्थिति, आपातकाल के दौरान प्रेस की आजादी पर रोक, नागरिकों की स्वतंत्रता पर लगाए गए प्रतिबंधों और उस दौर में की गई जबरन नसबंदी का जिक्र हुआ था. उस समय विपक्ष के सभी नेता भारत में लोकतंत्र बहाल करने के वादे के साथ चुनाव में उतरे और जीते थे.

उसी विपक्षी महाजुटान के बीच लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने 'इंदिरा हटाओ देश बचाओ का नारा' दिया था. ये नारा करोड़ों भारतीयों की जुबान पर था. इस नारे की चुनावी हवा ने आपातकाल के बाद कांग्रेस को सत्ता से उखाड़ फेंका था.

वो 'अटल' भाषण  

1977 में इसी मैदान पर आयोजित उस रैली में अटल बिहारी वाजपेई को सुनने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था. रामलीला मैदान के बाहर भारी भीड़ थी. उस दौर के गवाह रहे लोगों का कहना है कि मानो उस दिन वहां तिल रखने की जगह नहीं बची थी. तब अटल बिहारी वाजपेई ने अपने कालजयी भाषण में कहा था- 'वोट देकर आपकी जिम्मेदारी खत्म नहीं होती. आप नींद में मत सो जाना.'

1977 में ऐसी हो गई थी कांग्रेस की हालत

1977 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी यूपी, बिहार और हरियाणा में एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. जनता पार्टी, विपक्षी दलों के तत्कालीन गठबंधन भारतीय लोक दल के प्रतीक पर चुनाव लड़ा गया था. तब कांग्रेस की ऐतिहासिक और करारी हार हुई थी. खासकर हिंदी भाषी बेल्ट से कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया था. कांग्रेस की महाविनाशकारी हार के बाद इमरजेंसी हटाई गई. इंदिरा गांधी ने पद छोड़ा. तब मोरारजी देसाई  प्रधानमंत्री बनें. वो देश के पहले गैर-कांग्रेस प्रधानमंत्री थे. इस तरह भारत में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनी थी.

Trending news