Sheikh Hasina की 49 साल पुरानी कहानी, जब दिल्ली के लाजपत नगर में पहचान छुपाकर रहीं; अब फिर आई वैसी ही मुसीबत
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Sheikh Hasina की 49 साल पुरानी कहानी, जब दिल्ली के लाजपत नगर में पहचान छुपाकर रहीं; अब फिर आई वैसी ही मुसीबत

Sheikh Hasina Refuge in India: साल 1975 में अपने पिता शेख मुजीबुर रहमान सहित परिवार के 18 सदस्यों की हत्या के बाद शेख हसीना ने पहचान छुपाकर भारत में शरण ली थी. अब एक बार फिर बांग्लादेश से भागने के बाद वो भारत पहुंची हैं.

Sheikh Hasina की 49 साल पुरानी कहानी, जब दिल्ली के लाजपत नगर में पहचान छुपाकर रहीं; अब फिर आई वैसी ही मुसीबत

Sheikh Hasina Secret Resident of Delhi Lajpat Nagar: बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना का 15 साल का शासन सोमवार (5 अगस्त) को खत्म हो गया. बांग्लादेश में भारी विरोध प्रदर्शन और अराजकता के बीच शेख हसीना हार गईं और आरक्षण के विरोध में शुरू हुआ आंदोलन तख्तापलट तक आ गई. इसके बाद शेख हसीना को इस्तीफा देने के साथ ही देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा. इसी के साथ शेख हसीना के पार्टी आवामी लीग का अंत हो गया. इसके बाद सेना ने घोषणा की है कि वह अंतरिम सरकार बनाएगी. तख्तापलट के बाद शेख हसीना ने सीधे भारत का रुख किया और उनका विमान सोमवार की शाम 5 बजकर 36 मिनट पर गाजियाबाद के हिंडन एयरबेस पर पर उतरा. इसके बाद सवाल उठता है कि आखिर शेख हसीना ने बांग्लादेश से भागने के बाद भारत को ही क्यों चुना. बता दें कि यह पहला मौका नहीं है जब उन्होंने भारत में शरण ली है. इससे पहले शेख मुजीबुर रहमान की हत्या के बाद भी कई सालों तक वह भारत में रही थीं.

1975 में शेख हसीना ने भारत में ली थी शरण

साल 1975 में नरसंहार में अपने पिता शेख मुजीबुर रहमान सहित परिवार के 18 सदस्यों की हत्या के बाद भारत आई थीं और पहचान छुपाकर भारत में शरण ली थी. उन्होंने साल 1975 से 1981 तक अपने पति, बच्चों और बहन के साथ भारत में शरण ली थी. इस दौरान वो करीब छह साल तक दिल्ली के पंडारा रोड में पहचान बदलकर रही थीं. 

15 अगस्त 1975 को शेख हसीना के पिता और बांग्लादेश के संस्थापक बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की उनके परिवार के 18 सदस्यों के साथ निर्मम हत्या कर दी गई थी. शेख हसीना उस समय अपने पति एम.ए. वाजेद मिया के साथ पश्चिम जर्मनी में थीं और उनके पास भारत में शरण लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था. भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ बांग्लादेश के 1971 के मुक्ति संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इसके बाद भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत ने शेख हसीना की मदद की और उन्हें सुरक्षा और आश्रय प्रदान किया.

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तब शेख हसीना ने भारत में क्यों ली थी शरण?

जर्मनी छोड़ने के बाद शेख हसीना अपने दो छोटे और परिवार के साथ भारत में शरण ली. तब उन्हें दिल्ली में एक सुरक्षित घर में रखा गया था, जहां वे अपनी कड़ी सुरक्षा के बीच रहते थे. उन्होंने 2022 के इंटरव्यू में में बताया कि कैसे वह दिल्ली में गुप्त गुप्त रूप से रहती थी. उन्होंने बताया था कि इंदिरा गांधी ने सुरक्षा देने को लेकर सूचना भेजी, जिसके बाद हमने दिल्ली आने का फैसला किया, क्योंकि हमारे मन में था कि अगर हम दिल्ली गए तो दिल्ली से हम अपने देश वापस जा सकेंगे. और तब हम जान पाएंगे कि परिवार के कितने सदस्य अभी भी जीवित हैं.

दिल्ली पहुंचने के बाद हसीना इंदिरा गांधी से मिलीं और इसी मुलाकात में उन्हें अपने परिवार के 18 सदस्यों की हत्या के बारे में पता चला. भारत में शेख हसीना के रहने से न केवल उनकी सुरक्षा सुनिश्चित हुई बल्कि उन्हें ऐसे संबंध बनाने का मौका भी मिला जो बाद में उनके राजनीतिक करियर में महत्वपूर्ण साबित हुए. 2022 में उन्होंने बताया था कि भारत में शरण के दौरान पहले दो से तीन साल काफी कठिन थे. खासकर उनके दो बच्चों एक बेटा और एक बेटी के लिए वह समय काफी चैलेंजिंग था, क्योंकि तब वो छोटे थे. हसीना ने कहा कि बच्चे रोते थे और अपने दादा-दादी, खासकर अपने मामा के पास ले जाने का अनुरोध करते थे. उन्हें उन्हें मेरे छोटे भाई शेख रसेल की सबसे ज्यादा याद आती थी.

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पहले लाजपत नगर में पहचान छुपाकर रही थीं शेख हसीना

साल 1975 में भारत में शरण लेने के बाद शेख हसीना पहले 56 रिंग रोड और फिर लाजपत नगर-3 में पहचान छुपाकर रहीं. इसके बाद वह लुटियंस दिल्ली के पंडारा रोड स्थित एक घर में शिफ्ट हो गईं और 1981 तक अपनी पहचान छुपा कर रहीं. हसीना को आज भी वे दिन याद हैं और वे भारत और गांधी परिवार की आभारी हैं. 6 साल बाद 17 मई 1981 को शेख हसीना बांग्लादेश लौटीं, जहां उन्हें अवामी लीग का महासचिव चुना गया. बांग्लादेश लौटने के बदा उन्होंने देश पर कब्जा करने वाले सैन्य शासन के खिलाफ एक लंबी और कठिन लड़ाई की शुरुआत की. भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल जाने सहित कई चुनौतियों का सामना करने के बावजूद उन्होंने ने दृढ़ता दिखाई. अंततः 1996 में सत्ता में आईं और पहली बार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनीं. हालांकि, अब एक बार फिर शेख हसीना अपने जीवन के कठिन दौर में हैं और एक बार फिर भारत में शरण ली है.

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इस बार भी शेख हसीना ने भारत को ही क्यों चुना?

शेख हसीना के शुरू से ही भारत से अच्छे संबंध रहे हैं और पिछले कई सालों से भारत शेख हसीना का अहम समर्थक रहा है, जिसने दोनों देशों के बीच पारस्परिक रूप से लाभकारी संबंधों को बढ़ावा दिया है. बांग्लादेश का बॉर्डर भारत के कई पूर्वोत्तर राज्यों से मिलता है, जो कई दशकों से उग्रवादी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. ढाका में एक मैत्रीपूर्ण शासन इन चुनौतियों से निपटने में भारत की मदद की है. अपने कार्यकाल के दौरान, शेख हसीना ने कथित तौर पर बांग्लादेश में भारत विरोधी उग्रवादी समूहों पर नकेल कसी, जिससे दिल्ली में उनकी साख बनी. इसके अलावा उन्होंने भारत को ट्रांजिट राइट भी दिए, जिससे पूर्वोत्तर राज्यों में माल की आवाजाही सुगम हुई.

शेख हसीना ने 1996 में अपने पहले चुनाव के बाद से भारत के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखे हैं और लगातार दिल्ली के साथ ढाका के मजबूत संबंधों का बचाव करती रही हैं. 2022 में भारत की यात्रा के दौरान उन्होंने बांग्लादेश के लोगों को याद दिलाया कि कैसे भारत ने अपनी सरकार, लोगों और सशस्त्र बलों के साथ मिलकर 1971 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बांग्लादेश का समर्थन किया था. हालांकि, भारत के साथ उनके घनिष्ठ संबंधों और भारत द्वारा उन्हें दिए जाने वाले समर्थन की विपक्षी दलों और कार्यकर्ताओं द्वारा आलोचना की गई है. उनका तर्क है कि भारत को बांग्लादेश के लोगों का समर्थन करना चाहिए, किसी खास पार्टी का नहीं.

पिछले एक दशक में भारत और बांग्लादेश के बीच रणनीतिक संबंध लगातार मजबूत हुए हैं. बांग्लादेश भारत की 'पड़ोसी पहले' नीति का मुख्य लाभार्थी रहा है. खासकर ऊर्जा, वित्तीय और भौतिक संपर्क को मजबूत करने के उद्देश्य से अनुदान और लोन दी है. कनेक्टिविटी क्षेत्र में उपलब्धियों में त्रिपुरा में फेनी नदी पर मैत्री सेतु पुल का उद्घाटन और चिलाहाटी-हल्दीबाड़ी रेल लिंक का शुभारंभ शामिल है. बांग्लादेश भारत का सबसे बड़ा विकास साझेदार है, जिसके लिए नई दिल्ली ने लगभग एक-चौथाई ऋण प्रतिबद्धताएं दी हैं. बांग्लादेश दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा व्यापार साझेदार भी है और भारत एशिया में बांग्लादेश का दूसरा सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है.

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