Syria News: गृहयुद्ध के चलते सीरिया में बड़ा संकट खड़ा हो गया है. लेकिन यह सब आखिर हुआ कैसे.. ये सब एक दिन में नहीं हुआ. इसे समझने की जरूरत है, इसके समाधान की भी जरूरत है. अमेरिका जैसे देश अगर हाथ खींच लेंगे फिर तो मामला और बिगड़ जाएगा. जैसा कि होता दिख रहा है. इन सबके बीच असद देश छोड़कर भाग गए हैं.. उनके प्लेन क्रैश होने की खबर भी आ रही है लेकिन अभी इसकी पुष्टि नहीं हुई है.
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Crisis in Syria: ये इतिहास का दोष है या फिर किसका दोष है.. रह-रहकर मिडिल ईस्ट सुलग उठता है. वहां शांति रह ही नहीं पाती है. अब ताजा मामला सीरिया का आ गया है. सीरिया अपने सबसे कठिन दौर से गुजर रहा है. लंबे समय से हुए गृहयुद्ध ने इस देश को अंदर से झकझोर कर रख दिया है. इसका असर केवल सीरिया तक सीमित नहीं रहा. लाखों लोगों की मौत, लाखों की बेघर हालत और देश की बर्बादी इस युद्ध की दर्दनाक हकीकत है. यह युद्ध एक शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक विद्रोह से शुरू हुआ था, लेकिन धीरे-धीरे यह एक जटिल सैन्य संघर्ष में बदल गया. इसमें न केवल सीरियाई सरकार और विद्रोही बल शामिल हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय शक्तियां भी इसमें शामिल हैं या घसीटी गईं हैं. आइए जानते हैं कि आखिर इस युद्ध के कारण क्या हैं, विद्रोहियों की मांगें क्या हैं और वर्तमान हालात किस ओर इशारा कर रहे हैं.
सीरिया में 2011 में अरब स्प्रिंग के दौरान बशर अल-असद सरकार के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन शुरू हुए. जनता भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और असद की तानाशाही से त्रस्त थी. इसे अरेबियन स्प्रिंग का हिस्सा माना जाता था, जिसमें सीरिया के नागरिक शासन में सुधार की मांग कर रहे थे. लेकिन सरकार ने इन विरोधों को बलपूर्वक दबाने का प्रयास किया, जिससे स्थिति और बिगड़ गई. लंबे समय से असद का परिवार सत्ता पर काबिज रहा. धीरे-धीरे ये विरोध गृहयुद्ध में बदल गया, जिसमें विद्रोही गुट, आतंकवादी संगठन, और बाहरी शक्तियां शामिल हो गईं. असद सरकार को रूस और ईरान का समर्थन मिला, जबकि अमेरिका, तुर्की, और अन्य पश्चिमी देश विद्रोहियों के पक्ष में खड़े हुए.
सीरियाई विद्रोहियों की प्रमुख मांग बशर अल-असद के शासन का अंत और लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना है. उनके उद्देश्य में मानवाधिकारों की रक्षा, समानता और देश की एकता शामिल है. हालांकि, विद्रोहियों के बीच भी मतभेद हैं. कुछ गुट इस्लामी शासन स्थापित करना चाहते हैं, जबकि कुछ लोकतांत्रिक व्यवस्था के पक्षधर हैं. प्रमुख गुटों में हयात तहरीर अल-शाम, सीरियन नेशनल आर्मी, और अह्रार अल-शाम शामिल हैं. ये गुट अपने-अपने बाहरी समर्थकों पर निर्भर हैं, जिससे संकट और जटिल हो गया है.
सीरिया का गृहयुद्ध केवल देश के भीतर ही सीमित नहीं है. यह एक अंतरराष्ट्रीय भू-राजनीतिक संकट बन चुका है. रूस और ईरान असद के सबसे बड़े समर्थक हैं, जबकि अमेरिका और उसके सहयोगी विद्रोहियों की तरफ से बोलते हैं. इन शक्तियों के टकराव ने संघर्ष को और लंबा और जटिल बना दिया है. डोनाल्ड ट्रंप ने तो यहां तक कह दियाकि अमेरिका को इस संघर्ष से बाहर रहना चाहिए जो अमेरिकी नीति में बदलाव का संकेत है.
सीरिया में कई देशों का हस्तक्षेप भी इस संघर्ष को बढ़ावा दे रहा है. रूस असद का मुख्य सहयोगी है, ने सैन्य सहायता प्रदान की है और सीरिया में अपने हवाई और नौसैनिक अड्डे स्थापित किए हैं. ईरान भी सीरिया में असद सरकार का समर्थन कर रहा है, और इसके प्रभाव से क्षेत्रीय राजनीति में बदलाव आया है. दूसरी ओर, अमेरिका और तुर्की ने विद्रोहियों का समर्थन किया है, विशेष रूप से कुर्दिश गुटों को, जिन्हें तुर्की अपने खिलाफ मानता है. इन विदेशी ताकतों के प्रभाव के कारण सीरिया में संघर्ष का समाधान और भी जटिल हो गया है.
इस संघर्ष का सबसे गंभीर पहलू मानवाधिकारों की स्थिति है. युद्ध के कारण लाखों लोग जानमाल की हानि और भुखमरी का शिकार हो रहे हैं. चिकित्सा सेवाओं की भारी कमी है और नागरिकों को सुरक्षित स्थानों पर शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. सीरिया में मानवाधिकारों का उल्लंघन न केवल सरकार द्वारा किया जा रहा है, बल्कि विद्रोही गुटों और आतंकवादी संगठनों द्वारा भी बड़े पैमाने पर हो रहा है. संयुक्त राष्ट्र और अन्य मानवाधिकार संगठन लगातार संघर्ष को खत्म करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय से हस्तक्षेप की अपील कर रहे हैं.
सीरिया में हिंसा और संकट का समाधान निकट भविष्य में होता नहीं दिख रहा है. शांति वार्ता बार-बार विफल हो रही है और विद्रोही गुटों में फूट के कारण कोई ठोस हल नहीं निकल पाया है. ऐसे में अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए यह चुनौती बनी हुई है कि वे सीरिया में स्थिरता कैसे लाएं. साथ ही, सीरियाई नागरिकों की सुरक्षा और पुनर्वास के लिए ठोस कदम उठाना भी समय की मांग है. भारत ने भी अपने नागरिकों को वहां की यात्रा से बचने की सलाह दी है. फिलहाल सीरिया का संघर्ष एक ऐसा जख्म है जिसे भरने में दशकों लग सकते हैं.