Population Management: आबादी बढ़ाने पर क्यों आमादा हो रहे नायडू और स्टालिन? 'बच्चे ज्यादा अच्छे' के पीछे क्या है राजनीति
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Population Management: आबादी बढ़ाने पर क्यों आमादा हो रहे नायडू और स्टालिन? 'बच्चे ज्यादा अच्छे' के पीछे क्या है राजनीति

Population Policy Shift: देश के दक्षिणी राज्यों में 'ज्यादा बच्चे ही अच्छे' को लेकर आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और तमिलनाडु के सीएम स्टालिन ने जोर लगा दिया है. बूढ़ी होती आबादी पर चिंता जताते हुए नायडू और स्टालिन ने दक्षिण के कम हो रहे डेमोग्राफिक डिविडेंड को लेकर फिर से नॉर्थ बनाम साउथ की बहस छेड़ दी है. आइए, जानने की कोशिश करते हैं कि इन नेताओं का मकसद राज्यों में युवाओं की आबादी बढ़ाना है बात कुछ और ही है?

Population Management: आबादी बढ़ाने पर क्यों आमादा हो रहे नायडू और स्टालिन? 'बच्चे ज्यादा अच्छे' के पीछे क्या है राजनीति

Ageing Population And Fertility Rate: देश के दक्षिण में दो राज्यों आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के मुख्यमंत्रियों चंद्रबाबू नायडू और एमके स्टालिन के हालिया बयानों के बाद आबादी को लेकर एक नए किस्म की बहस शुरू हो गई है. इस बहस में राज्यों में बूढ़ी होती आबादी, कम हो रहे डेमोग्राफिक डिविडेंड और पलायन से वर्क फोर्स की कमी पर चिंता जताई जा रही है. 

अलग-अलग राजनीतिक गठबंधनों में शामिल नायडू और स्टालिन एक साथ

अलग-अलग राजनीतिक गठबंधनों में शामिल टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू और डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन के पॉपुलेशन पॉलिसी पर 180 डिग्री शिफ्ट होकर एक सुर में बोलने से मुद्दे को अलग तरह से भी देखा जाने लगा है. दोनों नेताओं के इन बयानों के पीछे नॉर्थ बनाम साउथ की बहस से दूसरी सियासी चिंता भी शुरू हो गई है. आइए, जानने की कोशिश करते हैं कि नायडू और स्टालिन के बयानों का असली मकसद और क्या हो सकता है?

आंध्र प्रदेश में पॉपुलेशन पॉलिसी को खत्म कर नए कानून का प्लान

आंध्र प्रदेश में सीएम नायडू ने पहले से लागू पॉपुलेशन पॉलिसी को खत्म कर नया कानून लाने के साथ ही ज्यादा बच्चे पैदा करने वालों को इंसेटिव्स और छूट देने का प्लान बनाया है. पुराने नियम के तहत आंध्र में अब तक दो से ज्यादा बच्चे वाले लोग लोग चुनाव नहीं लड़ सकते थे, नए कानून में यह प्रावधान होगा कि स्थानीय निकाय चुनाव वही लोग लड़ सकेंगे जिनके दो से अधिक बच्चे होंगे. नायडू ने अपने इस कदम के पीछे राज्य में बढ़ती बुजुर्ग आबादी के खतरे और पलायन का हवाला दिया. 

नायडू के बाद स्टालिन ने नए कपल से कहा, 16-16 बच्चे पैदा करें

नायडू के बाद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने सीधे आह्वान कर दिया कि लोग 16-16 बच्चे पैदा करें. उन्होंने खुलकर संसदीय सीटों की संख्या का राग छेड़ दिया. स्टालिन ने कहा है कि पहले के लोग नए कपल को 16 संतान का आशीर्वाद देते थे. हालांकि, इसका मतलब 16 संतान नहीं बल्कि 16 तरह की संपत्ति होता था. अब ये आशीर्वाद कोई नहीं देता. उन्होंने कहा कि शायद अब समय आ गया है कि नए कपल 16-16 बच्चे पैदा करें. स्टालिन ने परिसीमन का जिक्र नहीं किया, लेकिन आबादी घटने पर लोकसभा की सीट कम होने का हवाला दिया.

राष्ट्रीय औसत प्रजनन दर से कम है दक्षिण के राज्यों का आंकड़ा

नायडू ने कहा कि देश में 2.1 फीसदी प्रजनन दर के मुकाबले आंध्र का औसत 1.6 होना ठीक स्थिति नहीं है. उन्होंने नई जनसंख्या नीति की बात करते हुए आंध्र ही नहीं दो कदम आगे बढ़कर पूरे दक्षिण में जनसंख्या बढ़ाने पर जोर दिया. इसके बाद स्टालिन ने लोकसभा सीटों का हवाला दिया. दक्षिण के प्रमुख राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बयानों से राष्ट्रीय राजनीति में नॉर्थ बनाम साउथ की नई बहस भी शुरू हो गई. दरअसल, अपने देश में जनसंख्या के अनुपात में ही संसदीय सीटों का प्रावधान है. इसके लिए परिसीमन के जरिये सीटों की संख्या बढ़ाई जाने वाली है. 

सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए कदम उठाने कब शुरू किए?

फिलहाल देश में 10 लाख की जनसंख्या पर एक सांसद का प्रावधान है. मौजूदा समय में लोकसभा में 545 सदस्य हैं. यह सीट संख्या 1971 की जनगणना पर आधारित है. वहीं, परिसीमन पर पहले सन 2000 और फिर 2026 तक के लिए रोक लगा दी गई थी. आजादी के बाद पहली बार 1951 में हुई जनगणना के मुताबिक देश की आबादी 36 करोड़ थी. 1971 की जनगणना में 55 करोड़ तक पहुंच गई. तब केंद्र सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए कदम उठाने शुरू किए थे. 

जनसंख्या के आधार पर लोकसभा सीटों के परिसीमन का विरोध क्यों?

दक्षिण के राज्यों ने जागरुकता का परिचय देते हुए जनसंख्या नियंत्रण के लिए तमाम कदम उठाए और कामयाबी हासिल की. इसके उलट उत्तर भारत के राज्यों में जनसंख्या वृद्धि पर लगाम नहीं लग पाई. अब दक्षिण के राज्य जनसंख्या के आधार पर लोकसभा सीटों के परिसीमन को अपने साथ अन्याय बताते हुए विरोध करते हैं. उनकी दलील है कि उन्होंने जनसंख्या नियंत्रण में योगदान दिया था. अब अगर आबादी के आधार पर सीटें बढ़ाई गईं तो उनकी सीटें कम हो जाएंगी.

लोकसभा सीटों की संख्या को लेकर है आंध्र और तमिलनाडु की चिंता

लोकसभा सीटों की संख्या का जनसंख्या से संबंध और दक्षिण के विरोध के लिहाज से देखें तो इस समय हिंदी पट्टी के राज्यों में कुल 225 सीटें हैं. वहीं, दक्षिण में 130 सीटें हैं. आंध्र प्रदेश में कुल 25 सीटें हैं और आबादी करीब 5 करोड़ है. आबादी के हिसाब से सीटें बढ़ी तो दोगुनी होकर 50 तक ही पहुंचेगी. वहीं, तमिलनाडु में सीटों की संख्या 39 से बढ़कर 77 तक ही पहुंच सकेगी. जबकि, उत्तर के दो राज्यों को देखें तो बिहार में सीटों की संख्या 40 से बढ़कर 131 पहुंच जाएगी. 19 करोड़ आबादी वाले यूपी में सीटें 80 से बढ़कर 131 पहुंच जाएंगी.

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दक्षिण में मजबूत क्षेत्रीय पार्टियों को किन राजनीतिक बातों का डर?

क्षेत्रीय या स्थानीय राजनीतिक पार्टियों के वर्चस्व वाले दक्षिण के राज्यों को लगता है कि उत्तर भारत में पहले से ताकतवर राष्ट्रीय पार्टी खासकर भाजपा की ताकत बढ़ी तो वह हिंदी पट्टी और उत्तर भारत के राज्यों के फायदे वाली नीतियां बनाकर उन्हें फायदा पहुंचा सकती है. वहीं, साल 2000 में नई जनसंख्या नीति लागू कराने वाली भाजपा और एनडीए सरकार अब अन्य राज्यों में भी यही नियम लागू कर रही है. हाल ही में यूपी में योगी आदित्यनाथ सरकार ने भी दो से ज्यादा बच्चों वाले लोगों के लिए कठोर नियम बनाए हैं.

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देश में नॉर्थ और साउथ के राज्यों में लोकसभा सीटों का मौजूदा हाल

देस की हिंदी पट्टी यानी नॉर्थ के राज्यों में लोकसभा की कुल 225 सीटें हैं. इनमें 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश और पांच सीटों वाले उत्तराखंड के साथ ही 40 सीटों वाला बिहार, 14 सीटों वाला झारखंड, 29 सीटों वाला मध्य प्रदेश, 11 सीटों वाला छत्तीसगढ़, 25 सीटों वाला राजस्थान, 10 सीटों वाला हरियाणा, चार सीटों वाला हिमाचल प्रदेश और सात सीटों वाले केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली भी शामिल है. 

इसके मुकाबले दक्षिण भारत के पांच राज्य आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल के साथ केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी के देखें तो आंध्र प्रदेश में लोकसभा की 25, तेलंगाना में 17, कर्नाटक में 28, तमिलनाडु में 39, केरल में 20 और पुडुचेरी में एक सीट है. यानी कुल मिलाकर 130 सीटें हैं.

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