पाकिस्तान में आज भी क्यों है 1970 के सेक्स स्कैंडल का इतना खौफ, जिसमें गई थी 40 साल के शायर की जान?
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पाकिस्तान में आज भी क्यों है 1970 के सेक्स स्कैंडल का इतना खौफ, जिसमें गई थी 40 साल के शायर की जान?

Karachi 1970 Sex Scandal: 12 अक्टूबर, 1970 को पाकिस्तान के कराची शहर में एक 40 साल का प्रतिभाशाली शायर अपने घर में मुर्दा पाया गया. उसके बगल वाले कमरे में एक खूबसूरत सोशलाइट बेहोश पड़ी थी. दोनों शादीशुदा थे, लेकिन एक-दूसरे से नहीं. यह दर्दनाक वारदात और उसका खौफ 55 साल बाद आज भी पाकिस्तान का पीछा नहीं छोड़ रहा है.

पाकिस्तान में आज भी क्यों है 1970 के सेक्स स्कैंडल का इतना खौफ, जिसमें गई थी 40 साल के शायर की जान?

Mustafa Zaidi Murder Or Suicide: कराची शहर का एक सेक्स स्कैंडल, जिसमें एक नामचीन शायर की जान जाती है और एक सोशलाइट लड़की की नाम सुर्खियों में आता है. इस वारदात का खौफ 50 साल बाद आज भी पाकिस्तान को डराता है. 12 अक्टूबर, 1970 को हुई इस वारदात का सही खुलासा आज तक सामने नहीं आ पाया है. इसको लेकर तरह-तरह की बात होती रहती है, लेकिन राज पर आज भी पर्दा पड़ा हुआ है.

घर में मुर्दा मिले थे मुस्तफा जैदी, बगल में बेहोश थी शहनाज गुल

दरअसल, 12 अक्टूबर, 1970 को कराची में एक प्रतिभाशाली शायर अपने घर में ही मुर्दा पाया गया था. अगले कमरे में एक खूबसूरत सोशलाइट बेहोश पड़ी मिली थी. यह दर्दनाक घटना तुरंत ही पूरे पाकिस्तान में जुनून और खौफ की तरह पसर गई. कराची सेक्स स्कैंडल के रूप में मशहूर यह वारदात लोगों की पड़ोसी मुल्क के लोगों की यादों में बस गई है और आज भी उसकी दहशत लोगों का पीछा नहीं छोड़ रही.

पाकिस्तान में एक ऐसा सेक्स स्कैंडल, जैसा पहले कभी नहीं हुआ

1970 में पाकिस्तान में एक ऐसा सेक्स स्कैंडल छाया हुआ था, जैसा पहले कभी नहीं हुआ था. 40 साल का प्रतिभाशाली शायर और प्रभावशाली भूतपूर्व सिविल सेवक मुस्तफा जैदी कराची के अक्टूबर की एक सुबह अपने घर में मरे हुए पाए गए थे. दूसरे कमरे में 20 के दशक की बेहद आकर्षक सोशलाइट शहनाज गुल बेहोश पड़ी थीं. दोनों शादीशुदा थे, लेकिन एक-दूसरे से नहीं. इसलिए अगले कुछ हफ्तों, महीनों, वर्षों नहीं, बल्कि यह मामला जनता और प्रेस के लिए एक बहुत बड़ा जुनून बन गया.

प्रेम प्रसंग या सेक्स स्कैंडल? कई सारी काल्पनिक कहानियां 

प्रेम प्रसंग या सेक्स स्कैंडल का हर भयावह विवरण, कुछ तथ्यात्मक और कई सारी काल्पनिक कहानियां प्राइवेसी के अधिकार के पहले के जमाने में अखबारों में जगह पाता था और गॉशिप के भूखे लोगों द्वारा खुशी-खुशी पढ़ा और सुना जाता था. क्या यह खुदकुशी थी या शायर की ज़हर देकर हत्या की गई थी. सेक्स स्कैंडल के मामले में तब्दील इस मामले में सच तक पहुंचने के सभी दरवाज़े अंदर से बंद थे, लेकिन क्या कोई तीसरा व्यक्ति आसपास था? क्या शहनाज गुल सिर्फ़ एक सोशलाइट थी या कोई जासूस या फिर तस्कर थी? हर किसी के पास इस मामले पर एक राय और एक सिद्धांत था. जितना विचित्र, उतना ही बेहतरीन.

मुस्तफ़ा जैदीहत्या या आत्महत्या?

मुस्तफ़ा जैदी की लाश के बगल में उनकी कई कविताओं की विषय-वस्तु रहीं शहनाज़ गुल बेहोश पाई गई थी. मुस्तफ़ा जैदी की असामयिक मौत के बारे में दो राय हैं. पहला आरोप है कि उन्हें शहनाज़ गुल ने ज़हर दिया था. दूसरा कहता है कि उन्होंने आत्महत्या की थी. रहस्य अभी तक सुलझा नहीं है. कोई भी निश्चित रूप से नहीं जानता कि उस दुर्भाग्यपूर्ण रात को वास्तव में क्या हुआ था. पुख्ता सबूतों के अभाव में किसी को भी अदालत द्वारा दोषी नहीं ठहराया जा सकता था. 

मुस्तफा जैदी ने एक शेर में की थी अपनी मौत की भविष्यवाणी

मुस्तफा जैदी ने शायद अपनी इस मौत की भविष्यवाणी करते हुए एक शेर में कहा था, 'मैं किस के हाथ पर अपना प्यार तलाश करूं, तमाम शहर ने पहने हुए हैं दास्ताने.' दोनों ही मामलों में, यह एक बेहद दुखद घटना थी जिसने उर्दू को एक ऐसे शायर से वंचित कर दिया जिसकी क्षमता बहुत कुछ अपील करती थी और जिसकी रचनात्मक प्रतिभा को जोश मलीहाबादी और फिराक गोरखपुरी जैसे साहित्यिक दिग्गजों ने सराहा था. 

मौत, हालात और खुदकुशी या कत्ल की वजहों पर आज भी बहस

चूंकि यह एक हाई-प्रोफाइल मामला था, इसलिए इसने अखबारों में जमकर सुर्खियां बटोरीं और लंबे समय तक इस पर चर्चा हुई. आज भी, जब मुस्तफा जैदी की नज्म पर चर्चा होती है, तो यह पाठकों और आलोचकों का ध्यान खींचती है. आज भी इसकी चर्चा किसी तरह उनकी मौत, हालात और खुदकुशी या कत्ल की वजहों और उसके पीछे के मकसद पर फोकस हो जाती है. इसके कारण आलोचकों ने मुस्तफा जैदी और उनकी रचनाओं के बारे में कुछ धारणाएं बना ली हैं. कुछ आलोचक उनके व्यक्तित्व के मनोदैहिक (साइकोसक्सुअल) पहलुओं की तलाश भी करते हैं.

अखबारों और किताबों में दर्दनाक वाकए के बारे में अलग-अलग दावे

मामले के बारे में कई जानकारों ने अलग-अलग अखबारों और किताबों में इस दर्दनाक वाकए के बारे में लिखा है. कुछ लेखकों का मानना ​​है कि विलासिता की गोद में झूलने और खुद को "कामुकता के सागर" में डुबो देने के बावजूद, मुस्तफा जैदी हमेशा अपनी 'बदहाली' पर रोते रहे. एक शायर के रूप में पहचान और अधिक से अधिक यौन संतुष्टि की तलाश में उनकी लाइफ में असंतुष्ट प्रेम और जीवन के प्रति उनके विकृत और भोगवादी दृष्टिकोण का नतीजा ऐसा ही हो सकता था. 

पांच साल में सात लड़कियों से प्यार, तीन के लिए आत्महत्या की कोशिश

जफरुल्लाह खान ने अपनी किताब 'मुस्तफा जैदी शाखसियत और शायरी' में जैदी के मार्क्सवादी और आधुनिकतावादी दृष्टिकोण को भौतिकवादी लालसा और जो कुछ भी उनके पास था, उससे असंतोष पैदा करने के लिए जिम्मेदार ठहराया है. अपनी किताब में पेज नंबर 136 पर खान ने मुस्तफा जैदी के अपने शब्दों का हवाला दिया है जिसमें उन्होंने स्वीकार किया था कि 26 साल की उम्र में स्वभाव से वे एक आशिक मिजाज के थे और पिछले पांच साल की अवधि के दौरान उन्हें सात लड़कियों से प्यार हुआ था; जिनमें से तीन के लिए उन्होंने आत्महत्या करने की कोशिश की थी.

जानकारों ने कहा- आत्महत्या करने का जैदी का पांचवां प्रयास

जफरुल्लाह खान ने पेज नंबर 18 पर कराची के दैनिक जंग के 15 अक्टूबर 1970 के अंक का भी जिक्र किया है, जिसमें कहा गया है “दिवंगत मुस्तफा जैदी के करीबी हलकों के अनुसार, यह आत्महत्या करने का उनका पांचवां प्रयास था. पहले उन्होंने केमारी [कराची बंदरगाह] में अपनी जान लेने की कोशिश की थी. फिर उन्होंने पेशावर विश्वविद्यालय में व्याख्याता के रूप में आत्महत्या करने की कोशिश की. हम बाद में किताब में पढ़ते हैं कि उन्हें एक अमेरिकी शिक्षक से प्यार हो गया था, और अब कराची में, पांचवीं बार उसने आत्महत्या करने की कोशिश की और उसने आत्महत्या कर ली.” 

शहनाज गुल के बयानों में दोहरी बातें, खटास की बात भी कबूलीं

फिर अगले ही पृष्ठ पर हमें खान की पुस्तक में शहनाज़ गुल का पुलिस को दिया गया बयान मिलता है, जो 16 अक्टूबर, 1970 को जंग, कराची के अंक में प्रकाशित हुआ था, जिसमें कहा गया था कि “जैदी मुझ पर शादी के लिए दबाव डाल रहा था. मैंने उसे याद दिलाया कि वह पहले से ही शादीशुदा है, और मैं भी. उसके दो बच्चे हैं. हालांकि मैं उसे पसंद करती थी, लेकिन मैं उससे शादी नहीं कर सकती थी... इससे हमारे बीच खटास पैदा हो गई और जल्द ही हमने अपने मतभेदों को सुलझा लिया. उसने कई बार कहा था कि अगर मैं उससे शादी नहीं करती, तो मैं उसकी मौत के लिए ज़िम्मेदार होऊंगी.”

पाकिस्तान के तंग नजरिए वाले समाज से खफा थे मुस्तफा जैदी

मुस्तफा जैदी ने खुद भी, कुछ हद तक व्यंग्यात्मक रूप से सभी को दोषी ठहराया था कि उन्हें वह नहीं मिला जो उन्हें चाहिए था और जिसके वे हकदार थे. जैदी ने अपने आखिरी कविता संग्रह 'कोह-ए-निदा' की प्रस्तावना में शिकायत की थी कि वजीर आगा ने उर्दू शायरी पर लिखी अपनी मोटी किताब में कई छोटे शायरों का जिक्र किया था, लेकिन उन्हें नजरअंदाज कर दिया था. वे पाकिस्तान के तंग नजरिए वाले समाज से खफा थे, जो उनके शब्दों में, "विभिन्न विचारधाराओं को बर्दाश्त नहीं करता था."

शहनाज या भ्रष्टाचार के चलते बर्खास्त कर दिये गये थे जैदी?

उन्होंने अफसोस जताया था कि वे फोटोग्राफी के अपने शौक को आगे नहीं बढ़ा सके क्योंकि उन्हें एक अस्तबल जैसा घर दिया गया था. उनका दूसरा दुख यह था कि वे पाकिस्तान की सिविल सेवा में अनुपयुक्त थे और उन्हें सिर्फ इसलिए बर्खास्त कर दिया गया क्योंकि उन्होंने अपने अधीनस्थों में से एक से रिश्वत लेने से इनकार कर दिया था. (हालांकि जैदी को भ्रष्टाचार के आरोप में बर्खास्त कर दिया गया था, लेकिन शहनाज़ के साथ उनके संबंधों को भी कई लोगों ने इसके लिए दोषी ठहराया था, क्योंकि वह एक ठेकेदार की पत्नी थीं और जैदी एक महत्वपूर्ण अधिकारी थे.

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उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में जन्मे थे सैयद मुस्तफा हसनैन जैदी

10 अक्टूबर 1930 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में जन्मे सैयद मुस्तफा हसनैन जैदी उर्फ मुस्तफा जैदी को अपना उपनाम बदलने से पहले तेग इलाहाबादी के नाम से जाना जाता था. उन्होंने अपना पहला कविता संग्रह तब प्रकाशित किया जब वह मुश्किल से 17 साल के थे. 1952 में लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में मास्टर डिग्री प्राप्त करने के बाद, जैदी ने शुरू में कराची के इस्लामिया कॉलेज और फिर पेशावर विश्वविद्यालय में पढ़ाया. 1954 में, उन्होंने प्रतियोगी परीक्षा उत्तीर्ण की और डिप्टी कमिश्नर और डिप्टी सेक्रेटरी के पद दिए जाने से पहले प्रशिक्षण के लिए इंग्लैंड भेजे गए.

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सबसे ज्यादा तकलीफदेह रहा जिंदगी का आखिरी एक साल 

दिसंबर 1969 में, मुस्तफा जैदी को सर्विस से निलंबित कर दिया गया और उनके जीवन का आखिरी एक साल शायद सबसे ज्यादा कष्ट देने वाला रहा. शहनाज़ के साथ उनके संबंध ने उनकी जर्मन पत्नी के साथ उनके संबंधों को खराब कर दिया, जो अपने दो बच्चों के साथ जर्मनी चली गईं. बाद में उन्हें बर्खास्त कर दिया गया और शहनाज़ ही एकमात्र सहारा थीं, जिस पर वे भरोसा कर सकते थे. उनके जीवन की अंतिम पांच कविताओं का शीर्षक 'शहनाज' है. उनकी संग्रहित कृतियां, 'कुल्लियात-ए-मुस्तफा जैदी' उनके मरने के बाद प्रकाशित हुईं. उनमें उनके संग्रह 'रोशनी', 'शहर-ए-आज़ार', 'मौज मेरी सदाफ़ सदाफ़', 'गिरेबान', 'क़बा-ए-साज़' और 'कोह-ए-निदा' शामिल हैं.

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