Covid-19 Vaccine Myths: हमारे आसपास कोविड-19 वैक्सीन से जुड़े कई मिथक फैले हुए हैं, जो कि महामारी के खिलाफ हमारी लड़ाई को लंबा कर सकते हैं.
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भारत के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने 17 जून 2021 को कोविड-19 वैक्सीन से जुड़े मिथकों और सच्चाई के बारे में जानकारी दी. देश में कोविड-19 टीके से जुड़े मिथकों पर विश्वास करना समाज के लिए बुरा हो सकता है और महामारी के खिलाफ देश की लड़ाई को लंबा कर सकता है. एएनआई के द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक, मंत्रालय ने देश में कोविड-19 वैक्सीन की जरूरत और सकारात्मक प्रभाव पर जोर दिया है. हमारे आसपास कोविड वैक्सीन से जुड़े रजिस्ट्रेशन और टीका अभियान से जुड़े कई मिथक फैले हैं. आइए, सरकार द्वारा जारी कोविड-19 वैक्सीन मिथकों और उनकी सच्चाई के बारे में जानते हैं.
कोविड-19 वैक्सीन के रजिस्ट्रेशन से जुड़ा मिथक
मिथक- वैक्सीन लगवाने के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन या अपॉइंटमेंट की प्री-बुकिंग के जरिए प्री-रजिस्ट्रेशन करवाना अनिवार्य है.
सच्चाई- सरकार का कहना है कि वैक्सीन लगवाने के लिए किसी प्रकार का प्री-रजिस्ट्रेशन अनिवार्य नहीं है. 18 वर्ष या उससे ज्यादा उम्र का कोई भी व्यक्ति पास के कोरोना टीका केंद्र पर जाकर वैक्सीन लगवा सकता है. केंद्र में मौजूद वैक्सीनेटर आपका ऑन-साइट रजिस्ट्रेशन कर देगा और स्लॉट उपलब्धता के आधार पर उसी मुलाकात में वैक्सीन लगा देगा.
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गांवों में कोविड टीकाकरण से जुड़ा मिथक
मिथक- ग्रामीण क्षेत्रों में वैक्सीन के लिए ऑन-साइट रजिस्ट्रेशन या रजिस्ट्रेशन की सुविधा सीमित है.
सच्चाई- रिपोर्ट के मुताबिक, मंत्रालय ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में वैक्सीन का रजिस्ट्रेशन करवाने के कई तरीके उपलब्ध हैं. जिसमें Co-Win पर कॉमन सर्विस सेंटर, निकट टीकाकरण केंद्र पर हेल्थ वर्कर्स व आशा वर्कर्स द्वारा ऑन-साइट (केंद्र पर ही) रजिस्ट्रेशन व वैक्सीन की सुविधा और 1075 हेल्पलाइन के द्वारा रजिस्ट्रेशन में मदद जैसी सुविधाएं मौजूद हैं.
टीकाकरण अभियान में डिजिटल विभाजन से जुड़ा मिथक
मिथक- शहरी क्षेत्रों से ग्रामीण क्षेत्रों के पीछे होने के कारण टीकाकरण अभियान में ग्रामीण-शहरी अंतर और डिजिटल विभाजन है.
सच्चाई- रिपोर्ट के मुताबिक, 1 मई 2021 से 12 जून 2021 तक मौजूद जानकारी के मुताबिक देश के 1.03 लाख कोविड वैक्सीनेशन सेंटर में से 61,842 (59.7 प्रतिशत) सेंटर (एसएचसी, पीएचसी और सीएचसी) ग्रामीण क्षेत्रों में मौजूद हैं. जहां सीधे जाकर लोग ऑन-साइट रजिस्ट्रेशन और वैक्सीनेशन करवा सकते हैं. वहीं CoWin पर अभी तक वर्गीकृत 69,995 टीकाकरण केंद्रों में से 71 प्रतिशत यानी 49,883 केंद्र ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित हैं.
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आदिवासी क्षेत्रों में टीकाकरण अभियान से जुड़ा मिथक
मिथक- आदिवासी क्षेत्रों में टीकाकरण अभियान कमजोर है
सच्चाई- 3 जून 2021 तक CoWin पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, आदिवासी जिलों में प्रति 10 लाख जनसंख्या पर टीकाकरण दर राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है. 176 आदिवासी जिलों में से 128 जिले पूरे भारत के वैक्सीनेशन अभियान से बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं. राष्ट्रीय औसत से ज्यादा वॉल्क-इन वैक्सीनेशन आदिवासी जिलों में हो रही है.
गंभीर एईएफआई मामलों से जुड़ा मिथक
मिथक- कुछ रिपोर्ट्स में टीका लगाने के बाद दिखने वाले गंभीर दुष्परिणामों (AEFI) के मामलों में बढ़ोतरी बताई गई है. जिनके कारण कोविड वैक्सीनेशन के बाद मरीजों की मृत्यु की बात भी कही जा रही है.
सच्चाई- एनएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ने कहा कि AEFI से जुड़ी रिपोर्ट अधूरी हैं और मामलों की सीमित जानकारी पर आधारित हैं. वैक्सीनेशन के बाद हुई किसी भी मौत को AEFI से जोड़कर एकदम नहीं देख सकते हैं. मौत के लिए टीकाकरण को जिम्मेदार बताने के लिए AEFO कमेटी द्वारा पर्याप्त जांच की जाती है, उसके बाद ही निष्कर्ष निकलता है.
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कोविड-19 टीकाकरण से जुड़ी मौतों के बारे में मिथक
मिथक- कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में टीकाकरण करवा चुके 488 लोगों की मौत को पोस्ट-कोविड कॉम्प्लिकेशन से जोड़ा गया है.
सच्चाई- एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, मंत्रालय ने बताया कि देश में 23.5 करोड़ डोज के साथ टीकाकरण करवा चुके लोगों की मौत का दर सिर्फ 0.0002 प्रतिशत है. वहीं, कोरोना जांच में पॉजिटिव पाए गए लोगों की मृत्यु दर 1 प्रतिशत से ज्यादा है और वैक्सीन संक्रमण के कारण होने वाली मौतों को रोकने में बहुत ज्यादा प्रभावी देखी गई है. इसलिए, कोविड-19 के कारण होने वाली मौत के खतरे के आगे कोविड-19 टीका लगवाने के बाद होने वाली मौत का खतरा ना के बराबर है.