कई असाध्य बीमारियों की दवाएं अब भारतीय मरीज़ों को जल्दी मिल सकेंगी. सरकार ने इससे जुड़े नए नियम जारी किए हैं. जिसके तहत अगर किसी नई दवा का क्लीनिकल ट्रायल यानि परीक्षण अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीयन यूनियन, कनाडा, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में हुआ है तो उसके लिए भारत में फिर से क्लीनिकल ट्रायल नहीं किया जाएगा.
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नई दिल्ली : कई असाध्य बीमारियों की दवाएं अब भारतीय मरीज़ों को जल्दी मिल सकेंगी. सरकार ने इससे जुड़े नए नियम जारी किए हैं. जिसके तहत अगर किसी नई दवा का क्लीनिकल ट्रायल यानि परीक्षण अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीयन यूनियन, कनाडा, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में हुआ है तो उसके लिए भारत में फिर से क्लीनिकल ट्रायल नहीं किया जाएगा. अब तक ऐसी रियायत नहीं थी. इसके अलावा अगर किसी दवा के भारत में ग्लोबल क्लीनिकल ट्रायल की मंजूरी ड्रग कंट्रोलर जनरल ने दी थी. और बाद में उस देश को दवा को मंजूरी मिल जाती है. ऐसी स्थिति में भी दोबारा भारत में दवा का क्लीनिकल ट्रायल नहीं होगा.
नए सिरे से क्लीनिकल ट्रायल नहीं होगा
अभी कई दुर्लभ किस्म की बीमारियां हैं जिनके लिए भारत में दवा नहीं है. लेकिन विदेशों में उनकी दवाएं बन गई हैं. ऐसी दवाएं अब अगर भारत लाई जाती हैं तो उनका नए सिरे से क्लीनिकल ट्रायल नहीं होगा जिससे समय बचेगा. दवा कंपनियों की शिकायत भी दूर होगी क्योंकि तय समय सीमा के भीतर क्लीनिकल ट्रायल की अर्ज़ियों को खारिज़ या पास किया जाएगा. नई दवाओं की खोज, रिसर्च या मैन्यूफैक्चरिंग के लिए अगर कोई अर्ज़ी दी जाती है तो अधिकतम 30 दिन के भीतर उस पर अर्ज़ी को मंजूरी देनी होगा या खारिज़ करना होगा. अगर अर्ज़ी देने के इस 30 दिन की मियाद में ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया की ओर से कोई जवाब नहीं आता है. तो मान लिया जाएगा कि मंजूरी मिल चुकी है.
मरीजों के हितों का भी ख्याल रखा गया
क्लीनिकल ट्रायल के दौरान मरीजों के हितों का भी ख्याल नए नियमों में रखा गया है. क्लीनिकल ट्रायल की वजह से किसी के घायल होने पर इलाज़ का सारा खर्च उस दवा कंपनी को उठाना होगा जिसकी दवा का ट्रायल किया जा रहा था. क्लीनिकल ट्रायल में मौत होने या स्थाई दिव्यांगता की स्थिति में हर्जाने की रकम ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया की ओर से तय किया जाएगा. पहले ये शर्त थी कि मौत या स्थाई दिव्यांगता की स्थिति में हर्जाने की 60 फीसदी रकम 15 दिन के भीतर ही देना होगा. अब ये तय किया गया है कि मौत या स्थाई दिव्यांगता की स्थिति क्लीनिकल ट्रायल की वजह से होने पर साबित होगा तभी हर्जाना दिया जाएगा.
गड़बड़ी कर फटाफट नई दवाएं लाने वाली कंपनियों पर भी सख्ती का इंतजाम किया गया है. अगर कोई कंपनी क्लीनिकल ट्रायल के गलत आंकड़े पेश करती है तो उस पर पाबंदी भी लगाई जाएगी. अब तक दवा कंपनियों का आरोप था कि क्लीनिकल ट्रायल के बाद भी अंतिम मंजूरी मिलने में काफी वक्त लग जाता था क्योंकि सिस्टम ट्रांसपैरेंट नहीं था. क्लीनिकल ट्रायल के नए नियमों के पीछे सरकार की दलील है कि इससे क्लीनकिल रिसर्च को बढ़ावा मिलेगा. कंपनियों के लिए ट्रांसपैरेंट और बेहतर क्लीनिकल ट्रायल रेगुलेशन होगा. साथ ही क्लीनिकल ट्रायल को दोबारा दोबारा नहीं करना होगा. अब तक क्लीनिकल ट्रायल के नियम ड्रग्स एंड कॉस्मैटिक रूल्स के तहत थे. लेकिन अब अलग से नियम लाया गया है.