Thyroid Disorders: महिलाओं को कैसे प्रभावित करता है थायराइड डिसऑर्डर? एक्सपर्ट ने बताई डिटेल
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Thyroid Disorders: महिलाओं को कैसे प्रभावित करता है थायराइड डिसऑर्डर? एक्सपर्ट ने बताई डिटेल

Thyroid Problems: थायराइड डिसऑर्डर की परेशानी भारत में लगातार बढ़ रही है, जिसे लेकर हमें जागरूक होने की जरूरत है, खासकर महिलाओं में ऐसी परेशानियां ज्यादा देखी जा रही हैं.

Thyroid Disorders: महिलाओं को कैसे प्रभावित करता है थायराइड डिसऑर्डर? एक्सपर्ट ने बताई डिटेल

How Thyroid Disorders Can Affect Women: दुनिया के लिए थायराइड डिसऑर्डर एक हेल्थ कंसर्न बनता जा रहा है, भारत में भी मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. मेट्रोपोलिस हेल्थ केयर की कंसल्टेंट पैथोलॉजिस्ट डॉ. लिंडा नजारेथ (Dr. Lynda Nazareth) ने बताया कि हमारे देश में अनुमानित 42 मिलियन लोग इस परेशानी का सामना कर रहे हैं. रिपोर्टेड केस इसलिए भी बढ़ रहे हैं क्योंकि लोग इस डिसऑर्डर को लेकर ज्यादा जागरूक हो रहे हैं.

थायराइड डिसीज कौन-कौन से हैं?

थायराइड रोगों के स्पेक्ट्रम में हाइपोथायरायडिज्म, हाइपरथायरायडिज्म, गोइटर/आयोडीन की कमी से डिसऑर्डर, हाशिमोटोज थायरॉयडिटिस और थायरॉयड कैंसर शामिल हैं. चूंकि थायराइड डिसऑर्डर का क्लीनिकल प्रजेंटेशन आमतौर पर नॉन स्पेसिफिक होता है इसलिए थकान, वजन का बढ़ना, मेंस्ट्रुअल इरेगुलेरिटी, बालों का झड़ना, कब्ज का टेस्ट बिना डायग्नोसिस के मुश्किल होता है.

थायराइड डिसऑर्डर का टेस्ट

फ्री टी3 (एफटी3), फ्री टी  (एफटी4), टीएसएच,टोटल टी 3, टोटल टी4, थायरोग्लोबुलिन और एंटीथायरॉयड एंटीबॉडी सहित थायराइड फ़ंक्शन टेस्ट डायग्नोसिस में अहम भूमिका निभाते हैं. इन परीक्षणों की फ्रिक्वेंसी खास डायग्नोसिस पर निर्भर करती है, उदाहरण के लिए, नियमित दवाओं पर हाइपोथायरायडिज्म वाले व्यक्तियों को साल में कम से कम एक बार थायराइड प्रोफाइल परीक्षण से गुजरना चाहिए. अगर आपको हाइपरथायरायडिज्म है, तो आपको ये सुनिश्चित करने के लिए ज्यादा फ्रिक्वेंट टेस्ट (तीन महीने में एक बार) की जरूरत हो सकती है कि ट्रीटमेंट काम कर रहा है.

'महिलाओं होती हैं ज्यादा प्रभावित'

थायराइड के रिजल्ट को प्रभावित करने वाले फैक्टर्स दिन के उस समय होते हैं जब सैंपल इकट्ठा किया गया था, तनाव (शारीरिक या भावनात्मक), धूम्रपान, शराब का उपयोग, आहार, दवाएं, बीमारी. पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक प्रभावित होती हैं. आंकड़े बताते हैं कि हर आठ में से एक महिला अपने जीवनकाल में थायराइड डिसऑर्डर से पीड़ित होती हैं.

'फीमेल फर्टिलिटी पर असर'

थायराइड डिसऑर्डर 18 से 35 साल के बीच की महिलाओं को प्रभावित करते हैं, जो कि प्राइम रिप्रोडक्टिव पीरियड होता है. ज्यादातर मामलों में ये डिसऑर्डर बांझपन या गर्भपात का कारण बन सकता है.  हेल्दी प्रेग्नेंसी और फर्टिलिटी को मेंटेन रखने के लिए नॉर्मल थायराइड फ़ंक्शन जरूरी है. हाइपोथायरायडिज्म और हाइपरथायरायडिज्म मासिक धर्म अनियमितताओं और एनोवुलेटरी साइकल का कारण बन सकता है, इस तरह ये प्रजनन क्षमता को प्रभावित करता है.

प्रेग्नेंसी के दौरान हाइपोथायरायडिज्म की व्यापकता लगभग 0.3% -0.5% है. युवा महिलाओं में हाइपोथायरायडिज्म के सबसे आम कारणों में से एक ऑटोइम्यून थायरॉयडिटिस है. गर्भावस्था के दौरान थायराइड हार्मोन का असामान्य स्तर एनीमिया, गर्भपात, प्रसवोत्तर रक्तस्राव, प्रीक्लेम्पसिया और प्लेसेंटल एब्रप्शन जैसी जटिलताओं के बढ़ते जोखिम से जुड़ा होता है.

थायराइड हार्मोन भ्रूण के ब्रेन और नर्वस सिस्टम के सामान्य विकास के लिए और पहली तिमाही के दौरान महत्वपूर्ण है. इसलिए, थायराइड डिसऑर्डर का इलाज मां और बच्चे दोनों के लिए जरूरी है.थायरॉयड ग्लैंड आपके शरीर में सबसे प्रभावशाली ग्रंथियों में से एक है. थायराइड हार्मोन का आपके मेटबॉलिज्म से बहुत कुछ लेना-देना है.

Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में घरेलू नुस्खों और सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.

 

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