भारत के गांवों में मां बनने वाली महिलाओं का मृत्यु दर अभी भी क्यों है ज्यादा? सुनिए डॉक्टर की जुबानी
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भारत के गांवों में मां बनने वाली महिलाओं का मृत्यु दर अभी भी क्यों है ज्यादा? सुनिए डॉक्टर की जुबानी

भारतीय ग्रामीण इलाकों में बाल मृत्युदर और मातृ मृत्यु दर अभी भी काफी ज्यादा है, इसकी वजहों को समझना होगा और मूलभूत परेशानियों को दूर करने के उपाय करने होंगे. 

भारत के गांवों में मां बनने वाली महिलाओं का मृत्यु दर अभी भी क्यों है ज्यादा? सुनिए डॉक्टर की जुबानी

Why Maternal and Infant Mortality Rate Still High In Rural India: इंसानी जिंदगी और उसकी डिग्निटी हर पुरुष, महिला और बच्चे का मूल अधिकार है. किसी सोसाइटी को आंकना है उसके समुदाय के सबसे कमज़ोर तबके के प्रति उसकी फिक्र और कोशिशों को देखना चाहिए.  एक नवजात बच्चा और एक गर्भवती महिला हमारे समाज का सबसे कमज़ोर तबके है. बच्चे की मृत्यु दर और मां की मृत्यु दर आज की दुनिया की कड़वी सच्चाई को दिखाती है, जिसमें सभी तरह की प्रगति शामिल है. हर साल लाखों नवजात बच्चे और गर्भवती महिलाएं ऐसी परेशानी और हालात के कारण मौत का शिकार जाती हैं, जिन्हें कम से कम कोशिशों से भी आसानी से टाला जा सकता है. जागरूकता और शिक्षा की कमी इन बेवजह की मौतों के लिए सबसे आम कारण है.

सबसे पहले बेसिड टर्म को समझते हैं

बाल मृत्यु दर (Infant Mortality Rate)- बच्चे की मौत(एक साल से कम/जन्म दर (प्रति 1000)

मातृ मृत्यु दर (Maternal Mortality Rate)- मां की मौत ( 42 दिन से कम) / प्रति 100,000 जन्म

ग्रामीण इलाकों में सुधार की जरूरत

यूपी सरकार में कार्यरत डॉ. उदय प्रताप सिंह (Dr. Uday Pratap Singh) ने बताया कि पिछले कुछ दशकों में बाल मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर में काफी कमी आई है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में ये दर अभी भी चिंता का विषय है जिसका हर हाल मे समाधान खोजना पड़ेगा. हमें सरकार के साथ मिलकर काम करते हुए शिशुओं और गर्भवती महिलाओं की मृत्यु दर को कम करने के लिए एक मिले जुले नज़रिए की जरूरत है. जागरूकता पैदा करना और कमियों की पहचान करना पहला कदम होना चाहिए. 

शुरुआती टेस्ट जरूरी

वीएचएसएनडी सेशन के दौरान यूनिवर्सल कवरेज के साथ ज्यादा जोखिम वाली प्रेग्नेंसी (एचआरपी) की शुरुआती पहचान अभी सरकार की प्राथमिकता है. हाई रिस्क वाले मामलों की पहचान करके हम काम शुरू कर सकते हैं और मृत्यु दर की संभावना को कम कर सकते हैं.
 

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(फाइल फोटो- Reuters)

अपने इस मकसद को पूरा करने के लिए वीएचएसएनडी सेशन को बिना किसी अपवाद के हर गर्भवती महिला को कवर करना चाहिए. हर मामला जो छूट जाता है वो आपदा की वजह बन सकता है. ये महिला के साथ-साथ पेट में पल रहे बच्चे के लिए भी अहम है क्योंकि नियमित जांच, सप्लिमेंट्स, सही पोषण और साथ ही दवाएं उनकी सेहत के लिए बेहद जरूरी हैं.

 

सबसे बड़ा चैलेंज

डॉ. उदय प्रताप सिंह के मुताबिक इस काम की सबसे बड़ी परेशानियां क्या हैं जिसे सर्विस प्रोवाइडर्स और पेशेंट ने महसूस किया.

1. वीएचएसएनडी सेशन के दौरान गर्भवती महिला की पेट की जांच के वक्त प्राइवेसी का न होना. यानी महिलाओं की जांच अगर खुले में कराई जाएगी तो उन्हें शर्मिंदगी महसूस होगी, इसलिए उचित व्यवस्था बेहद जरूरी है.

2. न्यूट्रीशन, सप्लिमेंट्स और दवाइयों को लेकर जागरूकता की कमी होना. गांव में डाइटीशियन या दवाइयों के बारे में जागरूक करने वालों की काफी कमी होती है.

3. डेटा कलेक्शन के लिए जो उपकरण होते हैं, उनका मौजूद न होना. भारत के ग्रामीण इलाकों में अक्सर सुविधाओं की कमी होती, जिसके कारण सही आंकलन कर पाना मुश्किल होता है. 
 

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डॉ.उदय प्रताप सिंह

बाल मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर होने के अन्य बड़े कारण.

1. इंफेक्शन रेट ज्यादा होना क्योंकि साफ सफाई की कमी देखी जाती है जहां डिलवरी होती है.
2. जटिल मामलों के लिए आईसीयू, एनआईसीयू और सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के साथ देखभाल की कमी होना.
3. डाइट, लाइफस्टाइल और खतरे के संकेतों की पहचान (आपात स्थिति और उनके मैनेजमेंट के लिए) को लेकर जागरूकता और शिक्षा पैदा करने के लिए सोशल मीडिया और तकनीक के इस्तेमाल मे कमी होना.'
 

fallback(फाइल फोटो- Reuters)

(Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.)

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