काशी के कलाकार भी महाकुंभ में प्रस्तुतियां देंगे. ये कलाकार अघोरी बनकर भस्म की होली खेलेंगे. इतना ही नहीं कान्हा गोपियों के साथ रास भी रचाएंगे. जानिए क्या होगा खास?
Mahakumbh 2025: महाकुंभ में त्रिवेणी के संगम पर काशी के कलाकार भी अपनी कला का प्रदर्शन करेंगे. यह कलाकार स्वांग और रास की मंडलियां पेशवाई के समय तरह-तरह के स्वांग रचाएंगे. कहीं अघोरी भस्म की होली खेलेंगे तो कहीं कान्हा गोपियों संग रास रचाएंगे.
महाकुंभ में महाकाल की लीला आकर्षण का केंद्र होने वाला है. जिसमें काशी के कलाकारों की टोलियां शामिल होंगी. तन पर भस्म रमाए भोला खेल रहे हैं होरी...की थीम पर महाकाल और माता पार्वती के स्वरूपों की प्रस्तुतियां पहली बार महाकुंभ का हिस्सा बनेंगी.
जानकारी के मुताबिक, काशी की शिव बारात, बाबा विश्वनाथ की शोभायात्रा, मसान की होली और महाशिवरात्रि पर शिव बरात निकालने वाली टोलियां प्रयागराज जाएंगी. इसमें सबसे ज्यादा डिमांड महाकाल के स्वरूप की है.
प्रयागराज में कई सामाजिक संस्थाओं और अखाड़ों की ओर से काशी की टोलियों को न्योता दिया गया है. जो कलाकार महाकाल की भूमिका निभाने वाला है, उसका नाम सोनू है. कलाकार की मानें तो भगवान का स्वांग रचाना आसान नहीं होता है.
28 साल की उम्र में महाकाल के स्वरूप ने ही सोनू को अलग पहचान दिलाई है. 2019 में पहली बार गौरी केदारेश्वर मंदिर में महाकाल का स्वरूप धारण किया था. काला रंग और भभूत उड़ाते हुए महाकाल ने सबके दिल में जो जगह बनाई वह उनकी पहचान बन गई.
इसके बाद मसान की होली में सोनू ने महाकाल का स्वरूप धारण किया. सोनू ने इंटर तक की शिक्षा और बीएचयू से संगीत में डिप्लोमा किया. महाकाल की टीम में पार्वती की भूमिका खिड़किया घाट की रहने वाली सपना और खोजवां के रहने वाले 10 युवा अघोरी बनते हैं.
महाकाल के रूप में तैयार होने में तीन से चार घंटे लगते हैं. स्वांग रचाने वाले कलाकार अपना मेकअप भी खुद ही करते हैं. यानी कि कलाकार से लेकर मेकअप आर्टिस्ट की भूमिका हर पात्र खुद निभाता है.
सोनू को काशी में होने वाली शिव बरात, बाबा विश्वनाथ की शोभायात्रा समेत अन्य आयोजनों में 61 हजार रुपये मिलते हैं. वहीं जब बाहर जाते हैं तब उन्हें सवा लाख रुपये तक फीस चार्ज करते हैं.
यह कलाकार यूपी के अलावा महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, बिहार, मध्यप्रदेश, उड़ीसा में प्रस्तुतियां दे चुके हैं. हर जगह उनके महाकाल स्वरूप की ही सबसे ज्यादा मांग रहती है. साल भर में लगभग डेढ़ सौ से दौ सौ कार्यक्रम करते हैं.
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