Zee जानकारी : इंटरनेट और मोबाइल फोन्स की लत लग गई है तो डिजिटल डिटॉक्स कराएं
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Zee जानकारी : इंटरनेट और मोबाइल फोन्स की लत लग गई है तो डिजिटल डिटॉक्स कराएं

अगर आप भी छुट्टियों पर जाने की योजना बना रहे हैं और ऐसी जगहों और ऐसे होटल्स की तलाश में हैं जहां इंटरनेट और वाईफाई जैसी सुविधाएं मौजूद हों। तो कृपया आप अपनी योजना में थोड़ा बदलाव करें। हमारी राय है कि आप ऐसी जगह और ऐसे होटल्स तलाशें जहां आपको इंटरनेट और वाई-फाई की सुविधा ना मिल पाएं। जहां आपका मोबाइल नेटवर्क भी काम ना करें और आप अपने साथ टैबलेट, लैपटॉप और स्मार्ट वॉच जैसे उपकरण भी लेकर ना जाएं।

Zee जानकारी : इंटरनेट और मोबाइल फोन्स की लत लग गई है तो डिजिटल डिटॉक्स कराएं

नई दिल्ली : अगर आप भी छुट्टियों पर जाने की योजना बना रहे हैं और ऐसी जगहों और ऐसे होटल्स की तलाश में हैं जहां इंटरनेट और वाईफाई जैसी सुविधाएं मौजूद हों। तो कृपया आप अपनी योजना में थोड़ा बदलाव करें। हमारी राय है कि आप ऐसी जगह और ऐसे होटल्स तलाशें जहां आपको इंटरनेट और वाई-फाई की सुविधा ना मिल पाएं। जहां आपका मोबाइल नेटवर्क भी काम ना करें और आप अपने साथ टैबलेट, लैपटॉप और स्मार्ट वॉच जैसे उपकरण भी लेकर ना जाएं।

हमें आपके शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ आपके मानसिक स्वास्थ्य की भी चिंता रहती है। इसलिए जब हमारे पास लोगों में इंटरनेट और स्मार्ट फोन्स की लत से जुड़े कुछ आंकड़े आए तो हमने इस समस्या पर एक DNA टेस्ट करने का फैसला किया।

एक नये रिसर्च के मुताबिक अगर आप बार-बार अपना स्मार्ट फोन चेक करते हैं। दोस्तों से मुलाकात के दौरान भी अपना मोबाइल फोन दूर नहीं रख पाते, सोते वक्त भी अपने मोबाइल फोन को करीब रखते हैं और जब ज़रूरत नहीं होती तब भी मोबाइल फोन उठा लेते हैं तो आप मोबाइल फोन से जुड़े एडिक्शन यानी लत के शिकार हैं। इस लत का असर आपके शरीर और मन पर भी पड़ता है। कानों में खराबी, गर्दन और उंगलियों में दर्द, घबराहट और बेचैनी जैसी शारीरिक और मानसिक परेशानियां मोबाइल फोन्स और इंटरनेट के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल करने का नतीजा भी हो सकती हैं। इस तरह के एडिक्शन के शिकार लोग सोने से पहले आखिरी काम के तौर पर मोबाइल फोन चेक करते हैं और उठने के बाद उनका सबसे पहला काम भी मोबाइल फोन चेक करना ही होता है।

-भारत में स्मार्ट फोन्स का इस्तेमाल करने वाले 50 प्रतिशत लोग मोबाइल फोन पर म्यूजिक वीडियो सुनने का शौक रखते हैं।
-भारत में स्मार्ट फोन्स यूजर्स सबसे ज्यादा ह्वाट्सएप्प का इस्तेमाल करते हैं। इसके बाद गूगल सर्च, यू ट्यूब और ई-कॉमर्स एप्लीकेशन्स का नंबर आता है।
-2015 तक भारत में 16 प्रतिशत लोगों के पास स्मार्ट फोन्स थे जबकि 2021 तक भारत के 58 प्रतिशत लोगों के पास स्मार्ट फोन्स होंगे। 
-एक रिसर्च के मुताबिक भारत में करीब 22 करोड़ स्मार्टफोन्स हैं और पूरी दुनिया में 260 करोड़ मोबाइल फोन्स हैं। 
-एक दूसरे अनुमान के मुताबिक 2021 तक भारत में स्मार्टफोन्स का इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या 81 करोड़ से भी ज़्यादा हो जाएगी।

वैज्ञानिक और डॉक्टर्स मानते हैं कि ऐसे लोग जिन्हें इंटरनेट और मोबाइल फोन्स की लत लग गई है उनके लिए डिजिटल डिटॉक्स यानी कुछ दिनों के लिए डिटॉक्स उपकरणों से दूरी बनाना बहुत जरूरी हो जाता है। खासतौर पर जब आप छुट्टी लेकर कहीं घूमने जाते हैं। तब ऐसे उपकरणों का ज़्यादा इस्तेमाल आपके लिए बहुत हानिकारक होता है।

इसलिए हमनें इंटरनेट मुक्त छुट्टियों से जुड़े फायदों पर एक फ्राइडे स्पेशल DNA टेस्ट तैयार किया है, जिसे आपको अपने पूरे परिवार के साथ देखना चाहिए। इंटरनेट से कुछ दिनों के लिए दूरी बना लेना कैसे आपको तरोताज़ा कर सकता है और कैसे आपको एक संवेदनशील व्यक्ति में बदल सकता है ये समझने के लिए आपको हमारे साथ दुनिया भर के इंटरनेट नशा मुक्ति केंद्रो में चलना होगा। 

आप सोच रहे होंगे कि ये किस तरह के नशा मुक्ति केंद्र हैं तो हम आपको बता दें कि जब इंटरनेट पर ऑनलाइन रहने का शौक एक लत में बदल जाता है तो इंटरनेट नशा मुक्ति केंद्र के ज़रिए लोगों की ये लत छुड़वाई जाती है। इस प्रक्रिया को डिजिटल डिटॉक्स कहा जाता है। डिजिटल डिटॉक्स के दौरान मोबाइल फोन्स, टैब्स, लैपटॉप सहित सभी इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल उपकरणों से दूर रहना होता है, ऐसा आपको कुछ दिनों के लिए करना होता ताकि आपको इंटरनेट की लत से थोड़ा ब्रेक मिल जाए और आप अपने साथ कुछ वक्त बिता पाएं। 

डिजिटल डिटॉक्स यानी इंटरनेट नशा मुक्ति की प्रक्रिया उन लोगों की मदद करती है जो NoMo और Fomo जैसे फोबिया के शिकार हैं। यहां Nomo-Phobia का मतलब है No Mobile Phobia, यानी मोबाइल फोन आसपास न होने पर डर लगना।

अगर आप अपने फोन के बिना नहीं रह पाते है, Mobile Phone की बैटरी खत्म होने पर आपको बेचैनी होने लगती है, और आप लगातार अपने फोन पर मैसेज और नोटिफिकेशन्स को चेक करते हैं और इंटरनेट कवरेज से बाहर जाते ही आप चिड़चिड़े हो जाते हैं तो आप भी NomoPhobia के शिकार हो सकते हैं।

चिंता की बात ये है कि पूरी दुनिया में बड़ी संख्या में लोग NomoPhobia के साथ साथ FOMO का भी शिकार हो रहे हैं, FOMO का मतलब है Fear Of Missing Out यानी ऐसी स्थिति जब किसी व्यक्ति को ये डर सताने लगता है कि Mobile Phone पास ना रहने पर, वो बाहर की दुनिया में चल रही गतिविधियों के बारे में नहीं जान पाएगा। और उसे ऐसा सोचने से ही घबराहट होने लगती है।

-टाइम मैगजीन की एक रिपोर्ट के मुताबिक करीब 68 प्रतिशत लोग सोते वक्त भी अपने डिजिटल उपकरण अपने साथ रखते हैं।
-जबकि 20 प्रतिशत लोग हर 10 मिनट में अपने मोबाइल फोन्स को चेक करते हैं।
-Pew Research के मुताबिक 44 प्रतिशत लोग अपना मोबाइल फोन बिलकुल अपने तकिये के पास रखकर ही सोते हैं।
-Public Library of Science के मुताबिक लोग जितना ज़्यादा फेसबुक इस्तेमाल करते हैं अपनी असल जिंदगी में वो उतने ही परेशान और निराश रहते हैं।
-ऑस्ट्रेलिया में NomoPhobia यानी मोबाइल फोन की लत का असर जानने के लिए 30 हज़ार लोगों पर एक स्टडी की गई और इस स्टडी के दौरान 10 में 9 लोगों ने माना कि फोन की battery खत्म होने पर उन्हें बेचैनी होने लगती है।

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