DNA: जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण के जीवन से सीखिए नीति और कूटनीति, इन 8 मंत्रों को रखें याद
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DNA: जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण के जीवन से सीखिए नीति और कूटनीति, इन 8 मंत्रों को रखें याद

भगवान कृष्ण के जीवन में उनका सबकुछ छूट गया, लेकिन अगर कुछ नहीं छूटा तो वो थी उनकी मुस्कान, और उनकी सकारात्मकता. इसलिए श्रीकृष्ण दुख के नहीं बल्कि उत्सव के प्रतीत हैं. क्योंकि श्रीकृष्ण अकेले हैं जिनका जन्म रोते हुए नहीं बल्कि हंसते हुए हुआ था.

DNA: जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण के जीवन से सीखिए नीति और कूटनीति, इन 8 मंत्रों को रखें याद

नई दिल्ली: आज कृष्ण जन्माष्टमी (Janmashtami) है और इस मौके पर भगवान श्रीकृष्ण की बात करना जरूरी है. भगवान श्रीकृष्ण का जीवन अपने आप में एक यूजर मैन्युअल है. जब आप मोबाइल फोन, गाड़ी या कोई भी प्रोडक्ट खरीदते हैं तो उसके साथ आपको उसका यूजर मैन्युअल मिलता है. जब आपके प्रोडक्ट में कोई गड़बड़ होती है तो इस यूजर मैन्युअल में उस समस्या का हल लिखा होता है. इसी तरह अगर आप श्रीकृष्ण के जीवन को करीब से देखें तो आपको उसमें अपने जीवन का एक यूजर मैन्युअल दिखाई देगा, जिसमें आपके जीवन की हर परेशानी का हल है. इसलिए इस विश्लेषण को ध्यान से पढ़िए, क्योंकि युद्ध काल और कोरोना काल का सामना करने की सीख श्रीकृष्ण से बेहतर कोई नहीं दे सकता.

  1. जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण की 8 सीख
  2. श्रीकृष्ण का आखिरी युद्ध लड़ने में विश्वास
  3. श्रीकृष्ण के जीवन से प्रेरित है विदेश नीति

हंसते हुए आए थे श्रीकृष्ण

पूरी दुनिया में आधे लोग युद्ध से परेशान हैं तो आधे कोरोना से. सबको लगता है कि जीवन उनके साथ धोखा कर रहा है, युद्ध और बीमारी उनसे अपनों को छीन रही है. लेकिन भगवान कृष्ण के जीवन में उनका सबकुछ छूट गया फिर भी वो विचलित नहीं हुए. पहली उनकी मां छूटी, फिर पिता छूटे, फिर जिस नंद बाबा और यशोदा ने उन्हें पाला वो भी छूट गए, जिन दोस्तों के साथ खेलते कूदते हुए वो बड़े हुए वो भी छूट गए, उनका प्रेम राधा भी उनके साथ हमेशा नहीं रहीं. इसके अलावा पहले वो गोकुल से दूर हए, फिर मथुरा से और आखिर में उनके द्वारा बसाया गया नया नगर द्वारिका भी समुद्र में डूब गया. लेकिन अगर कुछ नहीं छूटा तो वो थी उनकी मुस्कान, और उनकी सकारात्मकता. इसलिए श्रीकृष्ण दुख के नहीं बल्कि उत्सव के प्रतीत हैं. क्योंकि श्रीकृष्ण अकेले हैं जिनका जन्म रोते हुए नहीं बल्कि हंसते हुए हुआ था.

श्रीकृष्ण क्यों कहलाए रणछोड़?

कुछ लोगों के जीवन में युद्ध आ जाता है तो कुछ लोगों को अपना जीवन ही युद्ध लगने लगता है. लेकिन भगवान श्रीकृष्ण बिना विचलित हुए जीवन भर युद्ध लड़ते रहे. जरासंध नाम का राजा बार-बार मथुरा पर आक्रमण करता था. श्रीकृष्ण ने उसे कई बार युद्ध में हराया, लेकिन फिर उन्हें लगा कि ये समय और ऊर्जा की बर्बादी है. इसलिए उन्होंने मथुरा को छोड़ दिया और गुजरात में एक नया नगर बसाया जिसका नाम था द्वारिका. जो युद्ध भूमि उनकी सकारात्मक ऊर्जा का नाश करती थी, उन्होंने उसे छोड़ दिया और इसलिए वो रणछोड़ कहलाए. इसलिए जीवन में संघर्ष से पीछे मत हटिए. लेकिन जो संघर्ष किसी निष्कर्ष तक न पहुंचे और जिससे आपकी ऊर्जा को नुकसान हो उसे छोड़ देने में ही भलाई है.

भगवान कृष्ण से सीखें ये बातें

हिंदू कैलेंडर में महीने के 8वें दिन को अष्टमी कहते हैं. इसलिए आज आप भगवान कृष्ण के जीवन से जो 8 बातें सीख सकते हैं उसे नोट कर लीजिए.
1. आप अपने कर्म को सबसे ज्यादा महत्व दें, लेकिन फल की चिंता ना करें. यानी लक्ष्य तक पहुंचने की यात्रा का आनंद लें, लक्ष्य को हासिल करने के बारे में ही ना सोचते रहें.
2. जीवन में जो भी घटित होता है उसका कोई न कोई कारण होता है. जो होता है अच्छे के लिए होता है. इसलिए हर बात पर उदास होने की बजाय हर घटना को स्वीकार करना सीखिए और बुरे अनुभवों को भुलाना सीखिए.
3. श्रीकृष्ण भगवान थे इसलिए वो जानते थे कि भविष्य में क्या होने वाला है. लेकिन फिर भी वो वर्तमान में जीत थे और इसी हिसाब से योजनाएं बनाते थे. इसलिए कल क्या होगा इसकी चिंता छोड़कर आज जो है उसका आनंद लीजिए.
4. भगवान कृष्ण कहते थे कि क्रोध लोभ और अहंकार, नर्क के तीन द्वार है. इसलिए इन तीनों बुरी आदतों को आज ही त्याग दें और जीवन में शांति को अपनाएं. 
5. श्रीकृष्ण ने जीवन भर त्याग किया क्योंकि त्याग के बिना कुछ भी हासिल नहीं होता. इसलिए जीवन में आगे बढ़ने के लिए अपने आराम, पैसे, समय और सुरक्षा के भाव का त्याग करने के लिए तैयार रहिए.
6. भगवान कृष्ण द्वारिका के राजा थे, शानदार योद्धा थे, उनके पास सब कुछ था, लेकिन वो विनम्र बने रहते थे, और हमेशा दूसरों को खुशियां देने की कोशिश करते थे. यही आपको भी करना है, क्योंकि बिना विनम्रता के बड़ी से बड़ी सफलता बेकार है.
7. कृष्ण भगवान होते हुए भी महाभारत के युद्ध में अर्जुन के सारथी बने, वो सिखाते हैं कि कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता और आपको अपने काम से हमेशा प्रेम करना चाहिए.
8. आज के दौर में अच्छे और सच्चे मित्र बहुत कम लोगों को मिल पाते हैं. अगर आपके पास ऐसे मित्र हैं तो उन्हें श्रीकृष्ण की तरह सहेज कर रखें और इसके बदले में हमेशा ऐसे मित्रों के काम आएं.

दुख के बिना कुछ हासिल नहीं होता

श्रीकृष्ण भगवान होते हुए भी एक आध्यात्मिक गुरु की भूमिका में थे. जब दुनिया युद्ध काल और कोरोना काल से गुजर रही है तो आप श्रीकृष्ण को अपना आदर्श और आध्यात्मिक गुरु भी बना सकते हैं. लेकिन इसके लिए आपको भगवान कृष्ण को अपने जीवन में गहराई तक उतारना होगा. आपको अध्यात्म की विंडो शॉपिंग से बचना होगा. लेकिन आजकल लोगों को जीवन की परेशानियों का हल मिनटों में चाहिए. इसलिए वो अध्यात्म की विंडो शॉपिंग करते हैं. लोगों को लगता है कि किसी मोबाइल ऐप से उन्हें अध्यात्म हासिल हो जाएगा. कोई गुरु ऑनलाइन ही उनकी समस्याओं का हल कर देगा, लेकिन जीवन में ऐसा नहीं होता. जीवन में हमें जो पीड़ा अनुभव होती है उसे हम Error समझ लेते हैं. लेकिन श्रीकृष्ण का मैन्युअल कहता है कि जब तक आप इस दुख और पीड़ा से होकर नहीं गुजरते तब तक आप खुद को अपग्रेड भी नहीं कर सकते. यानी अगर आपको अपने बेहतर वर्जन का निर्माण करना है तो दुख से मत घबराइए. क्योंकि दुख के बगैर कुछ भी हासिल नहीं होता.

श्रीकृष्ण के जीवन से प्रेरित है विदेश नीति

यहां तक कि भारत की विदेश नीति भी कृष्ण के जीवन से प्रेरित है और इस बात का जिक्र भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर (S Jaishankar) ने अपनी किताब में भी किया है जिसका नाम है- The India Way-strategies for an uncertain world. उदाहरण के लिए पांडव संख्या में कम थे और उनकी सेना भी कमजोर थी, लेकिन श्रीकृष्ण के निर्देश पर पांडवों ने अपनी ब्रांडिंग पर काम किया. हालांकि युद्ध के नियमों को पांडवों ने भी तोड़ा और कौरवों ने भी. महाभारत के युद्ध में अश्वथामा नामक एक हाथी को मार दिया गया. लेकिन बात ये फैलाई गई कि युद्ध में द्रोणाचार्य का पुत्र अश्वथामा मारा गया है. द्रोणाचार्य और अश्वथामा मिलकर पांडवों पर भारी पड़ रहे थे. अब युधिष्ठिर झूठ नहीं बोलते थे. इसलिए जब द्रोणाचार्य ने उनसे सच पूछा तो युधिष्ठिर ने कहा कि अश्वथामा मारा गया. परंतु हाथी लेकिन जब युद्धिष्टर ने परंतु हाथी कहा तभी जोर से शंख बजा दिया गया और वो पूरी बात नहीं सुन पाए. द्रोणाचार्य को लगा कि उनका पुत्र ही मारा गया है. ये सुनकर द्रोणाचार्य ने शस्त्र त्याग दिए.

हमला हो तो भारत पीछे नहीं हटता

इसी तरह कौरवों ने भी अभिमन्यु को छल से मारा. पांडवों के लाक्षागृह में आग लगा दी. यानी दोनों तरफ से छल कपट हुआ, लेकिन पांडवों ने सकारात्मक ब्रांडिंग के दम पर अपनी छवि को बरकरार रखा. यानी सकारातमक ब्रांडिंग उस जमाने में भी बहुत जरूरी थी. भारत किसी के खिलाफ आक्रमक रुख नहीं अपनाता है. महाभारत में अर्जुन भी ऐसा ही करते हैं. अर्जुन तो युद्ध में उतरना भी नहीं चाहते थे. लेकिन कृष्ण के समझाने पर वो युद्ध के मैदान में गए और भारत भी ऐसा ही करता है. जब भारत की अखंडता पर हमला होता है तो भारत पीछे नहीं हटता.

श्रीकृष्ण का आखिरी युद्ध लड़ने में विश्वास

कृष्ण बार-बार अपने शत्रुओं को माफ करते थे. इनमें शिशुपाल भी शामिल था. श्रीकृष्ण ने धैर्य रखा, लेकिन आखिरकार सुदर्शन चक्र चलाकर शिशुपाल का वध कर दिया. भारत भी पाकिस्तान जैसे देशों को बार-बार माफ करता आया है. लेकिन भारत ने अभी तक पाकिस्तान के खिलाफ सुदर्शन चक्र यानी अंतिम हथियार का इस्तेमाल नहीं किया है. क्योंकि श्रीकृष्ण अगला नहीं बल्कि आखिरी युद्ध लड़ने में विश्वास रखते थे जो निर्णायक होता है.

आपको श्रीकृष्ण जैसे सारथी की जरूरत

कूटनीति की दुनिया में कई बार आउट ऑफ द बॉक्स सोचना भी जरूरी होता है. महाभारत के युद्ध में दुर्योधन ने कहा कि या तो वो कृष्ण की पूरी सेना अपने साथ रख लें या फिर कृष्ण अकेले पांडवों के साथ होंगे. लेकिन तब उन्हें कृष्ण की सेना छोड़नी होगी. लेकिन अर्जुन ने सारी सेना छोड़ दी और सिर्फ श्रीकृष्ण को चुना. अर्जुन जानते थे कि अगर अकेले कृष्ण भी उनके साथ हो गए तो युद्ध का परिणाम क्या होगा. लेकिन दुर्योधन इसे नहीं समझ पाया. इसलिए जीवन में भी आप आउट ऑफ द बॉक्स सोचने की आदत डालिए. भीड़ जिस फैसले के साथ है. जरूरी नहीं वही फैसला ठीक हो. अगर आपको आपके जीवन में कृष्ण जैसा एक सारथी भी मिल गया तो आप जीवन का बड़े से बड़ा युद्ध जीत जाएंगे.

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