जानकारी के अनुसार, इस वक्त कंपनी हर महीने 6 से 7 करोड़ वैक्सीन का उत्पादन कर रही है. ये टीकें भारत में फ्रंटलाइन वर्कर्स, 45 साल से अधिक आयु के सभी लोगों को लगाए जा रहे हैं.
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नई दिल्ली: भारत में कोरोना (Coronavirus) संक्रमितों का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है. ऐसे में वैक्सीन की ही एकमात्र सहारा माना जा रहा है. लेकिन लगातार घट रहे कोरोना वैक्सीन के प्रोडक्शन ने सभी को चिंता में डाल दिया है. इसी बीच कोविशील्ड वैक्सीन बनाने वाली कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) के सीईओ अदार पूनावाला (Adar Poonawalla) ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) को ट्वीट कर अपील की है.
उन्होंने बाइडन को टैग करते हुए लिखा, 'यदि हम एकजुटता के साथ इस वायरस को हराना चाहते हैं तो अमेरिका के बाहर की वैक्सीन इंडस्ट्री की ओर से मैं अपील करता हूं कि आप वैक्सीन के निर्माण के लिए जरूरी कच्चे माल के निर्यात पर लगी रोक को हटाएं, जिससे वैक्सीन का प्रोडक्शन बढ़ाया जा सके. आपके प्रशासन के पास पूरी जानकारी है.'
Respected @POTUS, if we are to truly unite in beating this virus, on behalf of the vaccine industry outside the U.S., I humbly request you to lift the embargo of raw material exports out of the U.S. so that vaccine production can ramp up. Your administration has the details.
— Adar Poonawalla (@adarpoonawalla) April 16, 2021
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दरअसल, अमेरिकी सरकार ने इसी वर्ष फरवरी में अपनी वैक्सीन राष्ट्रवाद की नीति पर चलते हुए डिफेंस प्रोडक्शन एक्ट (Defence Production Act) लागू किया है. जिसके कारण कंपनी को वैक्सीन बनाने में जरूरी प्रोडक्ट जैसे रॉ मैटेरियल, सिंगल यूज ट्यूबिंग असेंबली और स्पेशल केमिकल अमेरिका से इम्पोर्ट करने में मुश्किलें हो रही हैं. इस फैसले के पीछे अमेरिकी सरकार का मकसद प्रोडक्शन बढ़ाकर ज्यादा से ज्यादा लोगों को वैक्सीन लगाना है.
इस एक्ट के तहत अमेरिकी सरकार ने दो प्रायोरिटी सिस्टम- डिफेंस प्रायोरिटी और अलॉटमेंट सिस्टम प्रोग्राम और हेल्थ रिसोर्स प्रायोरिटी (HRPAS) की स्थापना की है. HRPAS के दो मेजर कंपोनेंट हैं. प्रायोरिटी कंपोनेंट के तहत टीके के प्रोडक्शन के लिए जरूरी इंडस्ट्रियल इंस्टीट्यूट के प्रोडक्शन और डिस्ट्रीब्यूशन के लिए सरकारी और प्राइवेट यूनिट के बीच या प्राइवेट पार्टी के बीच कुछ कॉन्ट्रैक्ट को अन्य कॉन्ट्रैक्ट पर प्रायोरिटी दी जाएगी. इसका मतलब है कि अगर अमेरिकी निर्माताओं के आर्डर को नियमों के तहत प्रायोरिटी दी जाती है, तो उन्हें अन्य देशों के निर्माताओं के आर्डर पर प्रिफरेंस मिलेगी.
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भारतीय वैक्सीन निर्माता कंपनियां अमेरिका से वैक्सीन के लिए जरूरी एडज्यूवेंट (Adjuvant) इंपोर्ट करती हैं. आमतौर पर एक वैक्सीन को प्रभवशाली बनाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है. जानकारों के अनुसार, इसे वैक्सीन के बेसिक सब्सटेंस इनएक्टिवेटेड वायरस के साथ मिक्स किया जाता है. यह वैक्सीन में मौजूद एंटीजीन के लिए सहायक पदार्थ है जो इम्यून सिस्टम को बढ़ाता है.
वैक्सीन निर्माता कंपनियों के सामने बड़ी समस्या यह खड़ी हुई है कि उन्होंने जिन एडज्यूवेंट को वैक्सीन में मिलाकर ट्रायल किए थे, वो उसे मिल नहीं पा रहे हैं और किसी नई कंपनी से नए एडज्यूवेंट लेने पर उन्हें दोबारा ट्रायल की लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा. इसी से बचने के लिए वैक्सीन निर्माता कंपनियां लगातार केंद्र सरकार और अमेरिकी सरकार से मदद की गुहार लगा रही हैं.
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कुछ दिन पहले अपने एक इंटरव्यू में भी अदर पूनावाला ने कहा था कि कच्चे माल की एक लंबी सूची है जो हम अमेरिका से आयात करते हैं. सबसे ज्यादा रूरी रॉ मैटेरियल के नए सप्लायर को ढूंढने में समय लगेगा. हालांकि अमेरिका के इस रवैये के बाद हमने खुद को आत्मनिर्भर करना शुरू कर दिया है. हम 6 महीने बाद अमेरिका पर निर्भर नहीं होंगे. लेकिन बड़ी समस्या यह है कि अभी हमें इसकी आवश्यकता है.
गौरतलब है कि अमेरिका समेत विश्व के कई अमीर देश वैक्सीन राष्ट्रवाद की नीति का पालन कर रहे हैं. वैक्सीन राष्ट्रवाद का सीधा अर्थ है स्वार्थी होकर सबकुछ अपने लिए इकट्ठा कर लेना और पूरी दुनिया को तरसने के लिए छोड़ देना. अपनी वैक्सीन राष्ट्रवाद की नीति के तहत ये देश वैक्सीन के लिए जरूरी रॉ मैटेरियल के अलावा वैक्सीन की भी जमाखोरी कर रहे हैं. UNICEF के एक अनुमान के मुताबिक अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन समेत विश्व के 36 अमीर देशों ने अपनी कुल आबादी से जरूरत से 2 से 6 गुना ज्यादा वैक्सीन की डोज जमाकर रखी है.
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जमाखोरी करने में सबसे ऊपर कनाडा है. कनाडा ने अपने देश की कुल आबादी से 600 प्रतिशत ज्यादा वैक्सीन की दोनों डोज जमाकर रखी है. जबकि दूसरे नंबर पर चल रहे अमेरिका ने वैक्सीन के रॉ मैटेरियल के अलावा अपनी कुल आबादी के मुकाबले 582 प्रतिशत से ज्यादा वैक्सीन की दोनों डोज जमा कर रखी है. अमेरिका की कुल आबादी है लगभग 32 करोड़ 82 लाख लेकिन अमेरिका का कुल वैक्सीन भंडारण है 382 करोड़ डोज. कुछ ऐसा ही हाल काले धन को रखने के लिए मशहूर स्विट्जरलैंड का है. स्विटरजरलैंड की कुल आबादी 85 करोड़ से ज्यादा है लेकिन भंडारण है 18 करोड़ वैक्सीन डोज का. लिस्ट में तीसरा नाम ब्रिटेन का है जिसने 56 करोड़ से ज्यादा वैक्सीन की डोज जमा कर रखी हैं. इसी तरह इटली, न्यूजीलैंड, जर्मनी, स्वीडन, स्पेन, नॉर्वे ग्रीस समेत कुल 36 देश शमिल हैं जिन्होंने अपनी कुल आबादी की जरूरत से दोगुनी से ज्यादा डोज इकट्ठा कर रखी है.
वैक्सीन राष्ट्रवाद के तहत वैक्सीन की जमाखोरी करने वाले इन देशों को संयुक्त राष्ट्र भी लताड़ चुका है. इसी साल 11 मार्च को संयुक्त राष्ट्र द्वारा कोरोना को महामारी घोषित करने के एक साल पूरे होने पर (Only Together Campaign) को लॉन्च करते हुए संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुटेरेश (Antonio Guterres) ने वैक्सीन नेशनलिज्म के नाम पर वैक्सीन की जमाखोरी करने वाले देशों को खरी खोटी सुनाई थी. उन्होंने कहा था, 'वैक्सीन राष्ट्रवाद वो है जो दुनिया के सभी लोगों तक पहुंच को कम करता है. वैश्विक टीकाकरण अभियान हमारे समय का सबसे बड़े नैतिक परीक्षण है, जहां एक तरफ दुनिया के कई देशों को एक भी खुराक नहीं मिल पाई है तो दूसरी तरफ दुनिया के कई देशों की अच्छी खासी आबादी का वैक्सीनेशन हो चुका है.'
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