Muslim Law of Inheritance: अदालत ने फैसले में कहा कि किसी भी मुसलमान पर मुस्लिम पर्सनल लॉ/शरीयत अपने आप लागू नहीं हो जाता. उसे इसके लिए कानून के तहत अप्लाई करना पड़ता है. शरीयत कानून में गोद लिए गए बच्चे को माता-पिता की संपत्ति पाने का अधिकार नहीं है.
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Muslim Parents Adopted Son Property Rights: समान नागरिक संहिता (UCC) पर बहस के बीच दिल्ली की एक अदालत ने अहम फैसला दिया है. कोर्ट ने कहा कि मुसलमान के गोद लिए हुए बच्चे को भी पैतृक संपत्ति का अधिकार है. अपने फैसले में एडिशनल जिला जज प्रवीण सिंह ने कहा कि 'मुस्लिम पर्सनल लॉ/शरीयत किसी मुसलमान पर अपने आप लागू नहीं होता. यह केवल उस मुसलमान पर लागू होगा जो कानून की धारा 3 के तहत जरूरी घोषणा करके उस कानून को खुद पर लागू करने का विकल्प चुनता है.' अदालत ने कहा कि 'वह मुस्लिम जो ऐसी घोषणा नहीं करता है, उसने असल में गोद लेने, वसीयत और विरासत के सिलसिले में मुस्लिम पर्सनल लॉ के दायरे से बाहर रहने का विकल्प चुना है.' जज ने कहा कि ऐसा व्यक्ति एक बच्चे को गोद ले सकता है, जो अपने दत्तक माता-पिता की वैध संतान होगी. उसे वह सभी अधिकार हासिल होंगे.
अदालत ने मुस्लिम कानून के तहत, मृतक की संपत्ति के तीन-चौथाई पर मृत व्यक्ति के भाइयों के 'प्राकृतिक' दावे को खारिज कर दिया. निचली अदालत के इस फैसले का व्यापक कानूनी और सामाजिक असर देखने को मिल सकता है.
क्या था केस
अदालत ने यह फैसला मृतक जमीर अहमद के भाई इकबाल अहमद की ओर से दायर बंटवारा मुकदमे पर सुनाया. इकबाल ने जमीर की संपत्ति में हिस्सेदारी की मांग की थी. इकबाल ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार, जमीर की संपत्ति का केवल एक-चौथाई हिस्सा उसकी विधवा को दिया जाना चाहिए. बाकी उसके भाई-बहनों के बीच बांटा जाना चाहिए. जमीर की तीन बहनें 15% हिस्सेदारी की हकदार थीं और बाकी 60% वादी और मृतक के पांच भाइयों के लिए थीं.
मुकदमे में दावा किया गया कि 3 जुलाई, 2008 को जमीर की मौत हो गई, उस समय उनकी कोई संतान नहीं थी. असलियत में, जमीर और उनकी पत्नी गुलजारो बेगम ने शरीयत अधिनियम के तहत इसकी कोई घोषणा किए बिना एक बेटे अब्दुल समद उर्फ समीर को गोद ले लिया था.
अपनी तरह का पहला फैसला
मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत, गोद लिए गए बच्चे को माता-पिता की संपत्ति में 'उत्तराधिकार का अधिकार' नहीं दिया जाता. दूसरे शब्दों में, गोद लिए बच्चे का माता-पिता की प्रॉपर्टी पर कोई हक नहीं बनता. हालांकि, इस मामले में दिल्ली की अदालत ने कहा कि मृतक जमीर अहमद ने शरीयत अधिनियम की धारा 3 के तहत अपनी पसंद का इस्तेमाल किया था. उन्होंने गोद लेने लेने पर मुस्लिम पर्सनल लॉ से बंधे नहीं होने का विकल्प चुना था.
अदालत ने अपनी तरह के पहले फैसले में उसकी पत्नी और दत्तक पुत्र को हिस्सा दिया. जबकि इस्लाम में गोद लेने को कानूनी मान्यता नहीं है.
मुस्लिम पर्सनल लॉ में क्या है विरासत का कानून
विरासत के मुस्लिम कानून के तहत, तीन तरह के कानूनी उत्तराधिकारी होते हैं- हिस्सेदार, अवशेष और दूर के रिश्तेदार. अदालत ने कहा कि कुरान में बताए 12 हिस्सेदारों में से केवल मृतक की विधवा जिंदा थी. अदालत ने कहा कि चूंकि मृतक अपनी विधवा और एक बेटे को छोड़ गया था, इसलिए विरासत का फैसला उसी के हिसाब से होना चाहिए था. कोर्ट ने यह भी कहा कि शरीयत अधिनियम के तहत, एक मुसलमान को कुछ पहलुओं पर मुस्लिम पर्सनल लॉ के दायरे से बाहर रहने का अधिकार बरकरार रखा गया है.
अदालत ने कहा कि वह जमीर को इनडायरेक्ट रूट से मुस्लिम कानून के दायरे में नहीं ला सकती. ऐसा करना कानून द्वारा मृतक को दिए गए विकल्प का उल्लंघन होगा.