समाजवादी पार्टी की ऑडिट रिपोर्ट में घोषित कुल खर्च गलत है क्योंकि पार्टी द्वारा दर्शाए गए खर्च विवरण से कुल खर्च बराबर नहीं है यानी समाजवादी पार्टी ने अपना ब्योरा गलत दिया है.
Trending Photos
नई दिल्ली: देश की सभी राजनीतिक पार्टियों को अपनी आमदनी और खर्च का ब्योरा हर साल 31 अक्टूबर तक चुनाव आयोग को देना होता है. लेकिन हैरानी की बात यह है कि अभी तक कांग्रेस, बीजेपी समेत 5 राष्ट्रीय पार्टियों ने यह ब्योरा चुनाव आयोग को अभी तक नहीं सौंपा है. आपको बता दें कि अभी तक 8 राष्ट्रीय पार्टियों में से 5 ने यह ब्योरा नहीं दिया है वहीं 52 क्षेत्रीय पार्टियों में से सिर्फ 22 ने ही अभी तक चुनाव आयोग को अपने आमदनी और खर्च का ब्योरा दिया है. यानि अभी तक चुनाव आयोग को देश की 8 राष्ट्रीय और और 52 क्षेत्रीय पार्टियों में से सिर्फ 25 दलों ने ही आयोग को अपनी इनकम और खर्च का ब्यौरा दिया है.
आपको बता दें कि हर राजनीतिक दल को वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट प्रस्तुत करने की नियमित तिथि 31 अक्टूबर है. इस वर्ष हर राजनीतिक पार्टी को 31 अक्टूबर 2019 तक अपनी आमदनी और खर्च का ब्यौरा चुनाव आयोग के समक्ष देना था.
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने चुनाव आयोग की वेबसाइट से राजनीतिक दलों की इनकम और खर्च के ब्योरे का विश्लेषण किया है. समाजवादी पार्टी की ऑडिट रिपोर्ट में घोषित कुल खर्च गलत है क्योंकि पार्टी द्वारा दर्शाए गए खर्च विवरण से कुल खर्च बराबर नहीं है यानी समाजवादी पार्टी ने अपना व्यवहार गलत दिया है. 5 राष्ट्रीय और 30 क्षेत्रीय दलों के ऑडिट रिपोर्ट आज की तारीख तक चुनाव आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है.
दो क्षेत्रीय दलों पीडीए और एनडीपीपी के ऑडिट रिपोर्ट 2017-18 की भी चुनाव आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है. अब हम आपको बताते हैं कि बीजेपी कांग्रेस एनसीपी जैसी पार्टियों ने भले ही अभी तक अपनी आमदनी और खर्च का ब्यौरा न दिया हो लेकिन जिन पार्टियों ने अपनी रिपोर्ट चुनाव आयोग को दी है उनकी डिटेल क्या है. 2018 -19 के दौरान देश की तीन राष्ट्रीय और 22 क्षेत्रीय पार्टियों को कुल 1163 . 17 करोड़ रुपए का चंदा मिला है.
देश के 25 राजनीतिक दलों ने अपनी आमदनी का जो ब्यौरा चुनाव आयोग को दिया है उसका विश्लेषण करते हुए association for democratic reforms यानि ADR ने बताया है कि इस वित्तीय वर्ष यानी 2018-19 के दौरान बीजेडी यानी बीजू जनता दल ने सबसे अधिक 249.31 करोड़ रुपए की आमदनी घोषित की है. जो 25 दलों की कुल आय का 21.43% है
यह भी पढे़ं- पिछले 2 चुनाव की तुलना में इस बार लोकसभा पहुंचे 'दागी' प्रत्याशियों की संख्या ज्यादा
इसके बाद दूसरा नंबर तृणमूल कांग्रेस का रहा है जिसकी कुल आय 2018-19 के दौरान 192.65 करोड़ रही है यह 25 दलों की कुल आय का 16.56% है. टीआरएस तीसरे नंबर पर आ रही है जिसकी इस वित्तीय 2018-19 के दौरान कुल आमदनी चंदे से 188.71 करोड रुपए हुई है. जो 25 जिलों की कुल आय का तकरीबन साढे 16 फ़ीसदी है . शीर्ष तीन दलों की कुल मिलाकर आय 630.67 करोड रही है जो 25 दिनों की कुल आय का 54.22% है. याद रखने वाली बात ये है कि इन 25 राजनीतिक दलों में कांग्रेस, बीजेपी और एनसीपी जैसी बड़ी पार्टियां शामिल नही है.
वित्तीय वर्ष 2018 19 के लिए पांच राष्ट्रीय और 30 क्षेत्रीय दलों का ऑडिट रिपोर्ट चुनाव आयोग की वेबसाइट पर आज तक उपलब्ध नहीं है इनमें से प्रमुख राजनीतिक दल जैसे बीजेपी कांग्रेस एनसीपी सीपीआई डीएमके आरजेडी शिवसेना तेलुगू देशम पार्टी ए आई एम आई एम और ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक आदि दल शामिल है.
यह भी पढ़ें- यूपी-बिहार के सबसे ज्यादा सांसदों पर अपहरण के मुकदमे, लिस्ट में BJP अव्वल, दूसरे नंबर पर RJD-कांग्रेस
अब हम आपको यह भी बता दें कि राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों की कुल आय की तुलना अगर 2017-18 के मुकाबले 2018-19 में करें तो उसकी स्थिति क्या रहेगी कुल 25 राजनीतिक दलों की ऑडिट रिपोर्ट से पता चलता है कि 17 दलों ने वित्तीय वर्ष दो हजार सत्रह अट्ठारह की तुलना में वित्तीय वर्ष 2018 -19 के दौरान अपनी आय में वृद्धि दर्शाई है जबकि 6 दलों ने अपनी आय कम घोषित की है यानी 6 दलों का कहना है कि उनको दो हजार सत्रह अट्ठारह के मुकाबले 2018 -19 में कम चंदा प्राप्त हुआ है.
वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान 23 राजनीतिक दलों की कुल आय 329. 4 6 करोड़ थी जो वित्तीय वर्ष 2018-19 में 251 परसेंट बढ़कर( 825 .68 करोड़ ) कुल 1155.14 करोड़ हो गई. यानी इन 23 राजनीतिक दलों ने 1 साल के भीतर ही 825 करोड़ की अधिक आमदनी प्राप्त की है.
बीजू जनता दल ने वित्तीय वर्ष 2017-18 की तुलना में इस वित्तीय वर्ष यानी 2018- 19 में 235.19 करोड़ की आय अधिक दिखाई है इसके बाद तृणमूल कांग्रेस ने 187.48 करोड़ और वाईएसआर कांग्रेस ने 166.84 करोड़ की आय में वृद्धि घोषित की है.अब हम आपको इसका ब्यौरा भी बताते हैं कि राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों द्वारा जो आमदनी प्राप्त की गई है उसमें से कितना खर्च किया गया है उन्होंने जो साल 2018- 19 के दौरान किये गए अपने खर्च का ब्यौरा दिया है उसका विश्लेषण भी आप देखिए यह विश्लेषण ADR की तरफ से किया गया है वित्त वर्ष 2018 19 के दौरान 22 राजनीतिक दलों ने अपनी आय से कम खर्च किया है जबकि 6 दलों ने अपनी एकत्रित आय से अधिक खर्च घोषित किया है.
वित्तीय वर्ष 2018 19 के लिए तृणमूल कांग्रेस ने अपने कुल आय का 94 परसेंट, एनडीपीपी ने 87 परसेंट और टीआरएस ने 84 परसेंट की आय को खर्च नहीं किया है इन 6 राजनीतिक दलों एसपी, एस ए डी, आईएनएलडी,MNS, RLD और एनपीएफ ने अपनी आय से अधिक खर्च किया है एसपी ने अपनी ऑडिट रिपोर्ट में आय से 17.12 करोड रुपए अधिक खर्च दर्शाया है.
यह भी पढ़ें- नई लोकसभा में कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ हैं सबसे अमीर सांसद, कुल 475 MP हैं करोड़पति: ADR
यानि 6 राजनीतिक पार्टियां कह रही हैं कि उनकी जो कुल आमदनी थी उससे उनको अधिक खर्च करना पड़ा 2018 19 के दौरान. जिन राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों ने 2018-19 का ब्यौरा चुनाव आयोग के समक्ष दिया है उनके अगर हम खर्च की बात करें तो वित्तीय वर्ष 2018 19 के दौरान तीन राष्ट्रीय और 22 क्षेत्रीय दलों का कुल खर्च 442.73 करोड़ था
यानी शीर्ष तीन दलों ने कुल मिलाकर 214.75 करोड खर्च किए हैं जो 25 राजनीतिक दलों के कुल खर्च का 48.51% था. सबसे ज्यादा खर्च करने वाले शीर्ष तीन क्षेत्रीय दलों में वाईएसआर कांग्रेस ने 87.68 करोड रुपए खर्च किए इसके साथ ही सीपीएम ने 70.15 करोड रुपए खर्च किए और एसपी ने 50.92 करोड रुपए खर्च किए. महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें बीजेपी कांग्रेस और एनसीपी जैसी पार्टियों का खर्च शामिल नहीं है क्योंकि इन पार्टियों ने अभी तक अपने खर्च का ब्यौरा चुनाव आयोग को नहीं दिया है.
राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों द्वारा घोषित सभी आय के स्रोतों की अगर हम बात करें तो वित्तीय वर्ष 2018 19 के दौरान तीन राष्ट्रीय और 22 क्षेत्रीय दलों ने स्वैच्छिक योगदान या (दान और चुनावी बांड्स) से कुल 76.82 फ़ीसदी यानि अमाउंट में कुल 893.60 करोड़ की आय अर्जित की है. 25 राजनीतिक दलों ने कुल मिलाकर 587.87 करोड चुनावी बॉन्ड के माध्यम से पाए है. जो 25 द की कुल आमदनी का 50.54% है की राशि चुनावी वांट के माध्यम से पाए है जबकि अन्य दान से दलों को 305 करोड़ों रुपए की राशि मिली है.
वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान तीन राष्ट्रीय दलों में से तृणमूल कांग्रेस ने ही चुनावी बॉन्ड के माध्यम से 97.2 8 करोड़ की राशि घोषित की है बाकी दलों में से केवल पांच दलों ने ही कुल मिलाकर 490.59 करोड़ की धनराशि से घोषित की है. सदस्यता शुल्क के माध्यम से 25 सालों ने कुल मिलाकर 12.13% यानी 141.08 करोड़ की आय प्राप्त की है.
यह भी पढ़ें- ADR की रिपोर्ट ने खोली नवनिर्वाचित विधायकों की पोल, 176 विधायकों पर दर्ज आपराधिक मामले
कुल मिलाकर स्थिति यह है कि यदि हम राजनीतिक दलों के आमदनी और खर्च का पूरे ब्योरे का विश्लेषण करें तो सबसे महत्वपूर्ण बात की है कि अधिकतर दल चुनाव आयोग को वक्त पर अपना ब्योरा देने से अभी भी बच रहे हैं इसमें महत्वपूर्ण बात यह है कि तीन बड़ी जो राष्ट्रीय पार्टियां हैं कांग्रेस बीजेपी और एनसीपी जैसी जो पॉलिटिकल पार्टियां हैं उन्होंने 31 अक्टूबर की तारीख बीत जाने के बावजूद अभी तक चुनाव आयोग को अपनी आमदनी और खर्च का ब्यौरा सबमिट नहीं किया है.
एडीआर के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2018 19 के विश्लेषण से पता चलता है कि 25 राजनीतिक दलों की कुल आय में से 587.87 करोड़ चुनावी बॉन्ड्स के माध्यम से प्राप्त हुई है जो गुमनाम है तथा इन दानदाताओं की पहचान सार्वजनिक तौर से प्रकट नहीं की गई है. वित्त वर्ष 2018 19 के दौरान 2540 करोड़ के चुनावी बॉन्ड पेश किए गए थे जिनमें से केवल 35% के चुनावी बॉन्ड की जानकारी उपलब्ध है शेष की जानकारी राजनीतिक दलों के ऑडिट रिपोर्ट्स आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है वर्ष 2019 के लिए तीन राष्ट्रीय और 22 क्षेत्रीय दलों का मुख्य स्रोत बॉन्ड के माध्यम से दान है और खर्च जो उन्होंने बताया है वो चुनाव, प्रशासनिक और सामान्य कार्यों का है.
यह भी पढ़ें- कर्नाटक चुनाव: तीन सबसे अमीर विधायक कांग्रेस के, 1015 करोड़ की संपत्ति के साथ ये हैं टॉप पर
कुल मिलाकर हालत यह है कि राजनीतिक दल पारदर्शिता के नाम पर खूब बड़ी-बड़ी बातें करते हैं लेकिन जब बात आती है तथ्यों के साथ पारदर्शिता लाने की तो हर राजनीतिक दल इससे बचता है पूरी तस्वीर अगर आप देखे हैं तो हर राजनीतिक दल दावे जरूर करता है लेकिन कहीं ना कहीं बहुत सारी चीजें छुपाने की कोशिश भी की जाती हैं और वक्त पर चुनाव आयोग को हर राजनीतिक पार्टी को हर साल 31 अक्टूबर तक ब्यौरा देना होता है उसमें से अभी हालत यह है कि कुछ राजनीतिक पार्टियां समय पर अपना विवरण जमा करती हैं कुछ इससे बचने की कोशिश करती हैं लेटलतीफी करती है खासतौर पर राष्ट्रीय पार्टियां इसमें रीजनल पार्टियों से पीछे रहती है.