वायुसेना ने सिविल एयरपोर्ट्स से ऑपरेट किए फाइटर प्लेन, आपात स्थिति में कार्रवाई का किया अभ्यास
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वायुसेना ने सिविल एयरपोर्ट्स से ऑपरेट किए फाइटर प्लेन, आपात स्थिति में कार्रवाई का किया अभ्यास

इससे पहले भारतीय वायुसेना आगरा यमुना एक्सप्रेस वे और आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे पर लड़ाकू और बड़े परिवहन विमान ऑपरेट कर चुकी है. इन अभ्यासों में मिराज, सुखोई 30 फ़ाइटर और एएन-32 और सुपर हर्क्‍यूलिस जैसे बड़े परिवहन विमान शामिल थे.

वायुसेना ने सिविल एयरपोर्ट्स से ऑपरेट किए फाइटर प्लेन, आपात स्थिति में कार्रवाई का किया अभ्यास

नई दिल्‍ली: वायुसेना ने पूर्वी भारत के तीन नागरिक हवाई अड्डों से लड़ाकू विमानों के ऑपरेशन का अभ्यास किया. वायुसेना ने इसके लिए गुवाहाटी, कोलकाता और अंदल हवाई अड्डों का इस्तेमाल किया. गुवाहाटी और कोलकाता हवाई अड्डों से सुखोई-30 और अंदल हवाई अड्डे से हॉक जेट एयरक्राफ्ट ने रात और दिन में ऑपरेशन किए. ये ऑपरेशन 1 मई से शुरू होकर 2 मई तक चले.

इससे पहले भारतीय वायुसेना आगरा यमुना एक्सप्रेस वे और आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे पर लड़ाकू और बड़े परिवहन विमान ऑपरेट कर चुकी है. इन अभ्यासों में मिराज, सुखोई 30 फ़ाइटर और एएन-32 और सुपर हर्क्‍यूलिस जैसे बड़े परिवहन विमान शामिल थे. इस तरह के अभ्यासों के ज़रिए वायुसेना के पायलट्स और दूसरे स्टाफ को सिविल हवाई अड्डों के काम करने के तरीक़े से परिचित कराया जाता है. युद्ध जैसी स्थिति में सैनिक एयरबेस दुश्मन के पहले निशाने होते हैं. युद्ध रणनीति में इसे टोटल एयर डिनायल (Total Air Denial) कहा जाता है.

1971 के युद्ध में भारतीय वायुसेना ने पहल करते हुए तब के पूर्वी पाकिस्तान के सभी सैनिक एयरबेसों के तबाह कर दिया था. जिसके बाद पाकिस्तान की वायुसेना पूरे युद्ध में कोई कार्रवाई नही कर पायी थी. भाऱतीय वायुसेना इस समय लड़ाकू एयरक्राफ्ट्स की कमी से जूझ रही है. पाकिस्तान औऱ चीन के दौहरे मोर्चे के लिए उसे कम से कम 42 स्क्वाड्रन फाइटर एयरक्राफ्ट्स चाहिए, लेकिन इस समय भारतीय वायुसेना के पास केवल 31 स्क्वाड्रन फाइटर एयरक्राफ्ट्स हैं.

दूसरी तरफ चीन की वायुसेना न केवल नए और आधुनिक एयरक्राफ्ट से लैस है, बल्कि उसने भारतीय सीमा के काफ़ी पास तक अपने एयरबेस बना लिए हैं. पूर्वी भारत में सेना ऐसी जगहों पर भी तैनात है, जहां केवल वायुमार्ग से ही रसद और गोलाबारूद पहुंचाया जा सकता है. ऐसे में किसी आपात स्थिति में वैकल्पिक हवाई अड्डों की और भी ज्यादा ज़रूरत होगी.

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