मोदी सरकार के संकटमोचक थे जेटली, वाजपेयी सरकार में मिला था कैबिनेट मंत्री का दर्जा
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मोदी सरकार के संकटमोचक थे जेटली, वाजपेयी सरकार में मिला था कैबिनेट मंत्री का दर्जा

प्रमोद महाजन और अटल बिहारी वाजपेयी की सेवानिवृत्ति के बाद जेटली भाजपा के मुख्य रणनीतिकार बन गए थे.

जेटली को दो बार रक्षा मंत्रालय का प्रभार मिला था.

नई दिल्ली: बीजेपी के वरिष्‍ठ नेता और पूर्व वित्‍त मंत्री अरुण जेटली का शनिवार को निधन हो गया है. 9 अगस्त से एम्स में भर्ती थे. दोपहर 12:07 बजे उन्होंने 67 की उम्र में अंतिम सांस ली. जेटली मोदी सरकार के सबसे बड़े संकटमोचक थे. जब-जब मोदी सरकार मुश्किल में आई, वे सामने आए, उन्होंने सरकार का पक्ष मजबूती रखा.

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में जब वह वित्त मंत्री थे, तब सरकार के पक्ष में हर मुद्दे को ब्लॉग और अन्य माध्यमों से जनता के बीच रखा. फिर चाहे वह नोटबंदी का मामला हो या जीएसटी. लगभग हर बड़े मुद्दे पर सरकार का बचाव किया. उन्होंने विपक्ष से रायशुमारी बनाकर अहम बिल पास करवाए. आर्टिकल 370 हटाने पर उन्होंने अंतिम ब्लॉग लिखा था.

जेटली को वाजपेयी सरकार में कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया था. तब उन्हें उद्योग एवं वाणिज्य और कानून मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया था. अरुण जेटली का जन्म 28 दिसंबर 1952 को एक पंजाबी हिंदू ब्राह्मण परिवार में हुआ. पिता महाराज किशन पेशे से वकील थे. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में वित्त मंत्री रहे हैं. इससे पहले भी जेटली को वाजपेयी सरकार में कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया. तब उन्हें उद्योग एवं वाणिज्य और कानून मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया था. 

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अरुण जेटली के बारे में रोचक तथ्य: 
1. अरुण जेटली अपने कॉलेज जीवन के दौरान एक शानदार छात्र थे. उन्होंने श्री राम कॉलेज से वाणिज्य में स्नातक और दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून में स्नातक की उपाधि प्राप्त की. इस दौरान उन्होंने राजनीति में अपनी रुचि का पता लगाया और दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्र संघ के अध्यक्ष बने. आपातकाल के दौरान वह जेल गए और कई भाजपा नेताओं से मिले. 

2. जेल से बाहर आने के बाद अरुण जेटली जनसंघ में शामिल हो गए और ABVP के दिल्ली अध्यक्ष और ABVP के अखिल भारतीय सचिव भी बने. वह उस दौरान भी एक आदर्श राजनीतिज्ञ थे. जब बीजेपी बनी तो वह 1980 में इसके यूथ विंग प्रेसिडेंट बने. उन्हें दुनिया में अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिला. 

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3. 1980 से 90 के दशक तक भाजपा भारत में मुख्य धारा की राजनीतिक पार्टी बनने के लिए संघर्ष कर रही थी. अटल और आडवाणी के नेतृत्व में, भाजपा कड़ी मेहनत कर रही थी और अरुण जेटली को भाजपा के युवा ब्रिगेड को परिपक्व राजनेताओं में बदलने का काम दिया गया था.

4. यह अंत नहीं था. वह भारत के सर्वोच्च न्यायालय में भी अभ्यास कर रहे थे और जल्द ही देश के एक प्रमुख वकील बन गए. 1999 में, अटल लेड एनडीए के सत्ता में आने के बाद उन्हें राज्य मंत्री बनाया गया और उन्होंने कानून और न्याय, सूचना और प्रसारण और राज्य विनिवेश राज्य मंत्री जैसे महत्त्वपूर्ण विभागों को संभाला. 

5. वह अटल बिहार वाजपेयी के सबसे भरोसेमंद सहयोगियों में से एक रहे जिन्होंने उन्हें एक साल के बाद ही कैबिनेट रैंक में पदोन्नत किया. अरुण जेटली ने अपनी काबिलियत को बखूबी साबित किया. वह प्रमोद महाजन और अटल बिहारी वाजपेयी की सेवानिवृत्ति के बाद भाजपा के मुख्य रणनीतिकार बन गए.

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6. वह राज्यसभा में भाजपा की आवाज बने और 2009 में वे राज्यसभा में विपक्ष के नेता बने. वह 2014 के चुनाव के लिए भाजपा के मुख्य रणनीति योजनाकार थे और भारी जीत के कारणों में से एक थे. 1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की तत्कालीन सरकार ने अरुण जेटली को अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किया था और उन्होंने बोफोर्स घोटाले में जांच के लिए कागजी कार्यवाई की थी. 

7. जेटली को दो बार रक्षा मंत्रालय का प्रभार मिला था. मई 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद जेटली को वित्त और रक्षा मंत्रालय का प्रभार दिया गया था. वो 2014 में छह महीने रक्षा मंत्री रहे. बाद में मनोहर पर्रिकर रक्षा मंत्री बनाए गए. उनके गोवा का मुख्यमंत्री बनने के बाद जेटली को 2017 में छह महीने के लिए दोबारा यह प्रभार दिया गया. बाद में उनकी जगह निर्मला सीतारमण रक्षा मंत्री बनीं. जेटली की बीमारी के चलते पीयूष गोयल ने दो बार वित्त मंत्रालय संभाला था.

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