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Assembly Election Result 2022: बीजेपी ने इस बार उत्तर प्रदेश में एक नारा दिया था, साइकिल रखो नुमाइश में, बाबा ही रहेंगे बाइस में, फिर Try करना सत्ताईस में. इस बार के चुनाव के नतीजों का सार भी कुल मिलाकर यही है. गुरुवार को 5 राज्यों के चुनाव के नतीजों में पंजाब को छोड़ कर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा के लोगों ने बीजेपी को बहुमत से जिता दिया है और विपक्षी दलों को ये कह दिया है कि आप 2027 में फिर से Try करना.
जो लोग योगी आदित्यनाथ के खिलाफ लहर होने की बात कह रहे थे, आज उन्हें समझ में आया कि लहर उनके खिलाफ नहीं बल्कि उनके पक्ष में चल रही थी. बीजेपी ने इन चारों राज्यों में Pro-Incumbency Wave की वजह से चुनाव जीता है. योगी के अलावा गुरुवार के दूसरे सुपरस्टार रहे अरविंद केजरीवाल, जिनकी पार्टी ने पंजाब में पूरी तरह से झाड़ू लगा दी और पंजाब की राजनीति के बड़े बड़े महाराजाओं को धूल चटा दिया.
एक ज़माने में मशहूर कॉमेडी शो, Laughter Challenge में नवजोत सिंह सिद्धू जज हुआ करते थे और भगवंत मान उसमें एक प्रतियोगी थे. लेकिन गुरुवार को नंबर देने की बारी भगवंत मान की थी. उन्होंने अपने पुराने जज नवजोत सिंह सिद्धू को 100 में से जीरो नम्बर दिए. उत्तराखंड में बीजेपी सरकार बना रही है, लेकिन मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत चुनाव हार गए हैं.
#DNA: यूपी में बीजेपी के नए रिकॉर्ड @sudhirchaudhary #ResultsOnZee
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— Zee News (@ZeeNews) March 10, 2022
ये नए भारत का चुनाव है. ये चुनाव प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे, उनकी ईमानदार छवि और उनके शानदार काम पर जीता गया है. इसीलिए कोई भी विपक्षी नेता उनके सामने ठहर नहीं पाया. इस चुनाव से ये भी पता चलता है कि कोविड से दो साल के लम्बे संघर्ष, तमाम Lockdowns और आर्थिक मंदी के बावजूद मोदी की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है बल्कि ये और बढ़ गई है.
विपक्ष के नेताओं को एक नए वोट बैंक के बारे में भी पता चला है और वो है डबल V यानी विकास का वोट बैंक, जिसकी चाबी सिर्फ मोदी के पास है.
गुरुवार को कांग्रेस पार्टी पूरे उत्तर प्रदेश में सिर्फ दो सीटें जीत पाई और पंजाब में भी वो बुरी तरह हार गई. इसलिए बड़ा सवाल ये है कि क्या प्रियंका गांधी वाड्रा और राहुल गांधी पर इस हार के लिए ज़िम्मेदारी तय की जाएगी? इसी तरह एक और सवाल ये भी है कि क्या मायावती का राजनीतिक करियर समाप्ति की ओर है क्योंकि यूपी चुनाव में बीएसपी केवल एक सीट जीत पाई है.
37 वर्षों के बाद ऐसा हुआ है, जब उत्तर प्रदेश में कोई पार्टी लगातार दूसरी बार सरकार बनाने वाली है. इससे पहले ऐसा वर्ष 1985 में हुआ था, जब कांग्रेस पार्टी लगातार दूसरी बार चुनावों में जीती थी. गुरुवार को वही कांग्रेस उत्तर प्रदेश में 2 सीटों पर सिमट कर रह गई. यानी कांग्रेस उतनी सीटें भी नहीं जीत सकी, जितने चरणों में उत्तर प्रदेश के चुनाव हुए थे. मतलब 7 सीटें भी नहीं जीत पाई.
उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने गुरुवार को कई नए रिकॉर्ड बनाए हैं. जैसे उत्तर प्रदेश के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा, जब कोई मुख्यमंत्री पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद, फिर से इस पद की ज़िम्मेदारी सम्भालेगा.
वोट प्रतिशत के मामले में भी बीजेपी ने अपना 2017 का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. 2017 में उसे 40 प्रतिशत वोट मिले थे लेकिन इस बार उसे 42 प्रतिशत वोट मिले हैं. जबकि समाजवादी पार्टी को लगभग 32 प्रतिशत, बीएसपी को साढ़े 12 प्रतिशत और कांग्रेस को पूरे ढाई प्रतिशत वोट भी नहीं मिले. आप कह सकते हैं कि कांग्रेस यूपी के चुनाव में ढाई कदम भी नहीं चल पाई.
उत्तर प्रदेश में बीजेपी को लगभग चार करोड़ वोट मिले हैं. ये कनाडा जैसे देश की की पूरी आबादी से भी ज्यादा है.
इन नतीजों से ये बात साबित हो गई कि Pro Incumbency Wave भी होती है. पंजाब में कांग्रेस के खिलाफ Anti Incumbency Wave थी. तो बाकी के सभी चार राज्यों में बीजेपी को जिताने की लहर चल रही थी.
इन चुनावों में राजनीति के बड़े-बड़े महाराजा भी धाराशाई हो गए. पंजाब में प्रकाश सिंह बादल, सुखबीर सिंह बादल, नवजोत सिंह सिद्धू, कैप्टन अमरिंदर सिंह, विक्रम मजीठिया और खुद मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह अपनी दो सीटों से चुनाव हार गए. इसके अलावा उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और कांग्रेस नेता हरीश रावत भी चुनाव हार गए.
एक और बात, देश अब जाति की राजनीति को पीछे छोड़ चुका है. गुरुवार को उत्तर प्रदेश में जाति की राजनीति करने वाली पार्टियों की बहुत बड़ी हार हुई है.
- जबकि MY फैक्टर का मतलब अब मुस्लिम प्लस यादव नहीं रह गया है. बल्कि ये मोदी प्लस योगी हो गया है.
- इसके अलावा उत्तराखंड के नतीजों ने एक बार फिर Exit Polls को गलत साबित किया. सभी Exit Polls में ये अनुमान लगाया गया था कि उत्तराखंड में बीजेपी की हार होने वाली है और कांग्रेस सरकार बना सकती है. लेकिन चुनाव में कांग्रेस, बीजेपी को टक्कर भी नहीं दे पाई.
गुरुवार को पंजाब में आम आदमी पार्टी की शानदार जीत ने अरविंद केजरीवाल को राष्ट्रीय स्तर का एक बड़ा नेता बना दिया है. अब राष्ट्रीय राजनीति में महत्वाकांक्षाओं को लेकर केजरीवाल का मुकाबला पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से होगा.
इन नतीजों ने ये भी संकेत दिए हैं कि अब मायावती का राजनीतिक सफर समाप्ति की ओर है. क्योंकि इन चुनावों में बीएसपी का हाथी उतना ही प्रभावी था, जितने उसके दिखाने वाले दांत होते हैं.
गुरुवार के जनादेश ने ब्रैंड मोदी को और भी मज़बूती से देश के सामने रखा है. इस चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी ही चैलेंजर थे और वही डिफेंडर थे. बीजेपी ने ही नहीं, पूरे NDA ने उनके नाम पर चुनाव लड़ा और शानदार तरीके से इसको अंजाम तक पहुंचाया. इसलिए इन नतीजों को आप प्रधानमंत्री मोदी पर देश का Referendum भी कह सकते हैं.
अकाली दल, कांग्रेस, बीएसपी, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय लोकदल. राजनीति में दो तरह के नेता होते हैं. पहले Grassrooters और दूसरे Parachuters . Grassrooters सिर्फ़ ऊपर जा सकते हैं और Parachuters सिर्फ़ नीचे आ सकते हैं. इन चुनावों में लोगों ने परिवारवाद की राजनीति करने वाले नेताओं को नीचे भेज दिया और विकास की राजनीति करने वालों को ऊपर भेज दिया है.
उत्तर प्रदेश में बीजेपी गठबन्धन को 274, समाजवादी पार्टी और उसके सहयोगी दलों को 124, बीएसपी को एक और कांग्रेस को दो सीटों पर जीत मिली है. बीजेपी को अकेले दम पर पूर्ण बहुमत मिला है. हालांकि पिछले बार से उसकी 38 सीटें कम हुई हैं. इसके अलावा अखिलेश यादव ने भी आखिरी ओवर तक बैटिंग की लेकिन वो इस चुनावी मैच में समाजवादी पार्टी को जीत नहीं दिला सके.
पंजाब में आम आदमी पार्टी ने पूरी तरह झाड़ू फेर दी है. आम आदमी पार्टी को पंजाब की 117 सीटों में से 92 सीटों पर जीत मिली है. यानी राज्य की लगभग 79 प्रतिशत सीटें अरविंद केजरीवाल की पार्टी जीत गई. जबकि कांग्रेस को 18, अकाली दल को 4, बीएसपी को 1 और बीजेपी को दो सीटों पर जीत मिली है.
उत्तराखंड के चुनावी नतीजों ने सबसे ज़्यादा सरप्राइज किया. उत्तराखंड की 70 सीटों में से बीजेपी को 48, कांग्रेस को 18, बीएसपी को 2 और अन्य को भी इतनी ही सीटें मिली है. उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद पहली बार ऐसा हुआ है, जब कोई पार्टी दोबारा से सरकार बनाने में कामयाब हुई है. इससे पहले उत्तराखंड में एक बार कांग्रेस की सरकार आती थी और एक बार बीजेपी की सरकार आती थी.
मणिपुर और गोवा में भी बीजेपी को जीत मिली है. संक्षेप में इन चुनावी नतीजों का सार ये है कि, एक तरफ़ बीजेपी का विशाल मॉल था और दूसरी तरफ़ विपक्ष का छोटा सा स्टॉल था.
इन नतीजों में आज एक और चीज़ देखने को मिली. और वो है Pro Incumbency Wave. अब तक चुनावों में न्यूज़ चैनल्स पर Anti Incumbency Wave यानी सरकार विरोधी लहर की ही चर्चा होती थी. लेकिन गुरुवार के नतीजों ने बता दिया कि Pro Incumbency Wave यानी सरकार और पार्टी के समर्थन में भी शानदार लहर हो सकती है. जिन चार राज्यों में बीजेपी की सरकारें थीं, वहां इसी Pro Incumbency Wave की वजह से उसे इतनी बड़ी जीत मिली.
पंजाब में कांग्रेस की सरकार थी, लेकिन Anti Incumbency Wave होने की वजह से उसकी हार हो गई. सबसे बड़ी बात, इस Pro Incumbency Wave को पैदा करने वाले नेता कोई और नहीं, देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं. प्रधानमंत्री मोदी को 2019 में 2014 से भी बड़ी जीत मिली थी और इसका सबसे बड़ा कारण देश में उनके समर्थन में चल रही लहर थी.
यहां एक और Point ये है कि, प्रधानमंत्री मोदी भारतीय राजनीति के एक ऐसे नेता बन कर उभरे हैं, जो चुनावी खेल को पूरी तरह समझते हैं. उन्होंने परम्परागत राजनीति के सभी बन्धनों और समीकरणों को तोड़ दिया है. ब्रैंड मोदी अब चुनाव में जीत की गारंटी बन चुका है.
अंग्रेजी भाषा की एक कहावत है, In India People Dont Cast Their Vote, They Vote Their Caste. यानी भारत में लोग वोट नहीं देते बल्कि अपनी जाति पर मुहर लगाते हैं. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने इस जातिगत राजनीति की बेड़ियों को भी तोड़ दिया है. शायद यही वजह है कि जो पार्टियां जातियों के नाम पर सोशल इंजीनियरिंग करके चुनाव जीतती थीं, उनकी आज स्थिति खराब है.
वर्ष 2007 में मायावती ने 206 सीटें जीत कर पूर्ण बहुमत से उत्तर प्रदेश में बीएसपी की सरकार बनाई थी. लेकिन 15 वर्षों के बाद आज उनकी पार्टी इसी उत्तर प्रदेश में केवल एक सीट पर सिमट कर रह गई है. क्योंकि बीएसपी की जातिगत राजनीति को बीजेपी की विकास की राजनीति से मुकाबला मिल रहा है.
मायावती की तरह अखिलेश यादव की राजनीति भी जातियों की इसी सोशल इंजीनियरिंग पर निर्भर रही है. उनके पिता मुलायम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश में मुस्लिम प्लस यादव वोट बैंक पर कई चुनाव जीते. लेकिन अब M+Y का मतलब बदल गया है. अब इसका मतलब मुस्लिम प्लस यादव नहीं, बल्कि मोदी प्लस योगी है. ये फैक्टर, किसी भी जाति और धर्म के फैक्टर से काफ़ी प्रभावी है.
10 फरवरी को पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 11 ज़िलों की 58 सीटों पर वोटिंग हुई थी. इनमें सात ज़िले ऐसे थे, जहां मुस्लिम वोटर्स की संख्या 25 प्रतिशत या उससे ज्यादा है. और इनमें मुजफ्फरनगर जैसे ज़िले भी थे, जहां 40 प्रतिशत तक मुस्लिम आबादी है.
अखिलेश यादव ने इन सीटों पर जातियों की सोशल इंजीनियरिंग की थी और मुस्लिम उम्मीदवारों की टिकट नहीं दिए थे. लेकिन नतीजे बताते हैं कि इसका उन्हें ज्यादा फायदा नहीं हुआ. पहले चरण की 58 सीटों में बीजेपी को 46 और समाजवादी पार्टी को 12 सीटों पर जीत मिली.
दूसरे चरण में उत्तर प्रदेश के 9 ज़िलों की 55 सीटों पर वोटिंग हुई थी. इन 9 जिलों की 55 में से कुल 38 सीटें ऐसी थीं, जिन पर मुसलमानों के वोट बहुत अहम थे. इस चरण में अखिलेश यादव को काफी फायदा हुआ. इस चरण की 55 में से बीजेपी को 28 सीटों पर जीत मिली. वहीं समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल को 27 सीटों पर जीत मिली. जयंत चौधरी की पार्टी ने कुल 8 सीटें जीती हैं.
एक और बात, जिन 27 सीटों पर अखिलेश यादव का गठबन्धन जीता है, वो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हैं. जहां किसान आन्दोलन का असर था. इसलिए किसान आन्दोलन को असर तो हुआ लेकिन ये असर बहुत कम था.
हमने आपको पहले ही बता दिया था कि अखिलेश यादव की सोशल इंजीनियरिंग शुरुआत के दो चरणों में ही चली. लेकिन इसके बाद उसकी सांस फूलने लगीं. तीसरे चरण की 59 सीटों में से बीजेपी को 42 सीटों पर जीत मिली और समाजवादी पार्टी को 17 सीटों पर जीत मिली.
चौथे चरण में अवध क्षेत्र में चुनाव हुआ था. यहां की 59 सीटों में से बीजेपी 49 सीटें जीती है. और समाजवादी पार्टी गठबन्धन को 10 सीटें मिली हैं.
पांचवें चरण में 61 सीटें थीं, जिनमें से बीजेपी को 39, समाजवादी पार्टी को 19 और अन्य को तीन सीटें मिली हैं.
छठे चरण की 57 सीटों में से बीजेपी को 40, SP को 15 और अन्य को दो सीटें मिलीं.
हालांकि आखिरी चरण में अखिलेश यादव ने अच्छी बैटिंग की. इसमें 54 सीटों में बीजेपी को 26 सीटें मिली और SP को 28 सीटों पर जीत मिली.
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दो दशक पहले बीजेपी के लिए भी ये कहा जाता था कि वो सिर्फ ऊंची जाति वाले लोगों की पार्टी है और दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक और महिलाएं उसे वोट नहीं देती. लेकिन 2014 के बाद ये ट्रेंड पूरी तरह बदल चुका है. आज बीजेपी को उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा पिछड़ी जातियों के वोट मिले हैं. वैसे विकास के इस वोटबैंक के लिए आज एक लाइन काफ़ी इस्तेमाल हो रही है. और वो है, हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, सब पर भारी भाजपाई..
राज्य की महिला वोटरों ने बीजेपी पर सबसे ज्यादा भरोसा किया. इसका एक बड़ा कारण विकास ही है. इन महिलाओं को उज्जवला योजना, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ और तीन तलाक जैसे कानून का फायदा मिला. इसके अलावा युवा वोट बैंक भी बीजेपी के साथ एकजुट रहा. उत्तर प्रदेश के कुल 15 करोड़ वोटर्स में.. लगभग सात करोड़ महिला वोटर्स हैं. जबकि 18 साल से 30 वर्ष के साढ़े तीन करोड़ युवा वोटर्स हैं. यानी महिला और युवा वोट बैंक उत्तर प्रदेश में काफ़ी निर्णायक है. और चुनावों में बीजेपी को महिलाओं और युवाओं का भरपूर समर्थन मिला है.
इसके अलावा बीजेपी का 80-20 का फॉर्मूला भी काम कर गया. इसमें 20 प्रतिशत मुस्लिम वोटों को बीजेपी ने छोड़ दिया था और उसकी कोशिश 80 प्रतिशत हिन्दू वोटों को एकजुट करने की थी.