इस बीमारी का नहीं कोई इलाज, इंसानों को बचाने के लिए घोड़ों को दी गई दया मृत्यु
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इस बीमारी का नहीं कोई इलाज, इंसानों को बचाने के लिए घोड़ों को दी गई दया मृत्यु

औरंगाबाद में दो घोड़ों को मर्सी डेथ यानी दया मृत्यु देने का फैसला हुआ है. 

इस बीमारी का नहीं कोई इलाज, इंसानों को बचाने के लिए घोड़ों को दी गई दया मृत्यु

महाराष्ट्र: घोड़ों में फैलने वाली खतरनाक बीमारी ग्लैंडर्स से इंसानों को बचाने के लिए महाराष्ट्र के औरंगाबाद में इसका शिकार हुए दो घोड़ों को मर्सी डेथ यानी दया मृत्यु देने का फैसला हुआ है. इसमें से एक घोड़े को दोपहर बाद दया मृत्यु दी गई. औरंगाबाद के पशु संरक्षण विभाग के निगरानी में मर्सी डेथ दी गई. ग्लैंडर्स देश भर में घोड़ों को अपना शिकार बना रही है. जो इंसानों के लिए लाइलाज बीमारी है. बीमार घोड़ों के संपर्क में रहने से यह बीमारी इंसान को भी हो सकती है.

बीमार पशु के मुंह और नाक से निकलने वाले तरल पदार्थ के संक्रमण से यह बीमारी दूसरे पशुओं या इंसानों में भी फैल सकती है. केंद्रीय कानून के तहत घोड़ो को दया मृत्यु दिया गया है. अब ग्लैंडर्स से पीड़ित दूसरा घोड़ा दया मृत्यु की प्रतीक्षा में है. ग्लैंडर्स बीमारी के मामले में महाराष्ट्र में इससे पहले 17 घोड़ो को दया मृत्यू दिया जा चुका है.

ग्लैंडर्स बीमारी के लक्षण 
घोड़ों की त्वचा में फोड़े और गांठें, नाक के अंदर फटे हुए छाले दिखना. तेज बुखार होना, नाक से पीला पानी आना और सांस लेने में तकलीफ, खांसी आदि लक्षण होते हैं.
बचाव के उपाय: बीमार पशु की तत्काल जांच कराना चाहिए. स्वस्थ पशुओं को बीमार पशु से अलग रखना चाहिए. बीमार जानवर का चारा-पानी अलग रखना चाहिए. अन्य पशु और मनुष्यों में यह बीमारी न फैले इसके लिए बीमार पशु को अलग रखना चाहिए.

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ग्लैंडर्स बीमारी से बचाव के उपाय
बीमार पशु की तत्काल जांच कराना चाहिए. स्वस्थ पशुओं को बीमार पशु से अलग रखना चाहिए. बीमार जानवर का चारा-पानी अलग रखना चाहिए. औरंगाबाद के जिला पशु चिकित्सक डॉ. प्रशांत चौधरी ने बताया की इन घोडों को जो बीमारी हुई है. इसका कोई इलाज नहीं है.

पशु चिकित्सा अधिकारी और नगर निगम की संयुक्त बैठक हुई. उससे और लोगों को बीमारी न फैले इसलिए घोड़े को दया मृत्यु देने का फैसला हुआ. वहीं दूसरी ओर पशु विभाग के सहायक उपायुक्त डॉक्टर बल्लभ जोशी ने बताया कि घोड़ों को बैक्टीरिया से यह बीमारी होती है. शरीर पर फोड़े होते हैं. उससे फोड़े से गंदा खून बाहर आता है. इसका संक्रमण अन्य पशु के साथ इंसान को भी हो सकता है. इसका कोई ईलाज नही है. ऐसे मेंदया मृत्यू का फैसला लिया गया है.

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