Nag Vasuki Temple: इस मंदिर को तोड़ने खुद आया था औरंगजेब.. भाला चलाते ही हो गया बेहोश
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Nag Vasuki Temple: इस मंदिर को तोड़ने खुद आया था औरंगजेब.. भाला चलाते ही हो गया बेहोश

Nag Vasuki Temple: मुगल काल में जब औरंगजेब का शासन आया तो उसने भारत में कई मंदिरों को तहस-नहस कर दिया था. लेकिन एक मंदिर ऐसा भी था जहां औरंगजेब की हेकड़ी निकल गई थी. कहा जाता है कि इस मंदिर में ईश्वरीय शक्ति से औरंगजेब की का सामना हुआ और वह बेहोश हो गया था.

Nag Vasuki Temple: इस मंदिर को तोड़ने खुद आया था औरंगजेब.. भाला चलाते ही हो गया बेहोश

Nag Vasuki Temple: मुगल काल में जब औरंगजेब का शासन आया तो उसने भारत में कई मंदिरों को तहस-नहस कर दिया था. लेकिन एक मंदिर ऐसा भी था जहां औरंगजेब की हेकड़ी निकल गई थी. कहा जाता है कि इस मंदिर में ईश्वरीय शक्ति से औरंगजेब की का सामना हुआ और वह बेहोश हो गया था. यह प्राचीन मंदिर प्रयागराज में स्थित नागवासुकी मंदिर है. आइये आपको बताते हैं नागवासुकी मंदिर के बारे में..

ऐसा कहा जाता है कि जब मुगल बादशाह औरंगजेब भारत में मंदिरों को तोड़ रहा था, तो वह प्राचीन नागवासुकी मंदिर को खुद तोड़ने पहुंचा था. जैसे ही उसने नागवासुकी मंदिर की मूर्ति पर भाला चलाया, तो अचानक वहां से दूध की धार निकलने लगी. दूध की धारा औरंगजेब के चेहरे पर पड़ी और वह बेहोश हो गया.

बता दें कि प्रयागराज में नागों के अनोखे नागवासुकी मंदिर के दर्शन बिना संगम नगरी की तीर्थयात्रा अधूरी मानी जाती है. धर्म और आस्था की नगरी प्रयागराज के संगम तट से उत्तर दिशा की ओर दारागंज के उत्तरी कोने पर अति प्राचीन नागवासुकी मंदिर स्थित है. इस मंदिर में नागों के राजा वासुकी नाग विराजमान रहते हैं.

मान्यता है कि प्रयागराज आने वाले हर श्रद्धालु और तीर्थयात्री की यात्रा तब तक अधूरी मानी जाती है, जब तक की वह नागवासुकी का दर्शन न कर लें.
ऐसा कहा जाता है कि जब मुगल बादशाह औरंगजेब भारत में मंदिरों को तोड़ रहा था, तो वह अति चर्चित नागवासुकी मंदिर को खुद तोड़ने पहुंचा था. जैसे ही उसने मूर्ति पर भाला चलाया, तो अचानक दूध की धार निकली और चेहरे के ऊपर पड़ने से वो बेहोश हो गया.

पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन में देवताओं और असुरों ने नागवासुकी को सुमेरु पर्वत में लपेटकर उनका प्रयोग रस्सी के तौर पर किया था, वहीं समुद्र मंथन के बाद नागराज वासुकी पूरी तरह लहूलुहान हो गए थे और भगवान विष्णु के कहने पर उन्होंने प्रयागराज में इसी जगह आराम किया था. इसी वजह से इसे नागवासुकी मंदिर कहा जाता है.

जो भी श्रद्धालु सावन मास में नागवासुकी का दर्शन पूजन करता है उसकी सारी बाधाएं दूर हो जाती हैं. इसके साथ ही कालसर्प दोष से भी मुक्ति मिलती है. नाग पंचमी के दिन दूर दराज से लाखों श्रद्धालु दर्शन पूजन के लिए यहां पहुंचते हैं.
एक महिला श्रद्धालु ने कहा कि हम यहां आते रहते हैं. यह प्राचीन मंदिर है और इसका कई पुराणों में वर्णन आता है. गंगा नदी के किनारे यह मंदिर है, इसलिए इस मंदिर का ज्यादा महत्व है. गंगा जी के साथ शिव जी का संबंध ज्यादा है. यहां काल सर्प दोष की पूजा होती है. साथ ही रुद्राभिषेक होता है. यहां सबकी मनोकामना पूरी होती है.

वहीं नागवासुकी मंदिर के पुजारी पंडित श्याम बिहारी मिश्रा ने कहा कि सावन के महीने में इस मंदिर का ज्यादा महत्व है. नागवासुकी जी शंकर जी के गले के नागों के राजा हैं. समुद्र मंथन के बाद भगवान विष्णु द्धारा उन्हें यहां जगह दिया गया. यहां ब्रह्मा जी ने शंकर जी के स्थापना के लिए यज्ञ किया था. उस यज्ञ में भगवान वासुकी जी भी गए हुए थे. जब वे वापस आने लगे तो विष्णु जी ने कहां कि इन्हें यहां स्थापित कर दिया जाए.

वासुकी जी थोड़ा नाराज हुए कि मैं सात हजार वर्ष से यहां पड़ा हूं और आज मेरी याद आयी. विष्णु जी ने कहा कि नाराज मत होइए, कोई वचन मांग लीजिए. तब उन्होंने वचन मांगा कि सावन की नाग पंचमी को तीनों लोक में हमारी पूजा हो. यहां सावन में दर्शन करने मात्र से सभी ग्रहों का नाश हो जाता है. कुंभ आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए यह मंदिर महत्व रखता है. इस मंदिर का दर्शन पूजन करने के बाद भी कुंभ तीर्थ सफल माना जाता है. सरकार की ओर से यहां निर्माण के काम कराए जा रहे हैं. यहां दर्शन करने वाले दर्शनार्थियों की संख्या में हर साल इजाफा देखने को मिल रहा है.

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