बस्तर में नक्सलवाद पर अंकुश लगाने के लिए सुरक्षा बलों द्वारा प्रभावित क्षेत्रों में कैंप स्थापित किए जाने की जो रणनीति अपनाई गई है, उसने अब नक्सलियों को एक छोटे से दायरे में समेट कर रखा दिया है. इनमें से ज्यादातर कैंप ऐसे दुर्गम इलाकों में स्थापित किए गए हैं, जहां नक्सलियों के खौफ की वजह से विकास नहीं पहुंच पा रहा था.
Trending Photos
बस्तर: नक्सलियों का सुरक्षित पनाहगाह माने जाने वाले बस्तर में सुरक्षा बलों की मोर्चाबंदी ने जहां उनकी कमर तोड़ दी है, वहीं अब विकास की बयार भी बहने लगी है. नक्सलियों के 'लाल किले' को भेदने के साथ ही नक्सल हिंसा से प्रभावित क्षेत्रों में सर्वांगीण विकास पर काम किया जा रहा है. यहां अब सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं बहाल होने लगी हैं.
बस्तर में नक्सलवाद पर अंकुश लगाने के लिए सुरक्षा बलों द्वारा प्रभावित क्षेत्रों में कैंप स्थापित किए जाने की जो रणनीति अपनाई गई है, उसने अब नक्सलियों को एक छोटे से दायरे में समेट कर रखा दिया है. इनमें से ज्यादातर कैंप ऐसे दुर्गम इलाकों में स्थापित किए गए हैं, जहां नक्सलियों के खौफ की वजह से विकास नहीं पहुंच पा रहा था.
अब इन क्षेत्रों में भी सड़कों का निर्माण तेजी से हो रहा है, यातायात सुगम हो रहा है, शासन की योजनाएं प्रभावी तरीके से ग्रामीणों तक पहुंच रही हैं, अंदरुनी इलाकों का परिदृश्य भी अब बदल रहा है.
बस्तर में नक्सलियों को उन्हीं की शैली में जवाब देने के लिए सुरक्षा बलों ने भी घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ों पर अपने कैंप स्थापित करने का फैसला लिया. इन कैंपों की स्थापना इस तरह सोची-समझी रणनीति के साथ की जा रही है, जिससे जरूरत पड़ने पर हर कैंप एक-दूसरे की मदद कर सके. इन कैंपों के स्थापित होने से इन इलाकों में नक्सलियों की निर्बाध आवाजाही पर रोक लगी है.
सुरक्षा-बलों की ताकत में कई गुना अधिक इजाफा होने से नक्सलियों को पीछे हटना पड़ रहा है. सुरक्षा बलों की निगरानी में सड़क, पुल-पुलियों, संचार संबंधी इकाइयों का निर्माण तेजी से हो रहा है. इस काम से इन क्षेत्रों में भी शासन की योजनाएं तेजी से पहुंच रही हैं. इन दुर्गम क्षेत्रों की समस्याओं की सूचनाएं अधिक तेजी से प्रशासन तक पहुंच रही हैं, जिसके कारण उनका समाधान भी तेजी से किया जा रहा है.
गांवों में चिकित्सा, स्वास्थ्य, पेयजल, बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं का विकास भी तेज हुआ है. कुपोषण, मलेरिया और मौसमी बीमारियों के खिलाफ अभियान को मजबूत किया जा रहा है, जिससे सैकड़ों ग्रामीणों के स्वास्थ्य की रक्षा हो रही है.
इन बीमारियों की वजह से सैकड़ों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है, इनमें महिलाओं और बच्चों की संख्या सर्वाधिक रही है. बस्तर में लोकतांत्रिक प्रणाली को मजबूती मिलने से बौखलाए नक्सली इन कैंपों का विरोध कर रहे हैं. वे कभी इन कैंपों पर घात लगाकर हमले करते हैं, तो कभी ग्रामीणों के बीच गलतफहमियां फैला उन्हें सुरक्षा बलों के खिलाफ बरगलाते हैं.
बस्तर की सबसे बड़ी समस्या ग्रामीणों और प्रशासन के बीच संवाद की कमी रही है. कैंपों की स्थापना से संवाद के अनेक नये रास्ते खुल रहे हैं, जिससे विकास की प्रक्रिया में अब ग्रामीणजन भी बराबर के भागीदार बन रहे हैं.
बस्तर के वनवासियों को वनों से होने वाली आय में इजाफा तो हो ही रहा है, उनकी खेती-किसानी भी मजबूत हो रही है. छत्तीसगढ़ के दूसरे क्षेत्रों के किसानों की तरह वे भी अब अच्छी उपज लेकर अच्छी कीमत हासिल कर रहे हैं.
ये भी पढ़ें: Gadchiroli में पुलिस की बड़ी कार्रवाई, Encounter में 13 नक्सली ढेर
वनअधिकार पट्टा जैसी सुविधाओं का लाभ उठाने के साथ-साथ वे तालाब निर्माण, डबरी निर्माण, खाद-बीज आदि संबंधी सहायता भी प्राप्त कर रहे हैं. कैंपों की स्थापना के बाद संरचनाओं के विकास से वनोपजों और कृषि उपजों की खरीदी-बिक्री में बिचौलियों की भूमिका खत्म हुई है, अब ग्रामीण जन शासन द्वारा तय किए गए समर्थन मूल्य पर अपनी उपज बेच पा रहे हैं.
बीमार और आपदा-ग्रस्त ग्रामीणों को तेजी से स्वास्थ्य सुविधाएं मिल रही हैं. शिक्षा की माध्यम भी तेजी से विकसित हो रहे हैं. नक्सलियों ने बस्तर संभाग के विभिन्न जिलों में जिन स्कूलों को बंद करवा दिया था, उन स्कूलों के जरिए अब फिर से शिक्षण संबंधी गतिविधियां संचालित की जा रही हैं.