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Bengaluru Flood Latest News: बेंगलुरू के लोग अपना बजट बढ़ाने के बारे में सोच रहे हैं. साइबर सिटी में बारिश के बाद जो हालात बने हैं, उसे देखते हुए लोगों को अब हर मौसम के लिए अलग वाहन खरीदना होगा. जैसे गर्मियों और सर्दियों के लिए कार, और बारिश के लिए ट्रैक्टर, नाव या फिर बुलडोज़र. ये मजाक की बात नहीं है. बेंगलुरू में पिछले 3 दिन से मूसलाधार बारिश हो रही है. रविवार और सोमवार को यहां 13 से 18 सेंटीमीटर तक बारिश हुई थी. बेंगलुरू शहर, इतनी बारिश का आदी नहीं है, इसलिए अब चारों ओर पानी ही पानी है.
लोग ट्रैक्टर या नाव की सवारी कर रहे
आप सोचिए कि बेंगलुरू में दुनियाभर की IT कंपनियों के ऑफिस हैं. लाखों सॉफ्टवेयर इंजीनियर इस शहर में काम करते हैं. इसे भारत की सिलिकॉन वैली कहा जाता है. ये शहर, हाइटेक सॉफ्टवेयर तो बना रहा है, लेकिन हाइटेक सिटी नहीं बन पा रहा है. बारिश की वजह, शहर में इतना पानी जमा है कि लोग ट्रैक्टर या नाव की सवारी कर रहे हैं. बारिश और वॉटर लॉगिंग की वजह से लेट ऑफिस पहुंचने वाले लोगों पर एक मीम भी वायरल हो रहा है. इस मीम में लिखा है कि बेंगलूर, दुनिया का इकलौता टेक हब है, जहां सॉफ्टवेयर इंजीनियर, ऑफिस 2 घंटे लेट पहुंचने के बाद ऐसा सॉफ्टवेयर बनाता है, जिसकी मदद से 10 मिनट में खाना मंगाया जा सकता है.
बेंगलुरु में ट्रैफिक एक बड़ी समस्या
बेंगलुरू शहर का ट्रैफिक एक बड़ी समस्या है, लेकिन बारिश में हालात कुछ ज्यादा ही खराब हो जाते हैं. बेंगलूरू को सिटी ऑफ लेक भी कहा जाता है. यहां पर 80 से ज्यादा झीलें हैं. लेकिन पहली बार बेंगलूरु ने सिटी ऑफ लेक तमगे को शब्दश: चरितार्थ किया है. पहले बेंगलुरू के लोग घूमने के लिए झील तक जाते थे, अब झील उनके दरवाजे पर आ गई हैं. घर से निकलिए और झील सामने. अगर आपके पास नाव या ट्रैक्टर है तो ठीक, नहीं तो बालकनी से हर गली झील का मजा लिया जा सकता है.
महंगी गाड़ियां डूबी हुई हैं
बेंगलुरू में बारिश के बाद स्थिति ये है कि महंगी गाड़ियां डूबी हुई हैं. सड़कें, नहर बन गई हैं, क्योंकि उस पर गाड़ियां नहीं मोटरबोट चल रही है. लोग घर से बाहर आने के लिए नाव का मदद ले रहे हैं. घर छोड़ने के लिए लोग शानदार कार की नहीं...खेतों की शान यानी ट्रैक्टर की सवारी कर रहे हैं. बेंगलूर की तस्वीरों में आपको डूबा हुआ बेंगलुरू शहर नजर आएगा. आपको कुछ ऐसी तस्वीरें भी दिख जाएंगी जो आपने इससे पहले नहीं देखी होगीं. आपने नदियों में बोट राइड की होगी, जिनके खेत खलिहान है, उन्होंने ट्रैक्टर राइड भी की होगी. लेकिन बारिश के बाद बेंगुलुरू शहर देश का पहला ऐसा शहर बन गया है, जहां लोग सड़कों पर बोट राइड...ट्रैक्टर राइड..और JCB राइड का मजा ले रहे है.
बेंगलुरु के रिहायशी इलाकों में भी जलभराव
बेंगलुरु के रिहायशी इलाकों में सड़कों पर इतना पानी है, कि लोग बोट में बैठकर घर से निकल रहे हैं. रेस्क्यू टीम वॉटर लॉगिंग से बचाने के लिए लोगों को बोट के जरिए वहां से निकाल रही है. पानी इतना है कि रेस्क्यू टीम कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है. दिक्कत ये है कि सड़क पर कहां गड्ढा है, कहां मैनहोल, ये नहीं पता है. इसीलिए बोट की मदद से लोगों को निकाला जा रहा है. बारिश के पानी से बचने के लिए लोग ट्रैक्टर राइड ले रहे हैं. पिछले दो दिन से बेंगलुरु की सड़कों पर कार नहीं, ट्रैक्टर ट्रॉली ही नजर आ रही हैं. ऑफिस जाने के लिए भी, लोगों ने कार पूल नहीं, ट्रैक्टर पूल किया. बोट और ट्रैक्टर ही नहीं बेंगलुरु के लोगों का नया वाहन जेसीबी भी है.
ज्यादातर सड़कों पर घुटनेभर पानी
बेंगलुरु में जितनी बारिश हुई है. वहां कोई भी सड़क ऐसी नहीं है जो डूबी ना हो. बेंगलुरु की ये तस्वीरें देखकर ऐसा लगता है कि वहां की सारी झीलें, शहर घूमने निकली हो. झील और शहर में फर्क खत्म हो गया है. ज्यादातर सड़कों पर घुटनेभर पानी जमा हो गया है. सड़क पर पानी की लहरें ऐसे उठ रही हैं जैसे समंदर की लहर हो. बेंगलुरु जिस तेजी से बसा है, उस तेजी से यहां पर ड्रेनेज सिस्टम में सुधार नहीं हुआ है. ये एक बड़ी वजह है कि बेंगलुरु, इस बारिश में बेहाल हो गया. बेंगलुरु की ऐसी स्थिति के कुछ बड़े कारण है, जिसके बारे में आपको जानना जरूरी है.
जानें इन कारणों के बारे में
-बेंगलूरू में बारिश का पानी जमा करने में, यहां की झीलों का बहुत बड़ा हाथ था.
-ये झीलें एक दूसरे से जुड़ी हुई थीं. लेकिन अब झीलों का आपसी कनेक्शन टूट गया है.
-बारिश का पानी सोखने वाले मैदानों और झीलों का अतिक्रमण कर लिया गया है.
-इसी तरह से शहर की झीलें लगातार कम होती गई हैं. वर्ष 1961 तक शहर में 261 झीलें थीं, जिनकी संख्या अब केवल 85 है.
-झीलों के करीब 184 एकड़ क्षेत्र पर अब कोई ना कोई बिल्डिंग बनी है. यानी वो खत्म हो चुकी हैं.
-शहर में कॉन्क्रीट वाले इलाके बढ़ गए हैं और मिट्टी वाले खाली जमीनें कम हो गई हैं.
3 प्रतिशत इलाके में ही हरियाली बची
वर्ष 2017 तक बेंगलुरु शहर के 78 प्रतिशत इलाके कॉन्क्रीट के जंगल थे. लेकिन 2020 तक आते-आते शहर के 90 प्रतिशत से ज्यादा इलाकों में नई इमारतें बन गईं. इसमें ड्रेनेज सिस्टम में सुधार को लेकर कोई प्लानिंग नहीं की गई थी. आपको जानकर हैरानी होगी कि वर्ष 1973 तक बेंगलुरु का 68 प्रतिशत इलाका वन क्षेत्र था. लेकिन 2020 तक आते-आते शहर के केवल 3 प्रतिशत इलाके में ही हरियाली बची. मतलब ये है कि बेंगलुरु शहर का जल निकासी नेटवर्क, इतना खराब हो गया है कि दो दिन की बारिश भी नहीं झेल पाया.
850 किमी से ज्यादा लंबी नालियां
2020 में बेंगलुरू की नगर पालिका, जिसे BBMP कहा जाता है. उसने केवल 377 किमी नालियों की सफाई का ठेका दिया था. जबकि पूरे शहर में 850 किमी से ज्यादा लंबी नालियां हैं. यानी आधे से भी कम नालों की सफाई करवाई गई थी. 2022 में BBMP ने केवल 440 किमी नालियों की सफाई का ठेका दिया था. यानी इस साल भी करीब 50 प्रतिशत ही नालों की सफाई करवाई गई. आज अगर बारिश की वजह से बेंगलुरु में हर ओर पानी है, तो उसके पीछे सरकारी व्यवस्था की गलती है. शहर में लोग बढ़ते गए, नौकरी करने आए लोगों की संख्या बढ़ती गई. लेकिन ड्रेनेज नेटवर्क बढ़ने के बजाए, कम होता गया. इसके सुधार को लेकर कभी कोई गंभीर प्रयास नहीं किए गए. ये हाल केवल बेंगलूरू का नहीं है, देश के ज्यादातर बड़े शहरों में, यहां तक की राजधानी दिल्ली में भी मॉनसून में यही हाल हो जाता है. इस समस्या को लेकर गंभीरता से कभी काम नहीं होता. शहरों के ड्रेनेज नेटवर्क को लेकर ठोस प्रयासों की कमी ही आम नागरिकों को परेशानी बन जाती है. जनता, देश की इस सालाना समस्या से हर साल जूझती है.
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