Exclusive: सरदार भगत सिंह के लिए वीर थे 'सावरकर', उनकी किताब जेल में भी पढ़ते थे शहीद ए आज़म
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Exclusive: सरदार भगत सिंह के लिए वीर थे 'सावरकर', उनकी किताब जेल में भी पढ़ते थे शहीद ए आज़म

Bhagat Singh And Savarkar: राजनीतिक फायदे के लिए नेता स्वतंत्रता संग्राम के दो नायकों, भगत सिंह और वीर सावरकर को आमने-सामने ला देते हैं. लेकिन जान लीजिए कि भगत सिंह, वीर सावरकर का बहुत सम्मान करते थे और जेल में भी उनकी किताबें पढ़ते थे.

भगत सिंह की डायरी में मिला सबूत.

Veer Savarkar And Bhagat Singh Relation: देश की राजधानी दिल्ली (Delhi) में उपराज्यपाल द्वारा दिल्ली सरकार की शराब नीति के खिलाफ सीबीआई (CBI) जांच की सिफारिश ने नया राजनीतिक भूचाल ला दिया है, जिसमें कठघरे में दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया (Manish Sisodia) हैं जिनके पास दिल्ली के आबकारी विभाग की जिम्मेदारी है. लेकिन इस राजनीतिक भूचाल के बीच शुक्रवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने इतिहास में जाकर भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दो नायकों को बीच में ला दिया और भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साधते हुए कहा, 'जेल से हमें डर नहीं लगता. तुम सावरकर (Savarkar) की औलाद हो, जिसने अंग्रेजों से माफी मांगी थी. हम भगत सिंह की औलाद हैं, हम भगत सिंह (Bhagat Singh) को अपना आदर्श मानते हैं, जिसने अंग्रेजों के सामने झुकने से मना कर दिया और फांसी पर लटक गए. हमें जेल और फांसी से डर नहीं लगता है.'

  1. सावरकर का सम्मान करते थे भगत सिंह
  2. जेल में सावरकर की किताब पढ़ते थे भगत सिंह
  3. भगत सिंह की डायरी में मिले सबूत

सावरकर की किताब के 6 अंश भगत सिंह ने डायरी में लिखे

आबकारी नीति की जांच से शुरू हुए इस मुद्दे को दिल्ली के मुख्यमंत्री ने सावरकर बनाम भगत सिंह बना दिया तो ऐसे में देश के लोगों को सावरकर और भगत सिंह के संबंध और सम्मान के बारे में जानना जरूरी है और इसकी शुरुआत जेल से ही करते हैं. आजादी के नायक सरदार भगत सिंह असेंबली धमाके के बाद 2 साल तक जेल में रहे थे, जिसमें उन्होंने देश-विदेश के कई स्वतंत्रता सेनानियों की लिखित पुस्तकें पढ़ी थीं और इन पुस्तकों के जो अंश उन्हें अच्छे लगते थे. उन्हें सरदार भगत सिंह अपनी डायरी और कागज नोट्स में लिखते थे. भगत सिंह ने जेल में जो डायरी लिखी थी उसमें ज्यादातर विदेशी लेखकों की किताबों के अंश ही लिखे थे और सिर्फ 7 भारतीय लेखक ऐसे थे जिनकी किताबों के अंश को भगत सिंह ने अपनी डायरी में लिखा था. वीर सावरकर को छोड़कर जहां बाकी भारतीय लेखकों की किताबों के एक अंश को भगत सिंह ने अपनी डायरी में लिखा था तो वीर सावरकर एकमात्र ऐसे थे जिनकी किताब 'हिंदूपदपादशाही'  को पढ़कर उसके कुल 6 अंश सरदार भगत सिंह ने अपनी डायरी और नोट्स में लिखे थे.

'न मारे जाएं और न ही धर्मांतरण किया जाए, हिंसक शक्ति को ही मार दें'

सरदार भगत सिंह ने जेल में जो डायरी और नोट्स लिखे थे उसकी Exclusive कॉपी ज़ी न्यूज़ के पास है, जिसके बारे में आपको भी आज जानना चाहिए. अपनी डायरी के पेज नंबर 103 पर आखिरी पैराग्राफ में सरदार भगत सिंह, वीर सावरकर की किताब 'हिंदूपदपादशाही' के पेज 165 पर सावरकर द्वारा संत रामदास के मुगलों के खिलाफ युद्ध पर लिखे गए वाक्य 'धर्मांतरित होने के बजाय मार डाले जाओ’ उस समय हिंदुओं के बीच यही पुकार प्रचलित थी. लेकिन रामदास ने खड़े होकर कहा, ‘नहीं, यह सही नहीं है’. धर्मांतरित होने के बजाय मार डाले जाओ- यह काफी अच्छा है लेकिन उससे भी बेहतर है ‘न मारे जाएं और न ही धर्मांतरण किया जाए, हिंसक शक्ति को ही मार दें' को लिखते हैं.

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मराठा युद्धनीति की तरफदारी करते थे भगत सिंह

सरदार भगत सिंह जब जेल में थे तब डायरी में कथन लिखने से पहले उन्होंने कुछ कागज के पन्नों पर भी कथन लिखे थे. इसी कड़ी में सरदार भगत सिंह के नोट्स के पेज नंबर 7 पर सावकार की इसी किताब 'हिन्दूपदपादशाही' के पेज 219 पर कथन लिखा हुआ है, 'उस बलिदान की सराहना केवल तभी की जाती है जब बलिदान वास्तविक हो या सफलता के लिए अनिवार्य रूप से अनिवार्य हो. लेकिन जो बलिदान अंततः सफलता की ओर नहीं ले जाता है, वह आत्मघाती है और इसलिए मराठा युद्धनीति में उसका कोई स्थान नहीं था.'

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अपने कागज के नोट्स में सरदार भगत सिंह आगे सावरकर की इसी किताब के 220 पेज पर लिखे, 'इन मराठों से लड़ते हुए हवा से लड़ रहे हैं, पानी पर पानी खींच रहे हैं' वाक्य को लिखते हैं. साथ ही इसी में भगत सिंह आगे 226 पेज पर मौजूद सावरकर की किताब के वाक्य को जोड़ते हैं, 'वीरता के कार्य किए बिना, वीरता का प्रदर्शन किए बिना, साहस के साथ इतिहास बनाए बिना इतिहास लिखना हमारे वक्त का एक बुरा सपना है. वीरता को वास्तविकता बनाने का अवसर न मिलना हमारे लिए अफसोस की बात है.'

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जेल में लिखे अपने नोट्स में वीर सावरकर की किताब 'हिन्दूपदपादशाही' के 231 पेज पर लिखे वाक्य 'राजनीतिक दासता को कभी भी आसानी से उखाड़ फेंका जा सकता है. लेकिन सांस्कृतिक वर्चस्व के बंधनों को तोड़ना मुश्किल है' लिखते हैं.

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वीर सावरकर अपनी किताब 'हिन्दूपदपादशाही' में थॉमस मूर की पंक्तियां 'हे स्वतंत्रता, जिसकी मुस्कान हम कभी नहीं छोड़ते, जाओ उन आक्रामक, मूर्खों को बताओ ‘आपके मंदिर में एक युग से अधिक बहने वाला रक्त प्रवाह हमारे लिए मीठा है जंजीरों में जकड़ी नींद से ज्यादा है' को लिखते हैं, जिससे प्रभावित होकर सरदार भगत सिंह भी इसे अपने नोट्स में जगह देते हैं.

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इतिहासकारों के मुताबिक, सरदार भगत सिंह वीर सावरकर की राष्ट्रभक्ति और स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका से किस कदर प्रभावित थे, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सरदार भगत सिंह ने वीर सावरकर द्वारा 1857 के स्‍वतंत्रता संग्राम पर लिखी गई किताब ‘1857- इंडिपेंडेंस समर' का अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित करवाया था और इसे अन्य क्रांतिकारियों को बांटा भी था.

भगत सिंह के सावरकर के प्रति क्या विचार थे इसका एक उदाहरण कलकत्ता से प्रकाशित होने वाली मतवाला मैगज़ीन में लिखे उनके लेख में मिलता है. जहां 15 नवंबर और 22 नवंबर, 1924 को प्रकाशित अंक में सरदार भगत सिंह लिखते हैं, 'विश्वप्रेमी वह वीर है जिसे भीषण विप्लववादी, कट्टर अराजकतावादी कहने में हम लोग तनिक भी लज्जा नहीं समझते- वही वीर सावरकर. विश्वप्रेम की तरंग में आकर घास पर चलते-चलते रुक जाते कि कोमल घास पैरों तले मसली जाएगी.' यह लेख सरदार भगत सिंह ने बलवंत सिंह के छद्म नाम (Pen Name) से लिखा था.

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इतिहासकारों के मुताबिक, आजादी के नायकों भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी के बाद वीर सावरकर ने इन सपूतों की शान में कविता लिखकर अपनी पीड़ा व्यक्त थी और महाराष्ट्र के रत्नागिरी स्थित अपने आवास पर काला झंडा फहराया था. ये सारे तथ्य साबित करते हैं कि भगत सिंह और वीर सावरकर का रिश्ता देश प्रेम का था, आपसी मान-सम्मान का था. ऐसे में अपने निजी राजनीतिक फायदे के लिए एक क्रांतिकारी को अपना आदर्श बताना और दूसरे का अपमान करना कुशल राजनीतिक कदम तो बिल्कुल नहीं है.

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