बिहार: जमुई, औरंगाबाद और गया में 620 एकड़ भूमि में अफीम की खेती नष्ट
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बिहार: जमुई, औरंगाबाद और गया में 620 एकड़ भूमि में अफीम की खेती नष्ट

अधिकारी ने कहा, 'निरंतर प्रयासों से हम इन तीन जिलों में अफीम की खेती को नियंत्रित करने में कामयाब रहे हैं. हमने वित्तीय वर्ष 2021-22 में 620 एकड़ में फैली फसल को नष्ट कर दिया है.

(प्रतीकात्मक तस्वीर)

पटना: सुरक्षा बलों ने पिछले एक साल में बिहार के तीन जिलों में 620 एकड़ भूमि में अफीम की फसल को नष्ट कर दिया है. राज्य पुलिस के एक अधिकारी ने मंगलवार को यह जानकारी दी. अधिकारी ने कहा कि जमुई, औरंगाबाद और गया के नक्सल प्रभावित जिलों में अफीम की खेती नक्सल समूहों के लिए राजस्व सृजन का एक प्रमुख स्रोत बन रही है.

नक्सल प्रभावित जिलों में हुई कार्रवाई
अधिकारी ने कहा, 'निरंतर प्रयासों से हम इन तीन जिलों में अफीम की खेती को नियंत्रित करने में कामयाब रहे हैं. हमने वित्तीय वर्ष 2021-22 में 620 एकड़ में फैली फसल को नष्ट कर दिया है. 2020-21 में, हमने 584 एकड़ और 2019-20 में 470 एकड़ भूमि में फसलों को नष्ट कर दिया था.'

मानसून के बाद शुरू होती है खेती
अफीम की खेती की तैयारी मानसून सत्र (Monsoon Session) के बाद शुरू होती है, जबकि खेती का आदर्श समय जनवरी से मार्च के बीच होता है. अफीम की अवैध खेती में शामिल लोग आमतौर पर जमुई, औरंगाबाद और गया के घने जंगलों में रहते हैं. जमुई जिले में सिकंदरा का गहरा जंगल और गया जिलों में धनगई और बाराचट्टी क्षेत्र में अफीम की खेती के लिए बदनाम हैं.

अधिकारी ने कहा, 'अफीम की खेती आम तौर पर इन क्षेत्रों के गरीबों द्वारा की जा रही है जो नक्सल समूहों द्वारा संरक्षित हैं. चूंकि अधिकांश भूमि राज्य सरकार की संपत्तियां हैं जो वन क्षेत्रों के अंतर्गत आती हैं, इसके लिए किसी भी व्यक्ति को जिम्मेदार ठहराना बेहद मुश्किल है. इसलिए, हम अधिकतम स्तर पर फसलों को नष्ट करने के लिए कृषि सत्रों के दौरान क्षेत्रों में बल जुटाने की पहल करते हैं. यह नक्सल अर्थव्यवस्था को चलाने का एक प्रमुख स्रोत है.'

उन्होंने कहा, 'अफीम की खेती से होने वाले राजस्व का इस्तेमाल हथियार और गोला-बारूद खरीदने में किया जाता है.'

(आईएएनएस)

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