Gaya Pitru Paksha 2024: रिश्तेदारों के यहां नहीं ठहरते पिंडदानी, जानें क्या है इसके पीछ रहस्य
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Gaya Pitru Paksha 2024: रिश्तेदारों के यहां नहीं ठहरते पिंडदानी, जानें क्या है इसके पीछ रहस्य

 Gaya Pitru Paksha 2024: बिहार के चलने वाला पितृपक्ष मेला 2 अक्टूबर तक चलने वाला है. पिंडदानियों के लिए गया में कई तरह के सरकारी व्यलस्था किए गए हैं.

पितृपक्ष मेला

गया: बिहार के गया की पहचान मोक्ष स्थली के रूप में होती है. मान्यता है कि यहां अपने पुरखों को पिंडदान करने से उन्हें जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जाती है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसी आस्था के कारण पितृपक्ष में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पिंडदान के लिए यहां पहुंचते हैं और पूर्वजों की मोक्ष प्राप्ति की कामना से पिंडदान करते हैं.

इस वर्ष पितृपक्ष की शुरुआत 17 सितंबर से हुई है और यह दो अक्टूबर तक चलेगा. इस पितृपक्ष में लाखों श्रद्धालु पिंडदान के लिए गया पहुंचे हैं. लेकिन, क्या आपको मालूम है कि यहां पिंडदान के लिए आने वाले कई श्रद्धालु ऐसे होते हैं जिनके रिश्तेदार गया में रहते हैं, फिर भी वे उनको अपने घरों में नहीं रख सकते. पिंडदानी भी उनके यहां नहीं जा सकते. पिंडदान के लिए गया आने वाले सभी श्रद्धालु यहां किसी धर्मशाला, होटल या पंडा के आवास में ही रहते हैं. इसके पीछे कई मान्यताएं भी हैं.

श्री विष्णुपद मंदिर प्रबंधकारिणी समिति के सचिव गजाधर लाल पाठक के अनुसार, हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पितरों की आत्मा की शांति एवं मुक्ति के लिए पिंडदान अहम कर्मकांड है. आश्विन मास के कृष्ण पक्ष को 'पितृपक्ष' या 'महालय पक्ष' कहा जाता है, जिसमें लोग अपने पुरखों का पिंडदान करते हैं. मान्यता है कि पिंडदान करने से मृत आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है. ऐसे तो पिंडदान के लिए कई धार्मिक स्थान हैं, परंतु सबसे उपयुक्त स्थल बिहार के गया को माना जाता है. वे कहते हैं, श्रद्धा ही श्राद्ध है. अपनों के प्रति श्रद्धा मुख्य विषय है, जिसमें आस्था है. पिंडदनी आस्था को लेकर गया पहुंचते हैं. यहां वे रिश्तेदारों के यहां नहीं ठहरते क्योंकि यह आस्था है. वे किसी रिश्तेदार की मदद नहीं लेते.

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गया वैदिक मंत्रालय पाठशाला के पंडित राजा आचार्य का कहना है कि पुराण के अनुसार, उन्हें कई नियम का पालन करना अनिवार्य होता है. जब गया तीर्थ आएं तो श्राद्ध भूमि को नमस्कार करना, एकांतवास करना, जमीन पर सोना, पराया अन्न नहीं खाना, पितृ स्मरण या देवता स्मरण में रहना, सब श्राद्ध में विधान बताया गया है. उन्होंने कहा कि जो श्रद्धालु गया तीर्थ यात्रा करने आते हैं, उन्हें इन नियमों का पालन करना आवश्यक है. गया तीर्थ यात्रा अपने पितरों के उत्तम लोक की प्राप्ति के लिए किया जाता है, इसलिए पिंडदानियों को एकांतवास में रहना या किसी अन्य स्थल पर रह कर श्राद्ध कार्य पूरा करने का नियम है. यही कारण है कि कोई भी तीर्थयात्री अपने निजी रिश्तेदारों के घर नहीं रहते.

इनपुट- आईएएनएस

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