नीतीश कुमार पाला बदलकर NDA में नहीं गए तो क्या होगा?
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नीतीश कुमार पाला बदलकर NDA में नहीं गए तो क्या होगा?

Lok Sabha Election 2024: राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव यह कतई नहीं चाहेंगे कि लोकसभा चुनाव में उन्हें और उनकी पार्टी को नीतीश कुमार के रहमोकरम पर रहकर चुनाव लड़ना पड़े. लालू प्रसाद भी समझते हैं कि इस बार नीतीश कुमार के लिए एनडीए में राह उतनी आसान नहीं है.

नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव

Lok Sabha Election 2024: भाजपा के खिलाफ पूरे देश में विपक्षी दलों का गठबंधन इंडिया के रूप में मुस्तैद हो चुका है. इंडिया में अब एक कदम आगे जाकर सीट शेयरिंग पर बात की जा रही है. कुछ दलों के बीच मतभेद हैं, जिसे सुलझाने के हरसंभव उपाय भी किए जा रहे हैं. फ्रंटफुट और बैकडोर की पाॅलिटिक्स भी खेली जा रही है. इस बीच नीतीश कुमार की नाराजगी की खबरें काफी दिनों से सुर्खियों में है. नीतीश कुमार को भी मनाने के हरसंभव उपाय किए जा रहे हैं. दिल्ली से दूत भेजे जा रहे हैं. स्थानीय स्तर पर नेताओं की गाड़ियां सीएम हाउस तक जा रही हैं. वार्ता चल रही है. वहीं एक कयासबाजी भी चल रही है कि नीतीश कुमार जल्द ही पाला बदल सकते हैं. इंडिया के नेताओं को इस बात का डर है और भाजपा के अलावा उसके सहयोगी दलों की ओर से भी ऐसी बजायबाजी की जा रही है. नीतीश कुमार अगर पाला बदलकर एनडीए में चले जाते हैं तब तो खुला खेल फर्रुखाबादी वाला हाल हो जाएगा. अब सोचिए, अगर नीतीश कुमार ने पाला नहीं बदला तो बिहार में लोकसभा चुनाव के मौके पर क्या सीन होगा?

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विश्वसनीयता का संकट 

बिहार में इंडिया की बात करें तो लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनता दल को बढ़त हासिल है. नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू दरअसल 2017 में महागठबंधन से बाहर होकर एनडीए के पाले में चली गई थी और 2022 में फिर से महागठबंधन का हिस्सा बन गई थी. इसलिए उसके साथ विश्वसनीयता का संकट है. यही कारण है कि जेडीयू की लाख कोशिशों के बाद भी इंडिया में नीतीश कुमार को पीएम पद के चेहरे के लिए प्रोजेक्ट करना तो दूर, किसी ने नाम प्रस्तावित करना भी गंवारा नहीं समझा. खुद उनकी पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष ललन सिंह पर आरोप है कि उन्होंने नीतीश कुमार के नाम की सही से पैरवी नहीं की. पीएम पद तो छोड़िए, संयोजक पद के लिए भी किसी ने नीतीश कुमार के नाम का प्रस्ताव नहीं रखा था. 

संयोजक पद पर आम राय नहीं 

दिल्ली में 19 दिसंबर, 2023 को हुई बैठक से निराश नीतीश कुमार जब नाराज हुए तो कांग्रेस और लालू प्रसाद यादव सक्रिय हुए. मुंबई से शिवसेना ठाकरे गुट के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भी फोन करके नीतीश कुमार से बातचीत की और बीच का रास्ता तलाशने पर जोर दिया. उसके बाद वर्चुअल मीटिंग में माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी ने नीतीश कुमार को संयोजक बनाए जाने का प्रस्ताव रखा, लेकिन कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने यह कहकर अड़ंगा डाल दिया कि नीतीश कुमार के नाम पर ममता बनर्जी सहमत नहीं हैं. इसके बाद नीतीश कुमार ने संयोजक पद लेने से मना कर दिया. अब ममता बनर्जी ने क्यों नीतीश कुमार के नाम पर आपत्ति जताई. इसका जवाब यह है कि नीतीश कुमार के पुराने सहयोगी और अब ममता बनर्जी के करीबी प्रशांत किशोर ने ममता बनर्जी को सलाह दी थी कि नीतीश कुमार अगर संयोजक बन गए तो आने वाले समय में ममता बनर्जी के लिए दिल्ली के दरवाजे बंद हो जाएंगे. ऐसा सूत्रों का कहना है. इस तरह जेडीयू नेता भले ही कहते रहें कि पूरे देश में नीतीश कुमार की स्वीकार्यता है, इंडिया में ही नीतीश कुमार के नाम पर कोई सहमति नहीं है. 

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इंडिया में लालू प्रसाद ज्यादा भरोसेमंद

नीतीश कुमार के उलट, इंडिया ब्लाॅक में लालू प्रसाद यादव पर भरोसा कहीं ज्यादा है. पूरे देश के लोग जानते हैं कि भाजपा के खिलाफ पहले दिन से ही उन्होंने बड़ी लड़ाई लड़ी है. केवल बिहार की ही बात करें तो कांग्रेस या वामदल की वो हैसियत नहीं है कि वे लालू प्रसाद यादव की बात को ना कह सकें. पटना, बेंगलुरू, मुंबई और फिर दिल्ली, नीतीश कुमार को संयोजक बनाए जाने को लेकर अगर कोई फैसला नहीं हुआ तो उसके पीछे लालू प्रसाद यादव का भी दिमाग हो सकता है. पटना की पहली बैठक की बात करें तो इंडिया ब्लाॅक में शामिल अधिकांश नेता पहले राबड़ी आवास गए और वहां लालू प्रसाद यादव से कुशलक्षेम पूछने के बाद ही बैठक में शामिल हुए. तब मीडिया के एक हलके में इस बात को लेकर भी नीतीश कुमार की नाराजगी की चर्चा हुई थी. 

लालू प्रसाद के विरोधी दलों से अच्छे संबंध 

ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, एमके स्टालिन, फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती, सीताराम येचुरी, डी. राजा आदि नेताओं से लालू प्रसाद यादव के अच्छे संबंध हैं. यूपीए की सरकार में जब इनमें से अधिकांश दल शामिल थे, तब लालू प्रसाद यादव रेल मंत्री हुआ करते थे और इन नेताओं से बराबर संपर्क में थे. सपा प्रमुख अखिलेश यादव तो लालू प्रसाद यादव के रिश्तेदार भी लगते हैं. दूसरी ओर, नीतीश कुमार का ज्यादातर समय एनडीए के साथ बीता है और हाल ही में वे एनडीए से नाता तोड़कर महागठबंधन में आए हैं. इससे पहले भी एक बार उन्होंने महागठबंधन का दामन थामा था पर डेढ़ साल में ही उनका मोहभंग हो गया था और वे वापस एनडीए में चले गए थे. बदला कुछ भी नहीं था. जिस बहाने से उन्होंने एनडीए छोड़ा था, वो बहाना आज भी है और जिस बहाने से उन्होंने महागठबंधन छोड़ा था, वो भी बहाना आज कायम है. और फिर बीच बीच में नाराजगी की खबरों से भी नीतीश कुमार के खिलाफ में माहौल बनता है. 

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लालू की शर्तों पर लड़ना पड़ सकता है चुनाव

नीतीश कुमार को हालांकि यह बताने की जरूरत नहीं है कि आज की तारीख में इंडिया में लालू प्रसाद का जो रसूख है, वो नीतीश कुमार से कही ज्यादा व्यापक है. बिहार में भी और बिहार के बाहर भी. इस लिहाज से यह कहा जा सकता है कि अगर नीतीश कुमार पाला नहीं बदलते हैं तो फिर उन्हें अपनी शर्तों पर नहीं, लालू प्रसाद की शर्तों पर चुनाव मैदान में जाना पड़ सकता है. राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव कभी नहीं चाहेंगे कि बिहार में तीसरे नंबर की पार्टी की शर्तों में उलझकर रह जाएं. 

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