Good News: पटना के IGIMS में खुलेगी एंजियोप्लास्टी की एक अलग यूनिट, दिल के रोगियों को मिलेगी बड़ी सहूलियत
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Good News: पटना के IGIMS में खुलेगी एंजियोप्लास्टी की एक अलग यूनिट, दिल के रोगियों को मिलेगी बड़ी सहूलियत

Patna News: हृदय रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. रवि विष्णु ने बताया कि देश व दुनिया में सबसे अधिक मौतें हृदयाघात से होती हैं. इसका एक बड़ा कारण तुरंत एंजियोग्राफी-एंजियोप्लास्टी नहीं मिल पाना भी है. प्राइमरी एंजियोग्राफी के लिए दो घंटे का समय गोल्डेन आवर माना जाता है.

प्रतीकात्मक तस्वीर

Patna News: बिहार में दिल के मरीजों को अब एंजियोप्लास्टी के लिए दूसरे राज्यों में जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. हार्ट अटैक से लोगों की जान ना जाए, इसके लिए राजधानी पटना में स्थिति IGIMS में एंजियोप्लास्टी की एक अलग यूनिट खोली जाएगी. आईजीआईएमएस के अस्पताल अधीक्षक डॉ. मनीष मंडल ने बताया कि अगले सप्ताह से यह यूनिट शुरू हो जाएगी. IGIMS के हृदय रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. रवि विष्णु ने बताया कि यहां विशेषज्ञ डॉक्टरों की एक टीम है, जो 24 घंटे मरीजों का इलाज करते हैं. उन्होंने कहा कि एंजियोप्लास्टी की यूनिट लगने के बाद हार्ट अटैक से होने वाली मौतों में 50 फीसदी तक कमी देखने को मिल सकती है.

डॉ. रवि विष्णु ने कहा कि एंजियोप्लास्टी की एक अलग यूनिट लगने से मरीज किसी भी समय अस्पताल आएगा, उसे तुरंत यह सुविधा मिलेगा, इससे उसकी जान बचाने की संभावना बढ़ जाएगी. उन्होंने कहा कि कोरोना के बाद से बड़ी संख्या में युवाओं को दिल की बीमारियां हो रही हैं. ऐसा कई बार देखा गया है कि कम उम्र के युवा को काम करते-करते हार्ट अटैक आ गया और तुरतं इलाज नहीं मिलने से उनकी मौत भी हो गई. उन्होंने कहा कि प्रदेश में हार्ट अटैक से मरने वालों की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ी है. इसे देखते हुए एंजियोप्लास्टी की एक अलग यूनिट लगाई जा रही है.

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बता दें कि एंजियोग्राफी जांच की प्रक्रिया है. इससे मरीज को कितने ब्लॉकेज और कहां ब्लॉकेज हैं? यह पता किया जाता है. एंजियोग्राफी के बाद ही एंजियोप्लास्टी की जाती है. प्राइमरी एंजियोप्लास्टी के लिए हार्ट अटैक के मरीज को 2 घंटे के अंदर ऐसे अस्पताल में पहुंचना चाहिए, जहां एंजियोग्राफी और एंजियोप्लास्टी की सुविधा हो. अक्सर मरीज दो घंटे के अंदर नहीं पहुंचते हैं. डॉ. रवि विष्णु ने बताया कि देर से इलाज के लिए अस्पताल पहुंचने वाले हार्ट अटैक के मरीज की थ्रोंबोलीसिस की जाती है. यानी खून का थक्का गलाने की दवा दी जाती है. इसके बाद जब मरीज स्टेबल हो जाता है, तो उसकी एंजियोग्राफी करके देखी जाती है.

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