उड़ीसा के पुरी में निकाली गई भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा, भारी संख्या में श्रद्धालु हुए शामिल
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उड़ीसा के पुरी में निकाली गई भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा, भारी संख्या में श्रद्धालु हुए शामिल

उड़ीसा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाती है. उड़ीसा के अलावा धार्मिक नगरी काशी में भी रथयात्रा का आयोजन बड़े ही हर्षोल्लास के साथ किया जाता है. वहीं उत्तर प्रदेश के कानपुर में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाती है.

उड़ीसा के पुरी में निकाली गई भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा, भारी संख्या में श्रद्धालु हुए शामिल

Jagarnath rathyatra: आज उड़ीसा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली गई है. इस रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ, बलराम और बहन सुभद्रा की रथयात्रा निकाली गई है. जिसमें देश के अलग-अलग हिस्सों से भारी संख्या में श्रद्धालु शामिल हैं. भगवान जगन्नाथ की यह रथयात्रा पुरी के अलावा देश के कई हिस्सों में निकाली जाती है.

कब निकाली जाती है भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा
भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा प्रत्येक वर्ष आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष के द्वितीया तिथि को निकाली जाती है. रथयात्रा का यह उत्सव 10 दिनों तक मनाया जाता है. इस साल भगवान जगन्नाथ की 146 वीं रथयात्रा 20 जून को निकाली जा रही है. 

देश के इन हिस्सों में निकाली जाती भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा
उड़ीसा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाती है. उड़ीसा के अलावा धार्मिक नगरी काशी में भी रथयात्रा का आयोजन बड़े ही हर्षोल्लास के साथ किया जाता है. वहीं उत्तर प्रदेश के कानपुर में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाती है. इसके साथ ही भगवान कृष्ण की नगरी वृन्दावन में भी भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाती है. इस दौरान भगवान जगन्नाथ का दर्शन करने के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु इस यात्रा में शामिल होते हैं.
 
रथयात्रा का इतिहास
ऱथयात्रा को लेकर अलग-अलग कई मत है. पौणाणिक मत के अनुसार जयेष्ठ पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ का जन्मदिन होता है. इस दिन भगवान जगन्नाथ के बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्र को रत्नसिंहासन से उतार कर मंदिर के पास बने स्नान मंडप में ले जाया जाता है. इसके बाद भगवान जगन्नाथ, बड़े भाई बलराम औऱ बहन सुभद्र को 108 कलशों से शाही स्नान होता है. एक मान्यता के मुताबिक इस स्नान से प्रभु बीमार हो जाते हैं उन्हें ज्वर आ जाता है.

जिसके बाद 15 दिनों तक प्रभु जी को एक विशेष कक्ष में रखा जाता है. जिसे ओसर घर कहते हैं. जिसके बाद 15 दिनों तक की अवधि में महाप्रभु को मंदिर के प्रमुख सेवकों और वैद्यों के अलावा कोई और उन्हें नहीं देख सकता. इस दौरान मंदिर में महाप्रभु के प्रतिनिधि अलारनाथ जी की प्रतिमा स्थपित की जाती हैं तथा उनकी पूजा अर्चना की जाती है.
 
फिर 15 दिनों बाद भगवान स्वस्थ होकर कक्ष से बाहर निकलते हैं और भक्तों को दर्शन देते हैं. जिसे नव यौवन नैत्र उत्सव भी कहते हैं. इसके बाद द्वितीया के दिन महाप्रभु श्री कृष्ण और बडे भाई बलराम जी तथा बहन सुभद्रा जी के साथ बाहर राजमार्ग पर आते हैं और रथ पर विराजमान होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं.

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