क्या होता है पॉलीग्राफ टेस्ट, क्यों नार्को टेस्ट से पहले इसे करवाना होता है जरूरी?
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क्या होता है पॉलीग्राफ टेस्ट, क्यों नार्को टेस्ट से पहले इसे करवाना होता है जरूरी?

श्रद्धा के मर्डर के आरोपी आफताब को नार्को टेस्ट से पहले पॉलीग्राफ टेस्ट से गुजरना पड़ेगा. हालांकि काफी समय से लगातार पॉलीग्राफ टेस्ट टल रहा है क्योंकि नार्को टेस्ट से पहले पॉलीग्राफ टेस्ट करना जरूरी होता है.

 (फाइल फोटो)

Patna: श्रद्धा के मर्डर के आरोपी आफताब को नार्को टेस्ट से पहले पॉलीग्राफ टेस्ट से गुजरना पड़ेगा. हालांकि काफी समय से लगातार पॉलीग्राफ टेस्ट टल रहा है क्योंकि नार्को टेस्ट से पहले पॉलीग्राफ टेस्ट करना जरूरी होता है. तो  आइये जानते हैं कि  नार्को टेस्ट और पॉलीग्राफ टेस्ट में क्या अंतर है. 

क्या होता है पॉलीग्राफ टेस्ट?

क्राइम साइकॉलोजी रिव्यू नाम के रिसर्च जर्नल के अनुसालर एक ऐसा परीक्षण है, जो सच जानने के लिए इंसान की फिजिकल और मेंटल एक्टिविटी को टेस्ट करता है. इस टेस्ट के दौरान कुछ सवाल किए जाते हैं. सवालों के जवाब देते हुए मशीन टेस्ट करवा रहे शख्स की सभी तरह की एक्टिविटी का चार्ट तैयार करती है. इस टेस्ट को साल 1921 में इजात किया था. इसे अमेरिकन पुलिसकर्मा और फिजियोलॉरिस्ट जॉन ए लार्सन ने बनाया था. अपराधियों से जरूरी जानकारी और सच उगलवाने के लिए ये मशीन बनाई थी. इससे अपराधी के हार्टबीट, श्वसन दर (respiratory system), होठ हिलाने जैसी तमाम चीजों को नोट किया जाता है.

पॉलीग्राफ और नार्को टेस्ट में अंतर

पॉलीग्राफ टेस्ट या लाइ डिटेक्टर टेस्ट में आरोपी की फिजिकल एक्टिविटी जैसे, हार्टबीट, नाड़ी, रेस्पिरेटरी सिस्टम और पसीने को नोट किया जाता है. नार्को टेस्ट में आरोपी को इंजेक्शन से सोडियम पेंटोथल दवा दी जाती है. इस दवा से आरोपी बेहोश होता है लेकिन उसका दिमाग काम करता है. इसके बाद आरोपी से सवाल किए जाते हैं. ज्यादातर इस तरह के टेस्ट में पाया गया है कि इस दौरान ज्यादातर अपराधी सच कबूल कर लेते हैं.

टेस्ट करने से पहले की क्या है कानूनी प्रक्रिया ?

भारत में नार्को और पॉलीग्राफ टेस्ट को करने के लिए अदालत की इजाज़त लेनी पड़ती है. जज गंभीर मामलों में अपराधियों को देखते हुए इस टेस्ट को करने की अनुमाति देता है. देश में कई शातिर अपराधियों और आतंकियों पर ये टेस्ट किए जा चुका है. हालांकि, साल 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अभियुक्त की सहमति के बिना कोई लाई डिटेक्टर टेस्ट नहीं किया जाना चाहिए. सन् 1997 में डीके बसु के पश्चिम बंगाल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि पॉलीग्राफ और नार्को टेस्ट का अनैच्छिक प्रशासन अनुच्छेद 21 या जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार के संदर्भ में क्रूर, अमानवीय और अपमानजनक व्यवहार के बराबर होगा.

कैसे होता है पॉलीग्राफ टेस्ट?

पॉलीग्राफ टेस्ट करने के लिए खास तरह की मशीनों और एक्सपर्ट्स की मदद ली जाती है. टेस्ट के दौरान मशीन और एक्सपर्ट्स बारीकी से आरोपी के हर मूवमेंट पर नजर रखते हैं. टेस्ट करने से पहले लाइ डिटेक्टर मशीन से आरोपी के 4 से 6 प्वाइंट को जोड़ा जाता है. सीने पर एक बेल्ट बांधी जाती है जिसे न्यूमोग्राफ ट्यूब कहते हैं. सीने पर ये बेल्ट  हार्ट बीट मापने के लिए होती है. 
मशीन सेंसर के जरिये व्यक्ति से जोड़ी जाती है. सांस लेने की गति को रिकॉर्ड किया जाता है. पल्स और ब्लड प्रेशर रिकॉर्ड किया जाता है...शरीर से निकले पसीने के बदलाव पर नज़र रहती है ..
हाथ, पैरों की मूवमेंट को भी रिकॉर्ड किया जाता है. वायर BP, हार्ट और सांसों के दर को मॉनिटर करते हैं.

क्या पॉलीग्राफ टेस्ट से बच सकता है अपराधी?

क्या इस टेस्ट से अपराधी बच सकता है?  क्या कोई अपनी हार्टबीट जैसी प्लस रेट जैसी चीजों को कंट्रोल करके झूठ बोल सकता है? तो इसका जवाब हां है. लेकिन ये काम आसान नहीं है. केवल शातिर अपराधी इस टेस्ट से बच सकते हैं. लेकिन ये टेस्ट पूरी तरह सवालों पर निर्भर करता है, तो इसकी थोड़ी बहुत संभावना है कि अपराधी बच जाए इसलिए इस टेस्ट पर 100 फीसदी भरोसा नहीं किया जा सकता.

 

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