जातीय जनगणना को नीतीश कुमार की सरकार ने प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है. जातीय जनगणना पर हाई कोर्ट की रोक के खिलाफ नीतीश कुमार की सरकार अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है. पटना हाई कोर्ट ने जातीय जनगणना पर तत्काल रोक लगाते हुए 3 जुलाई को सुनवाई करने की बात कही थी.
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Caste Census: जातीय जनगणना को नीतीश कुमार की सरकार ने प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है. जातीय जनगणना पर हाई कोर्ट की रोक के खिलाफ नीतीश कुमार की सरकार अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है. पटना हाई कोर्ट ने जातीय जनगणना पर तत्काल रोक लगाते हुए 3 जुलाई को सुनवाई करने की बात कही थी. नीतीश सरकार ने इस मामले में हाई कोर्ट से पुनर्विचार की अपील की थी, जिस पर भी नीतीश कुमार की सरकार को झटका लगा और पटना हाई कोर्ट ने 3 जुलाई से ही मामले की सुनवाई करने की बात कही. उसके बाद अब नीतीश कुमार की सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है.
पटना हाई कोर्ट के अंतरिम फैसले के खिलाफ बिहार सरकार ने पिछले सप्ताह एक अंतरिम आवेदन दायर करते हुए शीघ्र सुनवाई की मांग की थी. याचिका में कहा गया था कि हाई कोर्ट का 4 मई का आदेश अंतरिम है. बिहार सरकार ने विचाराधीन मसलों पर जल्द फैसला सुनाने की मांग करते हुए कहा था कि मामले का जल्द निस्तारण किया जाए. बिहार सरकार ने यह भी दलील दी थी कि मामले को लंबित रखने से कोई उद्देश्य सिद्ध नहीं होगा. पटना हाई कोर्ट ने इस मामले में 9 मई को फैसला सुनाया, जिसमें कोर्ट ने पुराने अंतरिम आदेश को बरकरार रखते हुए अगली सुनवाई 3 जुलाई को ही करने की बात कही थी.
जातीय जनगणना के खिलाफ दायर याचिका के माध्यम से याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाए थे कि एक तो राज्य सरकार को जातीय जनगणना कराने का अधिकार नहीं है. दूसरा जातीय जनगणना के माध्यम से लोगों की निजता भंग की जा रही है. लोगों से उनकी जाति के अलावा आय और रहन और योग्यता के बारे में जानकारी ली जा रही है. ऐसा कर सरकार संविधान का उल्लंघन कर रही है. इसके अलावा याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा था कि सरकार ने जातीय जनगणना के लिए 500 करोड़ रुपये खर्च करने का प्रावधान किया है, जो टैक्स पेयर्स के पैसे की बर्बादी है.