Supaul News: सुपौल त्रिवेणीगंज नगर परिषद क्षेत्र के वार्ड नं 22 स्थित मेढ़ीया टोले में करीब 50 वर्ष पहले स्थापित प्राथमिक विद्यालय मेढ़िया जीर्ण शीर्ण और जर्जर हो चुकी है. दो कमरों में संचालित इस स्कूल की स्थिति ऐसी है कि इसकी छत कभी भी गिर सकती है.
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सुपौल: बिहार के सुपौल त्रिवेणीगंज नगर परिषद क्षेत्र के वार्ड नं 22 स्थित मेढ़ीया टोले में करीब पचास वर्ष पहले स्थापित प्राथमिक विद्यालय मेढ़िया जीर्ण शीर्ण और जर्जर हो चुकी है. दो कमरों में संचालित इस स्कूल की स्थिति ऐसी है कि इसकी छत कभी भी गिर सकती है. बानगी यह कि छत की हालत जर्जर होने के कारण स्कूल में नामांकित करीब 149 बच्चे डर के साए में स्कूल के बरामदे पर जमीन पर बैठ कर पढ़ने को विवश हैं.
स्कूल में दो कमरे हैं, जिसमें स्कूल का एक कमरा किचन के रूप में उपयोग हो रहा है. वही दूसरे कमरे में बेंच डेस्क रखे हुए हैं. छत की जर्जर हालत और कमरे के अभाव में बच्चे या तो बरामदे में बैठते हैं या फिर बरामदे के नीचे खुले मैदान में बैठ कर पढ़ाई करते हैं.
बताया गया है कि भवन पुराना होने से छत का मलबा लगातार गिरने से छत जर्जर हो गई है. छत में इस्तेमाल की गई छड़ें भी दिखाई दे रही है. हालांकि विद्यालय में मौजूद शिक्षकों द्वारा वैकल्पिक रूप से टिन का एक शेड बनाया गया है. जिसमें बारिश और धूप से बचने के लिए बच्चों को कभी कभार उसमें बैठा दिया जाता है. ताकि बारिश से बचाव हो सके.
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बताया गया है कि स्कूल में कुल 149 छात्र छात्र नामांकित हैं. वहीं इस विद्यालय में कुल सात शिक्षक शिक्षिका पदस्थापित हैं. बिडंबना यह कि टेढ़ा नदी के किनारे स्थापित इस स्कूल में न चाहरदीवारी है और न ही किचन शेड जुगाड़ टेक्नोलॉजी से चल रहे स्कूल को देख लोग भी हैरत में है. जिससे हमेशा खतरे की संभावना बनी रहती है. हालांकि फिलहाल विद्यालय में एक शौचालय का निर्माण प्रगति पर है.
सरकार द्वारा बेहतर शिक्षा दिए जाने के दावे की पोल खोलती ये तस्वीर बिहार में शिक्षा व्यवस्था की इंफ्रास्ट्रक्चर की पोल खोल रही है. स्कूल की हेडमास्टर और शिक्षक शिक्षिका का कहना है कि वर्षों से विद्यालय के जर्जर होने की सूचना उच्चाधिकारी को दी जा रही है पर कोई पहल नहीं हुई. ऐसे में जर्जर और जीर्ण शीर्ण अवस्था में पहुंच चुके इस विद्यालय में डर के साए में छात्र और शिक्षक रहते हैं. लेकिन विभागीय फरमान के कारण पठन पाठन का कार्य संपादित हो रहा है.
इनपुट- सुभाष चंद्रा, सुपौल