Bihar News: बिहार की सियासत में अक्सर उथल-पुथल देखने को मिलती है. यहां की सत्ता पर काबिज नीतीश कुमार और उनका महागठबंधन भाजपा के दांव से सदमे में है. जातिगत जनगणना के बाद नीतीश जिस बढ़त की उम्मीद कर रहे होंगे, वह मौजूदा समीकरण में हवा होता दिखाई दे रहा है.
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Bharat Ratna for former Bihar CM Karpoori Thakur: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद को गठबंधन राजनीति का 'खिलाड़ी' समझते होंगे, पर बीजेपी के सामाजिक-सांस्कृतिक दांव ने उन्हें मझधार में फंसा दिया है. अयोध्या के भव्य मंदिर में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा के बाद कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का फैसला इनमें से एक है.
दो दशक पहले तब अटल बिहारी वाजपेयी की अगुआई वाली भाजपा सरकार ने कांग्रेस (इंदिरा) विरोधी और दिग्गज नेता जयप्रकाश नारायण को सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार से सम्मानित किया था. हालांकि तब परिस्थितियां अलग थीं. NDA के सहयोगी के रूप में नीतीश कुमार बिहार से एक और समाजवादी लालू प्रसाद यादव को सत्ता से बाहर करने के लिए बीजेपी के साथ मिलकर लड़ रहे थे.
कर्पूरी और लालू- नीतीश
वास्तव में, लालू और नीतीश दोनों लोहिया, जेपी और कर्पूरी को अपना वैचारिक गुरु बताते रहे हैं. वह नीतीश ही थे जिन्होंने 90 के दशक की शुरुआत में बिहार में मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने की हर कोशिश का जोरदार तरीके से विरोध किया था.
ठाकुर का वो फैसला
नीतीश के लालू का विरोध करने का कारण उनका यह मानना था कि जननायक कर्पूरी ठाकुर ने 1978 में ही वो कर दिया था जो रोहिणी आयोग को अब करना चाहिए. बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में कर्पूरी ठाकुर ने ओबीसी के उप-वर्गीकरण की जरूरत पर जोर दिया. साथ ही MBC (Most Backward Classes) और उच्च जाति के गरीबों को आरक्षण दिया. 2017 में रोहिणी आयोग का गठन केंद्रीय ओबीसी सूची में मौजूद जातियों को उप-वर्गीकृत करने के लिए किया गया.
नीतीश का अलग फॉर्मूला
नीतीश हमेशा से मानते रहे हैं कि लालू यादव की राजनीति प्रमुख रूप से यादवों और मुसलमानों के समर्थन पर टिकी है. यही कारण है कि भाजपा के साथ सत्ता में आने के बाद नीतीश ने EBC (Economically Backward Classes यानी आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग) पर फोकस किया और दलितों से महादलित अलग किए.
यहां तक कि बिहार में जाति जनगणना के बाद उनके हालिया आरक्षण फॉर्मूले का सार भी लालू यादव के उनके विरोध में मिलता है. जहां तक हाशिए पर पड़े लोगों को सशक्त बनाने की बात है तो पिछले दो दशकों की भारतीय राजनीति में नीतीश और मोदी एक मंच पर खड़े या कहें कि एक दूसरे से जुड़े दिखते हैं.
भाजपा का झटका
भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग लगातार विकसित होती गई है. महिलाओं, गरीबों, युवाओं और किसानों के रूप में अब केवल चार जातियों को देखा जा रहा है. अयोध्या आंदोलन की सफलता के रूप में मंदिर निर्माण ने जातिगत समीकरणों को काफी धुंधला कर दिया है, इससे जनता दल की शाखाएं सदमे में हैं.
नीतीश क्या करेंगे?
दिवंगत राम विलास पासवान की तरह नीतीश कुमार भी बदली बयार को जल्दी भांप जाने वाले 'मौसम वैज्ञानिक' के तौर पर जाने जाते हैं. कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के भाजपा सरकार के फैसले ने उनकी राजनीतिक दुविधा को और बढ़ा दिया है.
'अपनी RJD' ही नीतीश की चुनौती!
अब अगर वह I.N.D.I.A गठबंधन में बने रहते हैं और RJD के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ते हैं तो स्ट्राइक रेट 2020 के विधानसभा चुनावों की तुलना में बढ़ने की संभावना नहीं है. इसकी वजह यह है कि RJD काडर इस बार चिराग पासवान की भूमिका में होंगे और निराशाजनक प्रदर्शन अगले साल विधानसभा चुनावों में सौदेबाजी की पावर को भी छीन लेगा.
कुछ घंटे पहले लालू प्रसाद यादव ने लिखा है, 'मेरे राजनीतिक और वैचारिक गुरु स्व. कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न अब से बहुत पहले मिलना चाहिए था. हमने सदन से लेकर सड़क तक ये आवाज उठाई लेकिन केंद्र सरकार तब जागी जब सामाजिक सरोकार की मौजूदा बिहार सरकार ने जातिगत जनगणना करवाई और आरक्षण का दायरा बहुजन हितार्थ बढ़ाया. डर ही सही राजनीति को दलित बहुजन सरोकार पर आना ही होगा.'